बालाघाट। वर्षों तक जंगलों में भटकती रही सुनीता जब आत्मसमर्पण के बाद अपने माता-पिता से मिली, तो यह दृश्य किसी फिल्मी कहानी जैसा भावुक क्षण बन गया। कांपते हाथों से आशीर्वाद देती मां की आंखों से बहते आंसू और पिता की राहत भरी मुस्कान ने वर्षों का दर्द बयान कर दिया। कभी घर की लाडली रही सुनीता नक्सली संगठन के संपर्क में आकर जंगलों की राह पर निकल गई थी। परिवार को उसकी कोई खबर नहीं थी, लेकिन अब प्रशासन की पहल से वह वापस लौट आई है।
मां ने गले लगाकर कहा, “हमारी बेटी लौट आई, बस यही सबसे बड़ी खुशी है।” पिता ने पुलिस और प्रशासन का धन्यवाद करते हुए कहा कि अगर पहले ही ऐसा मौका मिला होता, तो शायद बेटी भटकाव की राह पर न जाती।
पुलिस अधीक्षक आदित्य मिश्रा ने बताया कि सुनीता का आत्मसमर्पण इस बात का प्रमाण है कि हिंसा से बेहतर हमेशा शांति और परिवार का साथ होता है। उन्होंने कहा कि प्रशासन अब उसके पुनर्वास की प्रक्रिया शुरू कर चुका है ताकि वह समाज की मुख्यधारा में सम्मानपूर्वक जीवन बिता सके।
उन्होंने बाकी नक्सलियों से भी अपील की कि वे हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में लौट आएं। पुलिस अधीक्षक ने कहा कि शासन की ओर से आत्मसमर्पण करने वालों को पुनर्वास योजना का पूरा लाभ मिलेगा, जिसमें शिक्षा, रोजगार और सुरक्षित जीवन की सुविधा शामिल है।
जानकारी के अनुसार, सुनीता ने 1 नवंबर को आत्मसमर्पण किया था। मंगलवार को पुलिस ने उसके माता-पिता को बीजापुर से बुलवाकर मुलाकात कराई। इस दौरान सरपंच चन्नुलाल पुरियाम भी मौजूद रहे। उन्होंने बताया कि सुनीता के माता-पिता ने कहा कि नक्सलियों ने उसे जबरन घर से उठा लिया था और धमकी दी थी कि अगर दलम में नहीं भेजा, तो बाकी बेटियों को भी ले जाएंगे।
सरपंच ने बताया कि गांव से चार लोग नक्सली संगठन में गए थे, जिनमें से दो, सुनीता समेत, अब लौट आए हैं जबकि दो अभी भी जंगलों में हैं। पुलिस का कहना है कि आत्मसमर्पण की यह प्रक्रिया इस बात का संकेत है कि अब लोग हिंसा से ऊब चुके हैं और शांति की राह अपनाना चाहते हैं।