बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने तलाक संबंधी फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराते हुए पत्नी की अपील खारिज कर दी है। पति ने आरोप लगाया था कि पत्नी ने शादी से पहले माहवारी न आने की गंभीर समस्या छिपाई थी, जो उसके साथ मानसिक क्रूरता है। इसी के आधार पर फैमिली कोर्ट ने तलाक मंजूर किया था। जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच ने भी माना कि दंपती के बीच वैवाहिक संबंध सामान्य स्थिति में लौटना संभव नहीं है।
मामले में पति ने बताया कि विवाह के कुछ समय बाद पत्नी ने माहवारी रुकने की जानकारी दी, जिसके बाद वह उसे डॉक्टर के पास लेकर गया। वहां पता चला कि पत्नी पिछले दस साल से इस समस्या से जूझ रही है और गर्भधारण में भी गंभीर कठिनाई है। पति का कहना था कि यह तथ्य पत्नी और उसके परिवार ने जानबूझकर छिपाया। पूछने पर पत्नी ने कहा कि अगर यह जानकारी पहले देती तो शादी नहीं होती, इसलिए उसे स्वीकार करना ही होगा।
कबीरधाम निवासी दंपती का विवाह 5 जून 2015 को हुआ था। प्रारंभिक दो महीनों तक सबकुछ सामान्य रहा, लेकिन बाद में विवाद बढ़ने लगे। पति का दावा था कि पत्नी ने घर के बुजुर्गों और बच्चों की जिम्मेदारी उठाने से इंकार किया। वहीं पत्नी ने आरोप लगाया कि शादी के बाद घरेलू कामकाज का बोझ उस पर डाल दिया गया और उसे बांझ कहकर प्रताड़ित किया गया।
हाईकोर्ट ने पाया कि दंपती वर्ष 2016 से अलग रह रहे हैं और चिकित्सीय दस्तावेजों से पत्नी का इलाज जारी होना सिद्ध होता है। वह यह साबित नहीं कर पाई कि उसकी स्वास्थ्य स्थिति पूरी तरह ठीक हो गई है। कोर्ट ने माना कि संबंधों में गहराई से खटास आ चुकी है और वैवाहिक जीवन की पुनर्स्थापना संभव नहीं है।
तलाक को बरकरार रखते हुए कोर्ट ने पत्नी की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए पांच लाख रुपये स्थायी भरण-पोषण के रूप में निर्धारित किए हैं। पति को यह राशि चार माह के भीतर पत्नी को प्रदान करने का निर्देश दिया गया है।