0 प्वाइंटर- हालत पस्त मिठाई और नमकीन भंडार की
राजकुमार मल
भाटापारा- महंगी होती कच्ची सामग्री से राहत के उपाय तो जैसे- तैसे खोज लिए जाएंगे लेकिन उस प्रतिस्पर्धा से बचाव कैसे करें जो मिठाई बाजार में बढ़ रही है।
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बढ़ रही लागत, घट रहा लाभ
राजकुमार मल
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ऐन सीजन के दिनों में मंझोली दुकानें पहली बार ऐसे संकट से दो-चार हो रहीं हैं, जिसकी कल्पना भी नहीं की थी। फौरी राहत के उपाय के बीच अब ध्यान उस ग्रामीण मांग की ओर है, जहां बढ़त के अवसर अभी भी हैं। यह इसलिए क्योंकि यह क्षेत्र कम कीमत वाली मिठाइयों और नमकीन की खरीदी को प्राथमिकता दिए हुए हैं।
दोतरफा संकट
तेल, मैदा, सूजी और बेसन के साथ सूखे मेवों के दाम जिस अनुपात में बढ़ रहे हैं, उसने मिठाई निर्माण की लागत बढ़ाई हुई है। दूसरा संकट स्वीट कॉर्नरों की बढ़ती संख्या और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के रूप में सामने है। यह ऐसी दिक्कत है जिससे मिठाइयों की मंझोली दुकानें मझधार में आ चुकीं हैं। यह समस्या नमकीन सेंटरों में भी नजर आने लगी है।
कम यह भी नहीं
मिठाई ही नहीं, नमकीन भी पैक में आने लगे हैं। कुल बाजार के लगभग 30% हिस्से में कब्जा कर चुकी यह सामग्री भी मंझोली दुकानों की समस्या बढ़ा रहीं हैं क्योंकि शहरी उपभोक्ता मांग दोनों किस्म की पैक्ड सामग्री में बढ़ रही है। यह ऐसा झटका है, जिससे बचाव के उपाय खोजने पर भी नहीं मिल रहे हैं।
बेहतर की तलाश यहां
मिठाई और नमकीन बाजार इस वक्त शहरी और ग्रामीण जैसी मांग में विभक्त हो चुका है। जहां शहरी उपभोक्ता बड़ी संस्थानों और पैक्ड प्रोडक्ट की खरीदी को प्राथमिकता दिए हुए हैं, वहीं ग्रामीण खरीदी में मंझोली दुकानें अव्वल नंबर पर हैं। इसलिए यह बाजार अब ग्रामीण रुचि और क्रय शक्ति पर ध्यान देते हुए घटते बाजार को थामने की योजना पर काम कर रहा है।