हैदराबाद। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन अब तेलंगाना की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने जा रहे हैं। कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें राज्य मंत्रिमंडल में शामिल करने का निर्णय लिया है। उनकी नियुक्ति के बाद तेलंगाना कैबिनेट में मंत्रियों की संख्या बढ़कर 16 हो जाएगी, जबकि दो पद अभी भी रिक्त रहेंगे।
अजहरुद्दीन को इससे पहले 2018 में तेलंगाना कांग्रेस प्रदेश कमेटी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। क्रिकेट से राजनीति में कदम रखने के बाद वह 2009 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। हालांकि, इसके बाद 2014 और 2023 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
राजनीति में उतार-चढ़ाव के बावजूद पार्टी का भरोसा बरकरार
अजहरुद्दीन ने 2009 में राजनीति में प्रवेश किया और कांग्रेस ने उन्हें मुरादाबाद से टिकट दिया था। पहली बार में सफलता मिलने के बाद 2014 में वे राजस्थान की टोंक-सवाई माधोपुर सीट से चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। 2023 में उन्होंने तेलंगाना की जुबली हिल्स सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, जहां उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। इन हारों के बावजूद कांग्रेस ने उन पर भरोसा बनाए रखा है।
तेलंगाना में कांग्रेस का मुस्लिम चेहरा
राज्य की राजनीति में अजहरुद्दीन को मंत्री बनाए जाने को कांग्रेस का रणनीतिक कदम माना जा रहा है। पार्टी के पास तेलंगाना में कोई प्रमुख मुस्लिम चेहरा नहीं है और वर्तमान में कैबिनेट में भी कोई मुस्लिम मंत्री शामिल नहीं है। ऐसे में अजहरुद्दीन की एंट्री पार्टी की मुस्लिम मतदाताओं के बीच पकड़ मजबूत करने की दिशा में अहम मानी जा रही है।
जानकारी के अनुसार, जुबली हिल्स विधानसभा उपचुनाव से पहले कांग्रेस मुस्लिम मतदाताओं को साधने की रणनीति पर काम कर रही है। इस सीट पर करीब 1.12 लाख मुस्लिम मतदाता हैं, जो कुल मतदाताओं का बड़ा हिस्सा हैं। कांग्रेस नेतृत्व को उम्मीद है कि अजहरुद्दीन की एंट्री से मुस्लिम समुदाय का विश्वास और समर्थन बढ़ेगा।
राजनीतिक संतुलन और संदेश दोनों अहम
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि अजहरुद्दीन को कैबिनेट में शामिल करना न केवल ग्रेटर हैदराबाद क्षेत्र को प्रतिनिधित्व देना है, बल्कि यह पार्टी की धर्मनिरपेक्ष छवि को भी मजबूत करता है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस यह संदेश देगी कि तेलंगाना में सामाजिक न्याय और सभी समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित की गई है।
अजहरुद्दीन की नियुक्ति से कांग्रेस को तेलंगाना ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी राजनीतिक रूप से लाभ मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।