रायपुर। विहान ड्रामा वर्क्स भोपाल के कलाकार रविवार 16 नवंबर को पांच दिवसीय मुक्तिबोध राष्ट्रीय नाट्य समारोह के समापन अवसर पर नाटक गांधी गाथा का मंचन करेंगे। यह प्रस्तुति महात्मा गांधी के जीवन मूल्यों, विचारों और स्वाधीनता संग्राम में उनके योगदान को संगीतमय रूप में प्रस्तुत करेगी।
महात्मा गांधी स्वाधीनता आंदोलन के ऐसे नेता रहे, जिन्होंने देश को सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर एक सूत्र में बांध दिया। दमनकारी ब्रिटिश शासन के विरुद्ध उनका आंदोलन राष्ट्रीय एकता का आधार बना। वे केवल स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता, मानवीय मूल्य और अध्यात्मिक जीवन के गहन चिन्तक भी थे। वर्तमान भारत की संरचना में गांधी के विचार आज भी स्पंदित हैं।
गांधी गाथा एक संगीतमय प्रस्तुति है, जिसमें गांधीजी के बचपन से लेकर उनके महानिर्वाण तक की जीवन-यात्रा को किस्सागोई, गीतों और अभिनय के माध्यम से दर्शाया जाएगा। मंच पर कलाकार गांधीजी की यात्रा को कथात्मक रूप में सुनाने के साथ गीतों और चरित्र-चित्रण के जरिए जीवंत करेंगे। यह प्रस्तुति बापू के महान त्याग और तपस्या को भावांजलि स्वरूप समर्पित है।
नाटक के निर्देशक सौरभ अनंत का कहना है कि गांधी को समझने के लिए उन्होंने संगीत और कहानी कहने की वह शैली चुनी, जो उनकी कलात्मक परिकल्पना के करीब है। उन्होंने बताया कि विहान के म्यूजिक बैंड मार्गी का सहयोग इस प्रस्तुति की आधार-शक्ति रहा है। अनंत के अनुसार गांधी में संगीत और स्टोरी-टेलिंग दोनों का विशेष महत्व रहा है, इसलिए यह नाटक एक प्रयोग के रूप में तैयार किया गया है, जो आज के युवाओं तक गांधी की प्रासंगिकता को नए रूप में पहुँचाता है।
गांधी गाथा के पूर्व शाम 7 बजे से विहान समूह कविताओं की प्रस्तुति करेगा। कविता और नाटक के बीच के अंतराल में समारोह के दौरान प्रदर्शित पेंटिंग्स पर संक्षिप्त चर्चा के साथ लाइव पेंटिंग का प्रदर्शन भी होगा। साथ ही चित्रकारों और समारोह के सहयोगियों को सम्मानित किया जाएगा।
मुक्तिबोध नाट्य समारोह में इस बार आठ नाटकों का मंचन किया जा रहा है। अब तक वापसी, आपस की बात, रश्मि रथी, कंजूस, हम बिहार से चुनाव लड़ रहे हैं, किस्साए बड़के दा और निठल्ले की डायरी का सफल मंचन किया जा चुका है, जिन्हें दर्शकों ने विशेष सराहना दी है।
कार्यक्रम की अगली कड़ी में 22 नवंबर को जनमंच सड्डू में टीवी और फिल्म अभिनेता मनोहर तेली का एकल नाटक संक्रमण शाम 7 बजे से प्रस्तुत किया जाएगा।
सौरभ अनंत के बारे में
25 सितंबर 1984 को जन्मे सौरभ अनंत ने ललित कला में स्नातक तथा नाट्यकला में स्नातकोत्तर की उपाधियाँ अर्जित की हैं। फाइन आर्ट्स और कविता से गहरे सरोकार के कारण वे एक परिष्कृत डिज़ाइनर के रूप में संभावनाओं से परिपूर्ण हैं। सौरभ ने मंच परिकल्पना, रंग–सामग्री निर्माण, प्रकाश परिकल्पना और देह-भंगिमा आदि में मौलिक और विशिष्ट प्रयोग किए हैं, जिनसे उनकी प्रस्तुतियों में अद्वितीय आभा दिखाई देती है।
