1984 के लोकसभा चुनाव और अटल बिहारी वाजपेयी के नैतिक निर्णय

सुरुचि मिश्र धनेरवाल


1984 के आम चुनाव में बीजेपी ने वाजपेयी को ग्वालियर से उम्मीदवार बनाया था। पर्चा भरने से एक रात पहले वाजपेयी ग्वालियर पहुँच गए थे। वे वहाँ नारायणकृष्ण शेजवलकर के घर पर रुके थे। सवेरे वहाँ लालकृष्ण आडवाणी भी पहुँचे। वाजपेयी ने ऐलान किया, ह्लमैं कोटा से चुनाव नहीं लड़ूँगा।ह्व आडवाणी की ओर देखते हुए कहा, ह्ललालजी मैं दो सीटों से चुनाव नहीं लड़ूँगा और चुनाव लड़ूँगा तो सिफऱ् ग्वालियर से।ह्व सब तरफ़ सन्नाटा छा गया।


आडवाणी ने उस खामोशी को तोड़ते हुए कहा, ह्लआपके दिल्ली से ग्वालियर रवाना होने के बाद मुझे जानकारी मिली कि कांग्रेस माधवराव सिंधिया को ग्वालियर से उम्मीदवार बना रही है। रात को मैंने भैंरोसिंह शेखावत और साथियों से सलाह मशविरा किया तो भैंरोसिंह ने कहा कि वाजपेयी को कोटा सीट से मैदान में उतारा जा सकता है। इससे आप आराम से देश भर में चुनाव प्रचार कर सकेंगे और हमारी इच्छा है कि आप कोटा से चुनाव लड़ें।


वाजपेयी ने कहा, ह्लमैंने माधवराव जी को बता दिया है कि मैं ग्वालियर से चुनाव लड़ूँगा। उन्होंने मुझे शुभकामनाएँ भी दी हैं और वे गुना से चुनाव लड़ेंगे।ह्व आडवाणी ने कहा, ह्लहो सकता है, लेकिन यदि राजीव गांधी कहेंगे तो फिर सिंधिया को ग्वालियर से ही लडऩा पड़ेगा।ह्व वाजपेयी ने तुरन्त कहा, ह्लतब तो मैं सिफऱ् ग्वालियर से ही चुनाव लड़ूँगा और आपकी सलाह के मुताबिक मैंने कोटा से चुनाव लड़ा तो फिर माधवराव के मैदान में आने पर राजमाता ग्वालियर से चुनाव लडऩे के लिए कहेंगी और दो सीटों पर पर्चा भरने से उन्हें मना नहीं किया जा सकेगा और मैं किसी भी कीमत पर माँ-बेटे के मनमुटाव को सड़क पर नहीं लाना चाहता हूँ।


1984 में वाजपेयी ग्वालियर से और माधवराव सिंधिया कांग्रेस के टिकट पर गुना से चुनाव लडऩा चाहते थे। उस वक्त अर्जुन सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने राजीव गांधी को सलाह दी कि सिंधिया को गुना के बजाय ग्वालियर से मैदान में उतारा जाये और अपनी ख़ास रणनीति के तहत पर्चा भरने के आखऱिी दिन सिंधिया ने ग्वालियर से पर्चा भर दिया। वाजपेयी तब विदिशा से चुनाव लडऩा चाहते थे, लेकिन पर्चा भरने का आखऱिी दिन था और वाजपेयी वहाँ से विदिशा नहीं पहुँच सकते थे इसलिए फिर उन्होंने केवल ग्वालियर से ही चुनाव लड़ा ।
चुनाव माधवराव और वाजपेयी के बीच ही हुआ जिसमें वाजपेयी चुनाव हार गये। उस वक्त प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद तो पूरे देश में ही एक लहर थी, इसलिए यह नतीजा तो आना ही था।

सुरुचि मिश्रा धनैरवाल ने दिल्ली से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद दिल्ली पायनियर में काम किया उसके बाद उन्होंने रायपुर के भास्कर में काम किया जनधरा कि वह प्रबंध संपादक रही फिर उन्होंने tv27 एशियन न्यूज़ में शिवाय हिंदी मूलाधार जैनिज्म में सक्रिय हैं और टीवी जर्नलिज्म और प्रिंट जर्नलिज्म दोनों के लिए गुड़गांव में रहते हैं

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