हाईकोर्ट का अहम फैसला: “आई लव यू” कहकर हाथ पकड़ना और खींचना महिला की मर्यादा भंग करना है,
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने महिला गरिमा से जुड़े मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी लड़की से “आई लव यू” कहना, उसका हाथ पकड़ना और जबरन अपनी ओर खींचना महिला की मर्यादा भंग करने की श्रेणी में आता है तथा यह आपराधिक कृत्य है। हालांकि, आरोपी नाबालिग हैं, इसलिए pजस्टिस एन.के. चंद्रवंशी की सिंगल बेंच ने रायगढ़ की फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा दी गई 3 साल की सजा को घटाकर 1 साल कर दिया। आरोपी फिलहाल जमानत पर है, लेकिन उसे शेष सजा भुगतने के लिए आत्मसमर्पण करने के निर्देश दिए गए हैं।
मामला रायगढ़ जिले के भूपदेवपुर थाना क्षेत्र का है। 28 नवंबर 2019 को एक छात्रा स्कूल से घर लौट रही थी। आरोपी रोहित चौहान (19) ने उसका हाथ पकड़कर “आई लव यू” कहा और जबरन अपनी ओर खींचने की कोशिश की। विरोध करने पर आरोपी ने गाली-गलौज किया। पीड़िता की छोटी बहन एवं एक सहेली ने बीच-बचाव किया। घर पहुंचकर पीड़िता ने मां को घटना बताई और पिता के साथ थाने में शिकायत दर्ज कराई।
रायगढ़ फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 20 मई 2022 को आरोपी को आईपीसी धारा 354 (महिला की मर्यादा भंग करना) एवं पॉक्सो एक्ट धारा 8 के तहत दोषी ठहराते हुए दोनों में 3-3 साल की सजा एवं एक-एक हजार रुपये जुर्माना लगाया था। आरोपी ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की।
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान आरोपी की ओर से तर्क दिया गया कि पीड़िता की नाबालिग उम्र साबित नहीं हुई। स्कूल रिकॉर्ड में जन्मतिथि 15 जून 2005 दर्ज थी, जबकि पिता ने गवाही में जन्म वर्ष 2003 बताया। जन्म प्रमाणपत्र या आधार कार्ड जैसे प्रामाणिक दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए गए। इस विरोधाभास के आधार पर हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट की धारा रद्द कर आरोपी को इससे बरी कर दिया।
हालांकि, आईपीसी धारा 354 के तहत दोष साबित मानते हुए कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की। जस्टिस चंद्रवंशी ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि मर्यादा भंग का अर्थ केवल शारीरिक हमला नहीं, बल्कि महिला की गरिमा, आत्मसम्मान एवं यौन शीलता को ठेस पहुंचाना भी है। आरोपी का कृत्य स्पष्ट रूप से इस श्रेणी में आता है।
परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने सजा को 3 साल से घटाकर 1 साल कर दिया तथा आत्मसमर्पण के निर्देश दिए। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यह फैसला महिलाओं के प्रति अशोभनीय व्यवहार पर सख्त संदेश देता है।