God is a great power : भगवान एक विराट्-शक्ति है…..आइये जानें

God is a great power :

God is a great power : भगवान एक विराट्-शक्ति है

 

God is a great power : “हर्बर्ट स्पेन्सर” की दृष्टि में भगवान एक विराट्-शक्ति है जो संसार की सब गतिविधियों का नियंत्रण उसी प्रकार करते हैं, जिस प्रकार मुखिया घर का, प्रधान गाँव का, कलेक्टर जिले का, गवर्नर प्रदेश का और राष्ट्रपति सारे राष्ट्र की भोजन, वस्त्र, सुरक्षा आदि की व्यवस्था करता है।

उन्होंने कहा- “राज्य के नियमों हम इसलिये आदर करते हैं; क्योंकि हमें राज्य की शक्ति भय होता है। “नैतिक नियमों” का पालन न करने पर भी हमें भय लगता है, जबकि हम उसके लिए पूर्ण स्वतंत्र होते हैं, यह इस बात का प्रमाण है कि संसार में कोई सर्वोच्च सत्ता काम करती है, न हम उसके परिचय में कभी न कभी रहे हैं; क्योंकि हम डरते हैं, “निर्भीक व्यक्ति” “नैतिक व्यक्ति” ही हो सकता है, इसलिये उसे संसार की व्यवस्था ईमानदारी और न्याय से करने वाला प्रजावत्सल होना चाहिए।”

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सुप्रसिद्ध दार्शनिक कांट ने हर्बर्ट स्पेन्सर के कथन को और अधिक स्पष्ट किया है। वह लिखते हैं- “नैतिक नियमों” की स्वीकृति ही परमात्मा के अस्तित्व का प्रमाण और पूर्ण “नैतिकता” ही उसका स्वरूप है। संसार का बुरे से बुरा व्यक्ति भी किसी-न-किसी के प्रति “नैतिक” अवश्य होता है। चोर डकैत भी नहीं चाहते कि कोई उनसे झूठ बोले, छल या कपट करे, जबकि वे स्वयं सारे जीवन भर यही किया करते हैं। अपने भीतर से “नैतिक नियमों” की स्वीकृति इस बात का प्रमाण है कि संसार केवल “नैतिकता” के लिए ही जीवित है ।उसी से संसार का निर्माण, पालन और पोषण हो रहा है, इसलिए भगवान् “नैतिक-शक्ति” के रूप में माना जाने योग्य है।

हिब्रू ग्रंथों में ईश्वर को “जेनोवाह” कहा गया है। “जेनोवाह” का अर्थ है- “वह जो सदैव सत्य नीति ही प्रदान करता है।” मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को ठगता देखा जाता है; पर पाया गया है कि ऐसा व्यक्ति कुछ ही दिनों में लोगों के आदर से, सम्मान से वंचित हो जाता है।

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God is a great power :  कभी-कभी तो ऐसे लोगों की इसी जीवन में दुर्गति होते देखी गई है। इस सबका यह अर्थ है कि विश्व की संपूर्ण व्यवस्था किसी “सत्य” के आधार पर चल रही है। जो भी उससे हटने का प्रयत्न करता है, वह पीड़ित और प्रताड़ित होता है, जबकि इन नियमों पर आजीवन आरूढ़ रहने वाले व्यक्ति सांसारिक दृष्टि से “कुछ घाटे” में भी रहें, तो भी उनकी “प्रसन्नता” में कोई अंतर नहीं आता।

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