कांकेर। बस्तर दशहरा की तर्ज पर कांकेर राजमहल में देवमिलन व देवपूजा का कार्यक्रम प्रति वर्ष दशहरा पर्व पर आयोजन किया जाता है। दशहरा पर कांकेर राजमहल में देव पूजा कार्यक्रम सदियों से राजा महाराजाओं के जमाने से चली आ रही है जो आज भी राजा के वंशज इस परंपरा को निभा रहे हैं।
आयोजन दशहरा पर्व पर हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी ऊपर नीचे मार्ग पर स्थित राजभवन में होना है जो सुबह 11 बजें से आरंभ होगा । जिसमें शहर व आसपास के लगभग 40 गांवों के मंदिरों से पुजारी, गायता, गुनिया, सिरहा अपने – अपने देवी देवताओं व डांगडोली के साथ देव पूजा व देवमिलन समारोह में पहुंचते हैं। कांकेर के राजा कोमलदेव के वंशज अश्विनी प्रताप देव द्वारा देवताओं का पूजा अर्चना किया जाता है जिसके बाद दशहरा पर शहर में व आस-पास के गांवों में धूमधाम से बनाया जाता है।
कांकेर राजमहल मे आयोजित देव मिलन और देव पूजा वर्षों से होता आ रहा है और यह परम्परा आज भी जीवित है जिसे देखने के लिए भारी संख्या में ग्रामीण व शहरवासी मौजूद रहते हैं और पूरा कार्यक्रम राजमहल प्रांगण में देव परम्परा के अनुसार सम्पन्न किया जाता है।
राजमहल प्रति वर्ष दशहरा पर्व को प्रमुख लोगों की उपस्थिति में धूमधाम से मनाता है जिसमें भारी संख्या में विदेशी मेहमान भी पहुंचते हैं। वहीं विदेशी मेहमानों द्वारा इस पूरे दशहरा पर्व का लुप्त उठाते हुए अपने कैमरों में भी कैद करते हैं इसलिए कांकेर राजमहाल दशहरा पर्व विदेशों में भी प्रचलित हो गया है।
राजा के वंशजों द्वारा बस्तर दशहरा की तरह कांकेर दशहरा को मनाने की बात व कोशिश कई बार की गई लेकिन राजनैतिक शून्यता कहे या फिर आपसी सामंजस्य स्थापित नही होने के कारण मामला ठंडा पड जाता है, वरना जिस प्रकार बस्तर में दशहरा धूमधाम से मनाया जाता है उसी तरह कांकेर में भी राजमहल दशहरा बस्तर दशहरा का छोटा रूप देखने को मिलता।