नहीं बन रहें हैं Dr. रमन सिंह राज्यपाल

नहीं बन रहें हैं Dr. रमन सिंह राज्यपाल

अमर अग्रवाल को और करना होगा इंतजार

सत्ता का नया प्रवेशद्वार सरगुजा संभाग बना


रायपुर। छत्तीसगढ़ के बहुप्रतीक्षित मंत्रिमंडल विस्तार के बाद उत्पन्न राजनीति स्थिति के बाद यह चर्चा जोरो पर है कि आने वाले समय में तीन बार के मुख्यमंत्री वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह के प्रशासनिक और राजनीतिक अनुभव को देखते हुए उन्हें निकट भविष्य में किसी बड़े राज्य का राज्यपाल बनाया जा सकता है। वहीं साय मंत्रिमंडल में स्थान पाने से वंचित भाजपा को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले स्व. लखीराम अग्रवाल के पुत्र बिलासपुर विधानसभा पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल को विधानसभा अध्यक्ष बनाये जाने की चर्चा जोरों पर है। किन्तु बहुत ही विश्वस्त और निकटतम सुत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार डॉ रमन सिंह ने छत्तीसगढ़ छोडऩे से इन्कार करते हुए किसी भी स्थिति में राज्यपाल नहीं बनाये जाने की इच्छा से हाईकमान को अवगत करा दिया है। अब जब डॉ रमन सिंह यथावत विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर आसीन रहेंगें। तो अमर अग्रवाल के विधानसभा अध्यक्ष बनाये जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता। छत्तीसगढ़ मंत्रीमंडल के विस्तार में जिस हरियाणा फार्मूला के अंतर्गत 12 के जगह 13 मंत्री बनाये गये है। उसे लेकर भी नेताप्रतिपक्ष डॉ चरणदास महंत सहित बहुत लोगों ने अपनी आपत्ती दर्ज की है। हो सकता है कि किसी अंदरखानें के नराज पावर फुल व्यक्ति की शह पर कांग्रेसी इस मामले को कोर्ट तक ले जायें। नवा रायपुर में मंत्रीयों के बंगले बनाने वाले ने भी कभी नहीं सोचा था की यहां पर 13 मंत्री होंगे, इसिलिए 12 मंत्रीयों के लिए बंगले बनाये गये है। अब जबकि नवंबर में प्रधानमंत्री नये विधानसभा भवन का लोकार्पण करने वाले हैं। ऐसी स्थिति में मंत्रीयों को भी वास्तविक रूप से नये रायपुर के बंगले में रहने जाना होगा। अभी कुछ मंत्रीयों ने$ गृह नाम मात्र को रहना शुरू कर दिया है किन्तु सबके बंगले रायपुर में ही आबाद है।

ज्ञातव्य है कि पिछले दिनों डा. रमन सिंह दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंन्द मोदी को नये विधानसभा भवन का न्यौता देने गये थे और छत्तीसगढ़ के रजत जयंती समारोह के दौरान 1 नवंबर को इसका उद्घाटन का आग्रह करके आये है। यदि प्रधानमंत्री इस दिन आते है तो इस दिन विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जायेगा। इसी बात को ध्याान में रखकर नये विधानसभा भवन को जोर शोर से चल रही है। किसी भी स्थिति में इसे 30 अक्टूबर को पूरा कर लिया जायेगा।

साय मंत्रिमंडल के विस्तार में 3 नये नए चेहरे को शामिल किया गया है। जिसमें एक चेहरा जातिगत समीकरण में, दूसरा चेहरा आरएसएस के पृष्ठभूमि की वजह से, तीसरा चेहरा राजेश अग्रवाल जो कि अम्बिकापुर से आते है जिन्होनें अपने सबसे खास टीएस सिंहदेव को हराया है। जो व्यापारी वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है उसका एन्ट्री बिजनेस क्लास के जरिए हुई है। नये मंत्रीमंडल में मंत्री बनाये गये गुरू खुशवंत साहेब और राजेश अग्रवाल चुनाव के पहले कांग्रेस में थे। चुनाव के समय बीजेपी में आकर टिकट पाकर पहली बार विधायक बने और उन्हें बड़े-बड़े दिग्गजों को किनारे करके मंत्री बनाये गये। लोगों का कहना है कि बीजेपी कुछ साल पहले तक विचारधारा की बात करती थी, लेकिन अब यहां किसी भी तरह जीत दर्ज कर ‘ऐन केन प्रकारणे’ के सिद्धांत लागू है। समर्पित कार्यकर्ता संघ के प्रति निष्ठा और पार्टी को आगे बढ़ाने जीत दिलाने से ज्यादा महत्वपूर्ण दूसरे समीकरण हो गये हैं।

