नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को स्थानीय निकाय चुनावों में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण को लेकर कड़ी चेतावनी दी है। देश के शीर्ष न्यायालय ने कहा कि यदि आरक्षण सीमा का उल्लंघन किया गया, तो वह राज्य के नगरीय निकाय चुनावों पर रोक लगाने से भी पीछे नहीं हटेगा। अदालत ने टिप्पणी की कि नामांकन शुरू होने का तर्क देकर कोर्ट को दबाव में लाने की कोशिश न की जाए, अन्यथा चुनाव रोकने का आदेश दिया जा सकता है।
मामला स्थानीय निकायों में आरक्षण सीमा को लेकर दायर याचिकाओं से जुड़ा है, जिनमें आरोप लगाया गया है कि कुछ क्षेत्रों में आरक्षण 70 प्रतिशत तक पहुंच गया है। कोर्ट ने इन शिकायतों पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है और स्पष्ट किया है कि 50 प्रतिशत की सीमा किसी भी परिस्थिति में पार नहीं की जा सकती।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि चुनाव केवल उस स्थिति में कराए जा सकते हैं, जो जेके बांठिया आयोग की 2022 की रिपोर्ट से पहले लागू थी। बांठिया आयोग ने ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की अनुशंसा की थी, और यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार की ओर से प्रस्तुत सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के आग्रह पर अदालत ने अगली सुनवाई 19 नवंबर के लिए निर्धारित की। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि दो-न्यायाधीशों वाली पीठ होने के नाते वह संविधान पीठ द्वारा निर्धारित सीमा को नहीं बदल सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि आरक्षण की सीमा का उल्लंघन हुआ, तो वह चुनाव प्रक्रिया पर रोक लगा देगा। अदालत ने राज्य सरकार को आरक्षण सीमा को लेकर कड़ी हिदायत दी है और लंबित याचिकाओं पर अपना जवाब प्रस्तुत करने को कहा है।