भोपाल स्थित भारत भवन के सान्निध्य में उन्हें संगीत, नृत्य, रंगमंच, चित्र एवं मूर्तिकला की परम्पराओं और नवाचारों का सतत परिचय मिलता रहा। परिणामस्वरूप, वे भारतीय नाट्यपरंपरा में प्रयोगधर्मिता को समाहित करते हुए ऐसे रंगकर्म की खोज में अग्रसर हुए, जिसमें समकालीन समय के सामाजिक सरोकारों के साथ गहरा सौंदर्यबोध भी हो। वर्ष 2011 में उन्होंने “वाहन ड्रामा वर्क्स” की स्थापना युवा कलाधर्मियों को प्रोत्साहन और मंच प्रदान करने के उद्देश्य से की।
उन्होंने प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. धर्मवीर भारती की काव्य रचना “कनुप्रिया” से निर्देशन की शुरुआत की। इसके बाद विजयदान देथा की कहानी “सपनप्रिया”, महाभारत के चक्रव्यूह प्रसंग पर आधारित “सुभद्रा”, लोकशैली पर आधारित “एक कहानी बस्तर की”, विमल चंद्र पांडे की कहानी पर आधारित “प्रेम पतंगा”, वत्सराज द्वारा लिखित संस्कृत प्रहसन “हास्यचूडामणि” (बुंदेली बोली में), तेत्सुको कुरोयानागी की आत्मकथा “तोत्तो-चान” का हिंदी रंग आलेख तैयार कर उसका निर्देशन किया।
बाल नाट्य कार्यशालाओं में उन्होंने “चरणदास चोर”, “अंधेर जंगल चौपट शेर”, “पीली पूँछ”, “रामायण” तथा मणिपुरी लोककथा पर आधारित “मजाओगी खोंगचट” का निर्देशन किया। नाटक “गांधी” के नाट्यालेख और निर्देशन के साथ ही स्वप्निल जैन के मूल नाटक “रोमियो–जूलियट इन स्मार्ट सिटी ऑफ कंटेम्पररी इंडिया” और श्वेता केतकर के नाटक “टक्के थे दस टक्के” का भी निर्देशन किया। “संत रविदास” (लघु सांगीतिक रूपक) तथा मणिपुरी लोककथा आधारित “काबूई केओइबा” का नाट्यालेख और निर्देशन भी उन्होंने किया है।
संस्कृत रंगमंच और लोकनाट्य के गहन अध्ययन और चिंतन के आधार पर उन्होंने ऐसी रंगभाषा विकसित की है जिसमें देहगतियाँ, नृत्य, गायन, ध्वनि प्रभाव और भाव–अनुभाव सम्मिलित होकर रस की सृष्टि करते हैं। उनके नाटकों की विशेषता है कि पात्रों की कल्पनाएँ और अंत:चेतना मंच पर रूपायित हो जाती हैं। इसी कारण उनके नाटकों में जादुई यथार्थवाद के दर्शन होते हैं। चित्रकार की दृष्टि से रची गई उनकी रंगमंचीय संरचना हमेशा सौंदर्यपूर्ण कोरियोग्राफी के साथ उपस्थित होती है, जो मंच के भार और खालीपन को काव्यात्मक संतुलन प्रदान करती है। रंगों और प्रकाश का सम्मोहक इंद्रधनुष उनके नाटकों की पहचान है।
भरतमुनि की उक्त “संगीत नाटक की शैया है” को उन्होंने अपने रंगकर्म का मूल मंत्र बनाया है। उनके नाटकों में गीत–संगीत अलंकरण मात्र नहीं, बल्कि वातावरण, मनोजगत, कार्य–यथार्थ और पात्र के रूप में अनिवार्य तत्व होते हैं। उनकी वेशभूषा में भी चित्रकार की कलादृष्टि स्पष्ट दिखाई देती है। मंच परिकल्पना उनके रंगकर्म का महत्वपूर्ण आधार है। वे empty space से स्थापत्य रचते और उसे तोड़ने का कौशल रखते हैं। इन्हीं विशेषताओं ने सौरभ अनंत को समकालीन रंगजगत में विशिष्ट पहचान दिलाई है। उनके नाटकों में “संपूर्ण भारतीय रंगमंच” का अनुभव मिलता है।
सौरभ अनंत ने अपने नाटकों से देश के शहरी रंगकर्म को नई दिशा और प्रेरणा प्रदान की है। उनके नेतृत्व और अनुशासन ने “वाहन टीम” में कठोर मेहनत, प्रेम, बहु-कला-धर्मिता और मानवता की भावना विकसित की है, जिससे यह टीम युवाओं के लिए रोल मॉडल बन गई है। युवा और बच्चों के कला से जुड़ने को लेकर वे सदैव संवेदनशील रहे हैं। इसी उद्देश्य से उन्होंने Theorics, Theatre Tricks, Poetics और Theatre Talk जैसी संवाद-श्रृंखलाएँ आयोजित कीं, जिनमें कला जगत की ख्यात हस्तियों ने सहभागिता की। उन्होंने देशभर में कई नाट्य कार्यशालाओं का संचालन किया है।