प्रदेश की जनता को उसी तरह का सरप्राराइस मिला जैसा विष्णु देव साय को मुख्यमंत्री बनाये जाने के समय मिला था। मुख्यमंत्री की रेस में बहुत सारे चेहरे थे उन्हें मंत्रीमंडल में तक स्थान नहीं मिला। इसी तरह मंत्रीमंडल विस्तार में भी न केवल जनता चकित हैं बल्कि बहुतो के लिए विस्तार समझ से परे रहा। इसकी वजह मंत्रीमंडल में उन नामों का नहीं होना जिसकी ज्यादा चर्चा थी। पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. रमन सिंह के दिल्ली दौरे पर गये तो उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से हुई मुलाकात की। तब बहुत सारे लोगों द्वारा सोशल मीडिया पर यह दावा किया गया कि उन्हें जल्द ही राजनीति में नई भूमिका मिल सकती है। हाल ही में महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को एनडीए ने उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है। इसके बाद खाली हुए राज्यपाल पद को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि इस पद के लिए डॉ. रमन सिंह का नाम भी सामने आ सकता है। यह अटकले निर्मूल साबित हुई। इसी तरह वरिष्ठ भाजपा विधायक अमर अग्रवाल को विधानसभा अध्यक्ष बनाने की बात की जा रही है। वहीं मंत्री पद की दौड़ में रहे पुरंदर मिश्रा को डिप्टी स्पीकर बनाकर उनकी नाराजगी दूर की जा सकती है। यह बात भी मीडिया जगत में फैलाई गई किन्तु अभी ऐसा कुछ नही है। हो सकता है आने वाले दिनों में बचे हुए निगम मंडल आयोग में बहुत से सीनियर और प्रभावी नेताओं को शामिल किया जाये। साय मंत्रीमंडल में सर्वाधिक मंत्री सरगुजा संभाग से हैं। इसका कारण यह बताया जाता है कि पिछले दो चुनावों से एक ही पार्टी को सभी सीटें देने वाला संभाग हो गया है। यानी कि सत्ता का नया प्रवेशद्वार सरगुजा संभाग है।

इसके पहले बस्तर संभाग से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंहदेव को मंत्री बनाने की चर्चा जोरों पर थी, किन्तु उन्हे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व दे दिया गया। अभी बस्तर से केवल केदार कश्यप मंत्री हैं। सरगुजा से बीजेपी को अगर 14 में 14 सीटें मिलीं तो बस्तर की 12 में से आठ सीटें आईं। सरगुजा को अगर 14 में पांच का प्रतिनिधित्व मिल रहा जिनमें रामविचार नेताम, श्यामबिहारी जायसवाल, लक्ष्मी राजवाड़े और अब राजेश अग्रवाल मंत्री हैं तो बस्तर में यह असंतुलन क्यों है। बस्तर में विधायकों की संख्या को और वहां के क्षेत्रफल और स्थितियों को देखते हुए कम से कम और दो विधायकों को मंत्री बनाये जाने की बात भी लोग कर रहें हैं। अब लगता नहीं की निकट भविष्य में मंत्रिमंडल में कोई भी फेर बदल होगा। फिर भी राजनीति में कुछ कहा नहीं जा सकता और खास करके भाजपा की मौजूदा राजनीति में। बिहार चुनाव और जातिगत जनगणना के बाद ऊंट किस करवट बैठता है यह देखने वाली बात होगी। जब भी पार्टी की ओर से बड़ा आयोजन हो या प्रदर्शन या सम्मेलन रायपुर के विधायक चाहे वो बृजमोहन अग्रवाल हो या राजेश मूणत मंत्री की रूप में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण सबसे ज्यादा हुआ करती थी। अब ये जिम्मेदारी किसे सौंपी जायेगी ये चर्चा का विषय है। विधानसभा सत्र में सत्ता पक्ष के वरिष्ठ विधायकों के तेवर पर भी संगठन की नजर रहेगी। विधायकों की टिकट और तेवर दोनों का गंतव्य संबंध है। सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास ही भविष्य का मार्ग प्रशस्त्र करेगा।

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