दिगंबर जैन परंपरा में पर्युषण पर्व की शुरूआत आज से हो चुकी है। इस जैन धर्म के लोग पर्वाधिराज और पर्वों का राजा भी कहते हैं। जो कि दस दिवसीय आत्मशुद्धि, तपस्या, और क्षमा का संदेश देने वाला एक अहम त्योहार है, इस दौरान जैन अनुयायी आत्मचिंतन, उपवास, और प्रार्थना में लीन होकर अपने मन, वचन और कर्मों से हुई गलतियों के लिए मिच्छामि दुक्कड़म् (माफी) मांगते हैं और दूसरों को भी क्षमा करते हैं.
आत्मशुद्धि और आत्मनिरीक्षण:
पर्युषण पर्व भीतर ठहरने, यानी अपने मन और आत्मा में झाँकने का समय है, जिससे इंद्रियों और इच्छाओं को नियंत्रित कर आत्मशुद्धि की जा सके.
तपस्या और संयम
यह पर्व तपस्या और संयम का अवसर होता है, जिसमें जैन अनुयायी विभिन्न प्रकार के उपवास और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं.
अहिंसा और क्षमा
इस पर्व का मुख्य संदेश अहिंसा और क्षमा है. अंतिम दिन ‘उत्तम क्षमा’ या ‘मिच्छामि दुक्कड़म्’ की भावना से एक-दूसरे से माफी मांगी जाती है और दूसरों को भी क्षमा किया जाता है, जिससे आत्मा शुद्ध होती है.
सभी जीवों के प्रति मैत्री
क्षमा का भाव रखने से न केवल व्यक्तिगत शांति मिलती है, बल्कि सभी जीवों के प्रति करुणा और मैत्री का भाव बढ़ता है.
पर्युषण कैसे मनाया जाता है इस दौरान जैन समुदाय के लोग प्रार्थना, ध्यान और स्वाध्याय में लीन रहते हैं. पर्व का उद्देश्य क्रोध, अहंकार, लोभ, और मोह जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियों का त्याग करना है.
क्षमापना:
पर्व का अंतिम दिन ‘क्षमावाणी’ या ‘संवत्सरी’ के रूप में मनाया जाता है, जहाँ मिच्छामि दुक्कड़म् कहकर माफी मांगी और मांगी जाती है.