MNREGA work- मनरेगा के काम से शहर में मजदूरों के बढ़ गए दाम

छह सौ रुपए तक बढ़ गई दिहाड़ी मजदूरी

राजकुमार मल

भाटापारा- 350 से 600 रुपए प्रतिदिन। बेहद कमजोर उपभोक्ता खरीदी के बावजूद बढ़ी हुई यह मजदूरी, खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां और संस्थानें स्वीकार कर रहीं हैं। असर उस खुदरा बाजार पर पड़ रहा है, जहां कीमतें मजबूत हो चलीं हैं।

गांवों में चल रहे रोजगारमूलक काम ने अब श्रम बाजार में तेजी लानी चालू कर दी है। पहला असर थोक और खुदरा बाजार पर देखा जा रहा है, जहां रोजी के आधार पर श्रमिक रखे जाते हैं। दूसरा क्षेत्र वह खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां है, जहां बाजार की मांग बेहद कमजोर है।

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फिलहाल ऐसी है दैनिक मजदूरी

रेलवे स्टेशन के करीब लगता है श्रम बाजार। करीबी गांवों से पहुंचने वाले श्रमिकों में से कुशल श्रमिकों ने 500 से 600 रुपए प्रतिदिन श्रम दर तय कर दी है जबकि अर्ध कुशल श्रमिकों ने खुद होकर 400 से 450 रुपए रोजी तय की हुई है। सीधे कार्यस्थल पर पहुंचने वालीं महिला श्रमिकों ने भी 350 से 400 रुपए जैसी श्रम दर का लिया जाना निश्चित कर दिया है। विवशता में नियोक्ता यह श्रम दर स्वीकार कर रहे हैं।

यहां नियमित

खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के बाद कपड़ा और किराना बाजार को नियमित रूप से श्रमिकों की जरूरत होती है। निर्माण क्षेत्र फैला हुआ है, जहां अच्छी-खासी संख्या में श्रमिकों की जरूरत होती है। बढ़ी हुई मजदूरी दर को लेकर यह क्षेत्र भी विवश है और स्वीकार कर रहे हैं यह दर क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगारमूलक काम चल रहे हैं जिसका असर कमजोर श्रम की उपलब्धता के रूप में देखा जा रहा है, यही वजह है कि मजदूरी दर बढ़ी हुई है।

असर उपभोक्ताओं पर

पहले से ही उपभोक्ता सामग्रियों की दरें बढ़ी हुई हैं। ऐसे में मजदूरी दर में हुई वृद्धि ने खरीदी जाने वाली सामग्रियों की कीमत में स्वाभाविक रूप से असर डालना चालू कर दिया है। इसलिए खरीदी की मात्रा कम करने में लगे हुए हैं उपभोक्ता। यह दूसरा ऐसा झटका है खुदरा बाजार के लिए, जिससे राहत के उपाय फिलहाल नजर नहीं आ रहे हैं। थोड़ी-बहुत रौनक साप्ताहिक बाजार के दिनों में होती है। शेष दिन सिर्फ प्रतीक्षा में गुजर रहे हैं।

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