धमतरी जिले के गंगरेल स्थित मां अंगारमोती मंदिर में हर साल दिवाली के बाद मडई मेले के दौरान निसंतान महिलाओं के पेट के बल लेटने और बैगाओं के उनके ऊपर से गुजरने की परंपरा पर सवाल उठाते हुए अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने इस अमानवीय और अंधविश्वासी रिवाज को बंद करने की मांग की है। उन्होंने इस संबंध में धमतरी कलेक्टर को पत्र लिखकर हस्तक्षेप करने और परंपरा को रोकने की अपील की है।

डॉ. मिश्र ने कहा कि धार्मिक आस्था और पूजा की स्वतंत्रता सबको है, लेकिन महिलाओं के शरीर पर चलकर संतान प्राप्ति की कामना करना पूरी तरह से अवैज्ञानिक, अमानवीय और अपमानजनक है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संतानहीनता के लिए सिर्फ महिलाएं जिम्मेदार नहीं होतीं, पुरुष भी इसके लिए बराबर के उत्तरदायी हो सकते हैं।
क्या है यह परंपरा?
डॉ. मिश्र ने अपने पत्र में बताया कि उन्हें मिली जानकारी के अनुसार, धमतरी शहर से करीब 14 किमी दूर गंगरेल के पास अंगारमोती मंदिर में हर साल मडई मेला आयोजित होता है। इस आयोजन में क्षेत्र के 54 गांवों से देवी-देवताओं के विग्रह और बैगाओं की टोलियां मंदिर पहुंचती हैं। इसी दौरान एक परंपरा के तहत निसंतान महिलाएं नीबू, नारियल और अन्य पूजा सामग्री के साथ बाल खोलकर मंदिर के सामने पेट के बल लेट जाती हैं, और बैगाओं की टोली उनके ऊपर से चलते हुए मंदिर परिसर में प्रवेश करती है। इसे “परण” कहा जाता है।
पिछले वर्ष की मडई में 350 से अधिक महिलाएं इस परंपरा में शामिल हुई थीं।
डॉ. मिश्र की आपत्ति
डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा:
“संतान प्राप्ति के लिए इस प्रकार किसी महिला के ऊपर चलना यह मानना कि उसे संतान लाभ होगा, पूरी तरह से गैर-तार्किक, वैज्ञानिक दृष्टिकोण के खिलाफ और अंधविश्वास का प्रतीक है। इससे महिलाओं को आंतरिक चोटें भी लग सकती हैं। यह रिवाज महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है।”