काल के भाल पर विजय-तिलक अटल बिहारी वाजपेयी



लाजपत आहूजा
(पूर्व जनसंपर्क संचालक, मध्यप्रदेश)


आपातकाल से कुछ समय पहले की बात है। उस समय मैं शिशु (प्रशिक्षु) पत्रकार हुआ करता था। मेरे वरिष्ठ ने बताया था कि समाचारों का मिलना घटनाओं के करीब उपस्थित रहने से होता है। ग्वालियर के रेलवे स्टेशन पर तमतमाये अटल बिहारी बाजपेयी को देखा। टहलते से अटल जी, आडवाणी जी को कह रहे थे, लाल जी, हम क्यों नहीं सब बंद कर देते। रेलें रोक दो, बसें-बाज़ार सब बंद कर दें। ये सब बातें वे तत्कालीन सरकार की नीतियों, ख़ासकर महंगाई के विरोध में कह रहे थे। आडवाणी जी कोई जवाब दिये बिना साथ में थे। उस क्षण किसी की कल्पना में भी नहीं था कि एक दिन यह शख्स देश का प्रधानमंत्री बनकर भारत को मुकम्मल आणविक ताक़त बना देगा। राममंदिर आन्दोलन के साथ मुखरता से लालकृष्ण आडवाणी का नाम जुड़ता है पर प्रधानमंत्री के रूप में पहली बार अटल जी ने, रामजन्मभूमि आन्दोलन के महानायकों में से एक, परमहंस रामचंद्र दास की अंत्येष्टि में शामिल होकर आन्दोलन की पवित्रता को वैधता दी थी। परमहंस ने सन 1949 से लेकर सन 2003, अपनी मृत्यु तक आन्दोलन में अपनी अग्रणी भूमिका निभाई थी।


अटल जी भारत के प्रथम गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में इतिहास में अपना नाम अमिट स्याही से अंकित किया है। वे अलग-अलग समयावधि में छह वर्ष के लिये भारत के प्रधानमंत्री रहे। इसमें एक कार्यकाल तो मात्र 13 दिन का था और एक पूरे पांच साल का। एक वोट से सरकार भी केवल उनकी ही गई थी। वह वोट भी उड़ीसा के मुख्यमंत्री बन चुके व्यक्ति का था। नैतिकता का प्रश्न पाठक स्वयं खोजें। उस समय त्यागपत्र से पहले उनका सम्बोधन भुलाया नहीं जा सकता। उस छोटे से लेकिन मार्मिक और प्रभावी भाषण को आज भी याद किया जाता है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के लोगों को रिश्वत देकर खऱीदने वाली कांग्रेस सरकार के सामने एक अनैतिक मत से हारने वाला भी यह प्रधानमंत्री अनुपम ही कहा जायेगा।


एटमबम परीक्षण से पहले नरसिंह राव ने अटल जी को क्या कहा था?


मुझे स्मरण है तब मैं नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण में प्रतिनियुक्ति पर था। प्राधिकरण में उस समय सदस्य पुनर्वास, सूरज प्रकाश, आई.ए.एस. थे। उस सुबह उछलते हुये उन्होंने कहा कि लो अब भारत एटमीपावर बन गया। अटल जी के इस साहसपूर्ण संकल्पबद्धता ने कारगिल युद्ध और अब ऑपरेशन सिन्दूर में अहम् भूमिका निभाई है। यह एक तथ्य है कि अणु बम का प्रारंभिक परीक्षण इंदिरा जी ने किया था। इसकी पूरी तैयारी लालबहादुर शास्त्री के समय हो चुकी थी। यह काम तो हुआ पर उसके बाद उन सहित कोई प्रधानमंत्री इस महत्वपूर्ण अभियान को मुकम्मल करने का साहस, वैश्विक शक्तियों सहित, (जिसमें अमरीका शामिल है) नहीं कर पाया। पूर्व राष्ट्रपति आर. वेंकटरामन जो पहले रक्षा मंत्री भी रहे हैं कि पूरी तैयारी के बाद भी परीक्षण न कर पाने को लेकर एक कारण अमेरिका की निगरानी को माना गया है।


