दिलीप गुप्ता
Saraipali latest news : बैन की गई दवाइयों के निर्माताओं पर कड़ी कार्यवाही हो
इस कृत्य को संगठित अपराध के रूप में देखा जाए
Saraipali latest news : सरायपाली :- “चोला माटी के हे राम… एखर का भरोसा चोला माटी के हे रे…” यह पंक्तियाँ जीवन के अस्थायी और नश्वर होने की सच्चाई को दर्शाती हैं। शरीर को “माटी का चोला” कहकर, यह संदेश दिया जाता है कि यह शरीर नाशवान है, और इसका स्थायित्व सीमित है। लेकिन यदि जीवन ही अस्थिर हो और मानव शरीर पर संकट के बादल नकली दवाइयों के रूप में मंडराने लगें, तो यह स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है। नकली दवाइयों का मानव समाज पर जो प्रभाव पड़ रहा है, वह एक गंभीर समस्या है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।
छत्तीसगढ़ रक्तदान सेवा समिति सरायपाली के संस्थापक मुस्तफीज आलम ने देश की सबसे बड़ी ड्रग रेगुलेटरी बॉडी सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गेनाइजेशन द्वारा जारी 53 दवाइयों के क्वालिटी टेस्ट में फेल होने को एक गंभीर चिंता का विषय बताया है ।उन्होंने कहा कि नकली दवाइयों का निर्माण और वितरण एक संगठित अपराध के रूप में उभर रहा है, जिसका सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य और जीवन पर पड़ता है। इन दवाइयों में सक्रिय घटक या तो न के बराबर होते हैं या फिर अत्यधिक खतरनाक रसायनों से युक्त होते हैं, जो न केवल बीमारी को ठीक करने में विफल रहते हैं, बल्कि रोगी की स्थिति को और भी बदतर बना देते हैं। भारत जैसे देश में, जहां चिकित्सा सुविधाओं तक आम लोगों की पहुँच सीमित है, नकली दवाइयों का फैलाव विशेष रूप से घातक है।
इन दवाइयों के इस्तेमाल से कई बार रोगी को स्थायी नुकसान होता है, और कुछ मामलों में मृत्यु भी हो सकती है। नकली दवाइयों के कारण रोगों का सही उपचार नहीं हो पाता, जिससे लोग लंबे समय तक बीमार रहते हैं, और उनका शारीरिक, मानसिक और आर्थिक बोझ बढ़ता जाता है।
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इस समस्या का एक और गंभीर पहलू है—नकली दवाइयाँ स्वास्थ्य तंत्र में विश्वास को कमजोर करती हैं। जब लोग इलाज के दौरान सही परिणाम नहीं पाते, तो उनका भरोसा चिकित्सा प्रणाली से उठ जाता है। नतीजतन, वे या तो इलाज करवाना बंद कर देते हैं या फिर झाड़-फूँक और अन्य अवैज्ञानिक उपचारों की ओर रुख करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि स्वास्थ्य समस्याएँ और भी बढ़ जाती हैं।
नकली दवाइयों के बढ़ते प्रसार का एक प्रमुख कारण उनकी अवैध आपूर्ति और वितरण नेटवर्क है, जिसे सरकारी नियमों और कानूनों की कमजोरियों का लाभ मिलता है। कई बार ये दवाइयाँ असंगठित फार्मेसियों, ऑनलाइन प्लेटफार्मों और बिना लाइसेंस वाले विक्रेताओं द्वारा बेची जाती हैं, जिससे उनकी पहचान करना और उन पर कार्रवाई करना मुश्किल हो जाता है।
इस समस्या से निपटने के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करना होगा। नकली दवाइयों की पहचान और उनके खिलाफ सख्त कानून बनाए जाने चाहिए। इसके अलावा, आम जनता को भी जागरूक करना बेहद जरूरी है कि वे केवल प्रमाणित फार्मेसियों से ही दवाइयाँ खरीदें और किसी भी संदिग्ध दवा की सूचना तुरंत स्वास्थ्य विभाग को दें।
Saraipali latest news : अंत में, “चोला माटी के” इस विचारधारा के संदर्भ में नकली दवाइयों से जुड़ी समस्या एक गहरी चेतावनी देती है कि यदि हम इस मुद्दे को हल्के में लेते हैं, तो यह हमारे जीवन की गुणवत्ता को और भी खराब कर सकता है। जीवन पहले से ही नश्वर है, और यदि हम स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह रहते हैं या नकली दवाइयों जैसी चुनौतियों का सामना नहीं करते, तो हम इस नश्वरता को और भी अधिक संकटपूर्ण बना देंगे। इसलिये हमें सतर्क रहकर और सही कदम उठाकर अपने और समाज के स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी।
संस्थापक मुस्तफीज आलम ने केंद्र सरकार व संबंधीत मंत्रालय से मांग की है कि यह एक संगठित अपराध है वह क्वालिटी में फेल हुवे दवाई निर्माताओं पर कड़ी कार्यवाही मानव जीवन को देखते हुवे आवश्यक है ।