साहित्य और संगीत से विशेष अनुराग के कारण उन्होंने “मार्ग बैंड” की स्थापना की। कविता और गद्य की अनेक विधाओं में नियमित लेखन भी करते हैं। उनकी बड़ी सफलता यह है कि देश का युवा वर्ग उनके नाटकों को देखकर रंगमंच से प्रेरित हो रहा है। अनेक दर्शकों ने जीवन का पहला नाटक सौरभ का देखा और रंगमंच से जुड़े। इसी कारण उनके नाटकों को देशभर के दर्शकों और कला–विशेषज्ञों का भरपूर स्नेह प्राप्त हुआ है।
मानवीय सरोकारों से युक्त उनका रंगकर्म
सौरभ अनंत केवल एक कुशल निर्देशक ही नहीं, बल्कि निरंतर विकसित होती शिक्षकीय ऊर्जा से भी परिपूर्ण हैं। किसी अनगढ़ व्यक्ति को अभिनेता के रूप में तैयार करने से लेकर मंचन तक की प्रक्रिया में अनुशासन, मेहनत, अध्ययनशीलता और पारस्परिक विश्वास जैसे गुण कलाकारों के जीवन का हिस्सा बन जाते हैं। उनके मार्गदर्शन में कलाकार और विद्यार्थी अनेक कला विधाओं में सीखते और आगे बढ़ते हैं।
थियोरिक्स, थिएटर ट्रिक्स, पोएटिक्स और थिएटर टॉक जैसी गतिविधियाँ नई पीढ़ी में कला और रंगमंच के संस्कार उत्पन्न कर रही हैं। देश के अनेक ख्यात नाट्यविशेषज्ञ—जैसे हृषीकेश सुलभ (संगरंग), अजीत राय (रंगप्रसंग), मंजरी श्रीवास्तव—ने उनके रंगकर्म पर विस्तृत लेखन किया है।
वे SNA और NSD के राष्ट्रीय समारोहों, थिएटर ओलंपिक्स, जश्ने-बचपन, भारत उत्सव और कलोत्सव में अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से विशेष पहचान बना चुके हैं।
सौरभ अनंत के निर्देशन की लक्षणताएँ
कला परंपरा जितनी मजबूत होती है, नवाचार भी उतने ही प्रबल होते हैं। सौरभ के निर्देशन में भारतीय रंगमंच की आत्मा स्पष्ट दिखाई देती है। नांदी-गीत से आरंभ और भरत-वाक्य पर समाप्त होने वाली उनकी नाट्य संरचना में गीत–संगीत, सौंदर्यबोध और प्रयोगशीलता का अनूठा संगम है।
वे अधिकांश नाटकों का रूपांतरण और रंगपाठ स्वयं तैयार करते हैं, जिससे मानवीय समाज को संबोधित करने वाले चेतस तत्व नाटक की आत्मा में प्रतिष्ठित हो जाते हैं। उनकी दृश्य रचना चित्रकार की संवेदना से जन्म लेती है। संवाद, आह्वान, संगीत, कोरियोग्राफी—सब कुछ कथानुकूल और सौंदर्यपूर्ण होता है।
उनका रंगकर्म दर्शकों को आनंदित, प्रभावित और विचारोत्तेजक बनाता है। वे आधुनिक रंग–तकनीकों और नाट्यशास्त्रीय परम्पराओं का निर्वाह समान दक्षता से करते हैं। “तोत्तो-चान” जैसे उनके नाटक बच्चों की शिक्षा, संवेदना और कला का विलक्षण संगम प्रस्तुत करते हैं, जबकि “हास्यचूड़ामणि” आज की सामाजिक–राजनीतिक स्थितियों पर तीखा व्यंग्य है।
देशभर के युवा उनमें एक आदर्श निर्देशक की छवि देखते हैं और रंगकर्म की ओर प्रेरित होते हैं। यह रंगमंच के लिए आनंद का विषय है कि सौरभ अनंत जैसी युवा प्रतिभाएँ नई पीढ़ी को निरंतर प्रेरित और संस्कारित कर रही हैं।
विहान के बारे में