पूर्व केन्द्रीय मंत्री और वर्तमान में कांग्रेस के सांसद मनीष तिवारी ने अपनी किताब फ्लेश पांइन्टस 10-20 में लिखा है कि ऐसा माना जाता है कि अमरीका के दबाव के कारण अपने कार्यकाल (1991-96) में परमाणु परीक्षण नहीं कर पाये थे। मई 1996 में जब प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी बने तो नरसिम्हा राव ने उन्हें एक चिट देते हुये कहा कि सामग्री तैयार है, बस आगे बढ़ो और अटल जी ने बिना कोई परवाह किये परीक्षण कर डाला। 11 और 13 मई 1996 को एक के बाद एक पोखरण में पांच विस्फोट किये। पूरे विश्व में तहलका मच गया था। भारत में एकमात्र यह राजनैतिक दल था जो शुरू से आणविक हथियारों की वकालत करता रहा है। 1974 में जब इंदिरा जी के शासनकाल में प्रारंभिक परीक्षण किया था, तब भी उसका स्वागत किया था। परीक्षण के बाद भारत पर कई प्रतिबंध लगे और भारत ने उसका सामना किया। उनके कालखंड में विकास बढऩे और महंगाई नियंत्रण में होने की चर्चा तो जगज़ाहिर है। अब अटल जी के जीवन के कुछ और पहलुओं की चर्चा करते है।

ज़मीन छोड़ दी तो पैर कहाँ टिकेंगे?
यह विनोद का प्रसंग पत्रकार अटल जी का है। प्रारंभ में अटल जी ने पत्रकारिता से अपनी शुरुआत की। अखबारों की दुनिया में वह ट्रेड्ल मशीनों का युग था। उसे समय छपाई का कार्य ट्रेडल मशीनों पर होता था। जब अटल जी ने बतौर पत्रकार अपनी भूमिका शुरू की तो अखबार के पीर, भिश्ती, खर की भूमिका उन्होंने निभाई। लखनऊ से राष्ट्रधर्म के प्रकाशक राधेश्यामजी ने एक प्रसंग का उल्लेख कियाझ्रगर्मियों के दिन थे। नाना जी के कहने पर मैं प्रेस गया। पर्दे लगाकर केबिन बनाये गये थे। रात में काम खत्म हुआ तो दीनदयाल जी ने चादर तकिया दे दिया। प्रात:काल आँख खुली तो देखा नीचे ज़मीन पर दीनदयाल जी और अटल जी सोये हुये थे। तकिये के स्थान पर ईंट लगाकर रखी थी। मेरी आँखों में आंसू आ गये। तब अटल जी हँसते हुये बोले ज़मीन छोड़ दी तो पैर कहाँ टिकेंगे। सच में यह विनोद भी है और पत्रकारों के लिये संदेश भी है।


अटल जी देश के पहले कवि प्रधानमंत्री थे। कवि संवेदनशील होते हैं। वे वह भी देखते हैं जो दूसरे नहीं देख पाते। उनका लिखा हिन्दू रंग-रग जीवन, हिन्दू मेरा परिचय, राष्ट्र प्रेमियों का शाश्वत गीत बन गया है। अंत में स्वप्न दर्शी अटल जी का नदी जोडऩे का सपना अब साकार हो रहा है। छोटे राज्यों से तेज विकास की कल्पना के साथ धान का कटोरा छत्तीसगढ़ हमारे सामने साकार है।

लाजपत आहूजा ने अपनी यात्रा ग्वालियर स्वदेश से प्रारंभ की वे बाद में जनसंपर्क विभाग की सेवा में आए और विभिन्न ज्यादा रहने के बाद संचालक जनसंपर्क के पद से सेवानिवृत हुए लगातार समसामयिक विषयों पर लेखन करते रहे लाजपत आहूजा माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय में रजिस्टर भी रहे आज भी वे बहुत सक्रियता के साथ लेखन करते हैं सामाजिक मुद्दों पर हस्तक्षेप करते हैं भोपाल में रहते हैं

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