छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सचिवालय सेवा भर्ती नियम 2012 में किए गए संशोधन को संवैधानिक ठहराते हुए कर्मचारियों द्वारा दाखिल सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। डिवीजन बेंच ने साफ कहा कि पदोन्नति कर्मचारियों का मौलिक अधिकार नहीं है, बल्कि यह केवल नियमों के आधार पर विचार किए जाने का अवसर मात्र है।

मामला क्या है?
राज्य सरकार ने 14 जून 2021 को अधिसूचना जारी कर संयुक्त सचिव, उप सचिव, अवर सचिव और अनुभाग अधिकारी जैसे पदों पर पदोन्नति के लिए स्नातक डिग्री अनिवार्य कर दी थी।
- इस फैसले को मंत्रालय के अनुभाग अधिकारियों, असिस्टेंट ग्रेड-1 समेत अन्य कर्मचारियों ने कोर्ट में चुनौती दी।
- उनका तर्क था कि सेवा के अंतिम चरण में नियम बदलना अनुचित है, कई कर्मचारी लंबे समय से काम कर रहे हैं और कुछ तो सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं।
- याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है।
सरकार का पक्ष
राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में कहा कि –
- उच्च पदों पर जिम्मेदारी अधिक होती है, इसलिए स्नातक डिग्री जैसी न्यूनतम योग्यता आवश्यक है।
- पदोन्नति कोई मौलिक अधिकार नहीं, बल्कि यह केवल नियमों पर आधारित अवसर है।
- नियमों में संशोधन करना सरकार का विशेषाधिकार है और यह न तो मनमाना है, न अवैध।
हाईकोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति संजय के. अग्रवाल और संजय कुमार जायसवाल की डिवीजन बेंच ने सरकार के पक्ष से सहमति जताई।
कोर्ट ने कहा–
- किसी कर्मचारी की व्यक्तिगत कठिनाई से कानून असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता।
- पदोन्नति मौलिक अधिकार नहीं है।
- स्नातक डिग्री को अनिवार्य करना न तो भेदभावपूर्ण है और न ही संविधान का उल्लंघन।
निष्कर्ष
इस फैसले से साफ है कि कर्मचारियों की वर्षों पुरानी दलीलें खारिज हो गई हैं और अब उच्च पदों पर पदोन्नति के लिए स्नातक डिग्री की अनिवार्यता कायम रहेगी।