‘विहान’ का अर्थ होता है सवेरा। सौरभ अनंत की संकल्पना और परिकल्पना से उपजा नाटक ‘कनुप्रिया’ 21 जुलाई 2011 को भारत भवन के मंच पर एक सपने और नयी सुबह की तरह साकार हुआ। अनंत का यही सपना आगे चलकर युवा ऊर्जा के लिए एक ऐसा ‘स्पेस’ बना, जहां वे स्वतंत्र रूप से अपने भीतर की कला को खोज सकें और उसे कला की किसी भी विधा के माध्यम से अभिव्यक्त कर सकें। एक ऐसा ‘स्पेस’ जहाँ परंपरा और आधुनिकता एक बिंदु पर आकर मिलते हैं, जहाँ सौंदर्यबोध तथा प्रयोगशीलता है, कला के प्रति अनुशासन, प्रशिक्षण तथा गहरा समर्पण है। यहाँ नाटक, संगीत, कविता, नृत्य, डिज़ाइन, सिनेमा, फोटोग्राफी, चर्चाएँ, पुस्तकालय और ज्ञान के अनेक स्रोत हैं।
यही सपना ‘विहान’ के रूप में स्थापित हुआ, जो श्वेता केतकर और हेमंत देवलेकर जैसे ऊर्जावान और रचनात्मक कलाकारों के मजबूत सहयोग के साथ 2011 से अपनी यात्रा तय कर रहा है। बहु-कला केंद्रित ‘विहान’ के तीन प्रमुख अंग हैं– विहान ड्रामा वर्क्स, विहान पिक्चर वर्क्स और विहान डिज़ाइन वर्क्स, जिनके अंतर्गत नाटक, सिनेमा, साहित्य, फोटोग्राफी, ललित और प्रदर्शनकारी कलाओं के क्षेत्र में समूह के कलाकार कार्यरत हैं।
विहान ड्रामा वर्क्स के अंतर्गत अब तक 15 नाटक, बच्चों के लिए 12 नाटक तथा दिव्यांग बच्चों के लिए 8 नाटक निर्देशित और मंचित किए जा चुके हैं, जिनमें से अधिकांश का लेखन भी विहान ने किया है। विहान पिक्चर वर्क्स के अंतर्गत 10 लघु और विज्ञापन फ़िल्मों का निर्माण किया गया है।
देश के कला फ़लक पर विहान के अनुषंग ‘थिएट्रिक्स’, ‘थ्योरिक्स’, ‘थिएटर टॉक’ और ‘पोएटिक्स’ के माध्यम से विहान की सक्रियता लगातार जारी है। इसके अंतर्गत विहान अनेक कला रूपों के संदर्भ में कार्यक्रमों और कार्यशालाओं का आयोजन करता रहा है। विहान की बाल सृजन इकाई ‘स्वप्नयान’ 2015 से सक्रिय है, जिसके तहत नाटक तथा अन्य सृजनात्मक कार्यशालाएँ आयोजित होती रही हैं।
विहान का नया अनुषंग ‘मागीर’ इसका सांगीतिक भाग है, जहाँ कलाकार पारंपरिक और आधुनिक तकनीकों व वाद्यों के माध्यम से संगीत संरचना में सक्रिय हैं। भक्तिकाल एवं आधुनिक कविता का संगीतबद्ध गायन, बाल-कविताओं का गायन, लोक-गीतों का गायन तथा उर्दू लोक-गायन परंपरा चारबैत का गायन ‘मागीर’ की पहचान है।
विहान दो अंतरराष्ट्रीय कला महोत्सवों का आयोजक भी है। VIFA समकालीन कला परिदृश्य में मध्य भारत का अत्यंत महत्वपूर्ण और बहुआयामी अंतरराष्ट्रीय कला महोत्सव रहा है, जिसका उद्देश्य पर्यावरण तथा मनुष्यता के प्रति समर्पित कला को प्रोत्साहित करना तथा कलाकारों के बीच मैत्रीभाव बढ़ाना है। वर्ष 2015-16 और 2016-17 में आयोजित VIFA में भारत के साथ स्पेन, मेक्सिको, केपटाउन, कोरिया, थाईलैंड, स्विट्ज़रलैंड आदि देशों के कलाकार शामिल रहे हैं।
विहान का दूसरा कला समारोह ‘आरोह’ इस संकल्पना पर आधारित है कि ‘हर नए काम के साथ एक कदम आगे बढ़ाया जाए’। आरोह के मंच पर विहान अपनी नयी रचनाओं और प्रयोगों को प्रस्तुत करता है, जिनमें नए नाटक, संगीत या अन्य प्रदर्शनकारी कलाएँ शामिल हैं। विहान अब तक ‘आरोह’ के आठ सफल आयोजन कर चुका है।
एक युवा कला समूह के रूप में विहान सामाजिक कार्यों में भी उतना ही सक्रिय है, जिनमें समाज के वंचित वर्गों के साथ कला-कार्य, बच्चों का रंगमंच और वैकल्पिक शिक्षा प्रमुख रूप से केंद्र में हैं। विहान देश के अन्य गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर कला, विशेषकर रंगमंच के माध्यम से सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय भूमिका निभा रहा है।