कर्मागढ़ के मानकेश्वरी मंदिर में आज भी जारी है बलि प्रथा, शरद पूर्णिमा पर बकरों की बलि, बैगा पिता बने खून

रायगढ़ जिले के कर्मागढ़ में स्थित मानकेश्वरी मंदिर में आज भी सदियों पुरानी बलि प्रथा जारी है। शरद पूर्णिमा के अवसर पर यहां सैकड़ों बकरों की बलि दी जाती है। यह परंपरा रियासतकाल से चली आ रही है और हर साल हजारों श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए यहां पहुंचते हैं।

कर्मागढ़ गांव जंगलों से घिरा है और मंदिर रायगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित है। नवरात्र के दौरान यहां आस्था की ज्योति प्रज्वलित होती है और शरद पूर्णिमा के दूसरे दिन विशेष पूजा-अर्चना आयोजित होती है। परंपरा के अनुसार, बैगा के शरीर में माता मानकेश्वरी देवी का प्रभाव होता है और वही बकरे की बलि ग्रहण करते हैं।

मंदिर में रायगढ़ राजपरिवार की कुलदेवी मां मानकेश्वरी देवी विराजमान हैं। श्रद्धालु मन्नत पूरी होने के बाद बकरा लेकर मंदिर आते हैं। पूजा-अर्चना के दौरान लगभग 100 से अधिक बकरों की बलि दी जाती है और मेले जैसा माहौल बनता है।

विशेष महत्व की अंगूठी भी इस परंपरा का हिस्सा है। बलि पूजा के समय बैगा को राजपरिवार की ओर से अंगूठी पहनाई जाती है। यह अंगूठी इतनी कस जाती है कि प्रतीकात्मक रूप से माता का वास बैगा के शरीर में माना जाता है।

इतिहास के अनुसार, 1700 ईस्वी में हिमगिरि रियासत का एक राजा पराजित होकर कर्मागढ़ पहुंचा और देवी मां ने उसे मुक्त किया। 1780 में ईस्ट इंडिया कंपनी के अंग्रेजों के हमले के दौरान स्थानीय जंगल और मधुमक्खियों ने अंग्रेजों को पराजित किया, जिससे रायगढ़ राज्य स्वतंत्र हुआ।

मंदिर आज भी पूरे क्षेत्र में आस्था का केंद्र है और श्रद्धालु हर वर्ष नवरात्र और शरद पूर्णिमा पर यहां पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *