धान का कटोरा या विकास का थाल?

धान का कटोरा या विकास का थाल?

रजत जयंती पर छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था और किसान की नई चुनौतियाँ

छत्तीसगढ़ अपनी स्थापना के पच्चीस वर्ष पूरे कर चुका है। रजत जयंती के इस अवसर पर जब राज्य अपनी उपलब्धियों का जश्न मना रहा है, तब यह सवाल फिर उठ खड़ा हुआ है कि क्या छत्तीसगढ़ आज भी केवल ‘धान का कटोरा’ बनकर रह गया है, या उसने विकास के नए अध्याय खोले हैं?
छत्तीसगढ़ की पहचान सदियों से कृषि प्रधान रही है। यहाँ की मिट्टी और जलवायु धान उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ हैं। इसलिए इसे ‘धान का कटोरा’ कहा गया। राज्य बनने के बाद से सरकारें लगातार फसल चक्र परिवर्तन और किसानों की आमदनी बढ़ाने के प्रयास करती रहीं, लेकिन सच्चाई यह है कि राज्य की अर्थव्यवस्था और राजनीति—दोनों—अब भी धान पर ही टिकी हैं।

पहली सरकार के मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने समर्थन मूल्य को लेकर दिल्ली में प्रदर्शन किया था। डॉ. रमन सिंह ने ‘चावल वाले बाबा’ की पहचान बनाई और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत किया। इसके बाद भूपेश बघेल की किसान-मित्र नीतियों ने बोनस और अतिरिक्त समर्थन मूल्य देकर किसानों को राहत दी। लेकिन इसके साथ ही यह राजनीतिक सत्य और पक्का हुआ कि जो पार्टी धान खरीदी पर उदार रुख अपनाएगी, वही सत्ता की कुर्सी पर बैठेगी। हालिया चुनाव परिणाम इस समीकरण की पुन: पुष्टि करते हैं।
औद्योगिक और खनिज संपदा के बावजूद, छत्तीसगढ़ की जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। धान खरीदी का मौसम यहाँ का सबसे बड़ा आर्थिक आयोजन बन चुका है। इस वर्ष 15 नवंबर से खरीदी प्रारंभ हो रही है, और अब तक 26 लाख से अधिक किसानों ने पंजीकरण कराया है। यह आँकड़ा दिखाता है कि राज्य की आजीविका अब भी खेत और खासकर धान पर ही निर्भर है।

राज्य में सिंचाई का रकबा बढ़ा है, लेकिन पर्याप्त नहीं। अधिकांश किसान एक फसली ही हैं। जहां पंजाब और हरियाणा के किसान फसल विविधता और तकनीकी नवाचार से आय बढ़ा रहे हैं, वहीं छत्तीसगढ़ का किसान परंपरा से बाहर निकल नहीं पा रहा। दिलचस्प है कि राज्य में आए कुछ बाहरी किसान—हरियाणा, पंजाब और गुजरात से—उन्नत खेती के प्रयोग कर रहे हैं, जिससे यह साबित होता है कि बदलाव संभव है, बस दृष्टिकोण बदलने की जरूरत है।

रजत जयंती वर्ष में यह आत्ममंथन आवश्यक है कि छत्तीसगढ़ केवल धान का नहीं, बल्कि विविधता का कटोरा बने। धान की खेती के साथ ही कृषि-आधारित उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण, मत्स्य पालन, बकरी पालन, कोल्ड चेन और मूल्य संवर्धन की दिशा में निवेश आवश्यक है। तभी राज्य किसानों को कर्जमाफी और समर्थन मूल्य की निर्भरता से मुक्त कर पाएगा।
धान निश्चित रूप से छत्तीसगढ़ की पहचान है, पर अब समय आ गया है कि यह रजत कटोरा केवल धान से नहीं, बल्कि विकास की हर फसल से भरे। तभी कहा जा सकेगा कि छत्तीसगढ़ ने सच में ऊँची उड़ान भरी है — जहाँ किसान केवल उत्पादन नहीं, बल्कि समृद्धि के प्रतीक बनें।

धान खरीदी की झलक

धान खरीदी प्रारंभ : 15 नवंबर
पंजीकृत किसान : 26 लाख 49 हजार
प्रमुख योजनाएँ : समर्थन मूल्य, बोनस योजना, तूहर टोकन ऐप
फसल चक्र : अब भी अधिकांश एक फसली
लक्ष्य : फसल विविधता और सिंचाई विस्तार

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