(Gandhi ji) सुभाष मिश्र की कलम से – गांधीजी का जीवन सिद्धांत ‘गांधीवाद’ आज भी अमर है…

(Gandhi ji)

-सुभाष मिश्र

(Gandhi ji) सुभाष मिश्र की कलम से – गांधीजी का जीवन सिद्धांत ‘गांधीवाद’ आज भी अमर है…

बीसवीं सदी महान विरोधाभास से भरा रहा है, पिछली सदी में जितना विरोधाभास दिखा इतिहास में उतना बहुत कम देखने को मिलता है, जिस सदी में दो विश्व युद्ध हुए। जिस सदी में दुनियाभर के उपनिवेश खुद को गुलामी की जंजीरों से मुक्त होने के लिए महान संघर्ष करते हैं, इस दौरान भीषण हिंसा का दौर चलता है। उसी सदी में दुनिया को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले व्यक्तियों में महात्मा gandhi भी शामिल हैं। भारत की आजादी के साथ ही समाज में सुधार लाने के लिए सत्य और अहिंसा का उनका मार्ग उस दौर में चल रहे युद्ध और हिंसा से एकदम विपरित था।
बिना किसी हथियार लिए उस दौर में दुनिया में सबसे शक्तिशाली माने जाने वाले ब्रिटिश सम्राज्य से टकराना अविश्वसनीय ही था। हालांकि बापू जिस मार्ग पर चल रहे थे उस पर आज तो बहुत ज्यादा विरोध नजर आता है, उस वक्त भी उनसे मतभेद रखने वालों की संख्या बहुत ज्यादा थी। 30 जनवरी 1948 को ही गांधी जी की हत्या कर दी, लेकिन उनका जीवन सिद्धांत गांधीवाद अमर है भले उस पर कितनी भी बहस कर ली जाए, गांधी को भला बुरा कहना सबसे आसान है, लेकिन बापू हमें कठिन से कठिन परिस्थिति में अहिंसात्मक संघर्ष की राह हमेशा दिखाते रहेंगे। विश्व कल्याण, जिसमें अंतिम व्यक्ति की चिंता और हित निहित है, का विचार जब जब केन्द्र में होगा तब तब उस दुरूह लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमारे पास गांधी के बताए रास्ते मार्गदर्शक के रूप में होंगे।
gandhi में अक्सर कोई न कोई विवादित टिप्पणी या कोई फिल्म या किताब कुछ न कुछ अंतराल में आते रहते हैं… हाल ही में असगर वजाहत के नाटक पर बनी फिल्म गांधी और गोडसे को लेकर भी कई लोगों ने विवादित टिप्पणी की है, अशोक पांडेय इस फिल्म को लेकर असगर वजाहत को निशाने पर लेते हुए लिखते हैं इतिहास आपकी इस गद्दारी के लिए माफ नहीं करेगा, इतिहास भी व्हाट्स एप्प विश्वविद्यालय से परोस दिया। असगर साहब ने फि़ल्म पर आपत्तियों के बाद एक इंटरव्यू में कहा कि वे इसे आभासी इतिहास बताते हुए बता रहे हैं कि इस फि़ल्म में न कोई नायक न खलनायक है न किसी को ऊपर उठाया न नीचे गिराया और इतिहास के साथ पूरी ईमानदारी बरती गई है।
30 जनवरी 1948 को गांधी पर पहला आक्रमण नहीं था। लोकतंत्र व स्वाधीनता विरोधी कुटिल इरादे 1934 से गांधी का पीछा कर रहे थे। ज्यों-ज्यों आजादी की लड़ाई परवान चढ़ती गई, त्यों-त्यों गांधी को खत्म करने की साजि़शें तेज होती गई। जैसे- जैसे भारत संवैधानिक लोकतंत्र के लक्ष्य को हासिल करने की तरफ बढ़ता गया, इन ताकतों में गांधी की आवाज़ को खामोश कर देने की व्यग्रता बढ़ती गई। भारत के भविष्य को 15 अगस्त, 1947 और 26 जनवरी, 1950 की दो ऐतिहासिक तारीख़ें गढ़ रही थी। ये थी आजादी और लोकतंत्र की तारीखें। 1947 से 1950 के बीच आई 30 जनवरी, 1948 की वह कलुषित शाम। यह थी भारत की आजादी और लोकतंत्र को पटरी से उतारने की एक बड़ी कोशिश। इस घटना से बर्बरता की जिस धारा की पहचान हुई, वह अब भी हवाओं में जहर घोल रही है। अब भी इंसानियत के उसूलों के लिए एक चुनौती बनी हुई है।
gandhi गोडसे एक युद्ध के बारे में शशिभूषण की ये
पांच बातें बेहद महत्वपूर्ण हैं-
1. फि़ल्म की कहानी मौलिक है। इसकी मौलिकता अभूतपूर्व है। रिमेक और सीक्वेल के व्यापारिक दौर में यह फि़ल्म लेखन का भी सम्मान है। इस कहानी में राजनीति-विचार-मनुष्यता-प्रेम एक फैंटेसी के शिल्प में हैं। 2. यह फि़ल्म बुरे और अच्छे के परस्पर संवाद का अहिंसक रोचक और मार्मिक निर्वाह करती है। इस प्रकार इसमें एक महा साहित्यिक परिश्रम है। यह नामुमकिन को परदे पर मुमकिन करती है। 3. महात्मा गांधी की केवल हत्या करवाकर नाथूराम गोडसे को हीरो बनाया गया। न केवल हीरो बनाया गया बल्कि देश को ही सांप्रदायिकता वारियर्स के हाथों जाना पड़ा। दुर्भाग्य इतना ही नहीं भारत में गोडसे के मंदिर तक हैं। फि़ल्म इस अंतरकथा को दर्शकों के सामने ‘हाथ कंगन को आरसी क्याÓ बनाकर पेश कर देती है। 4. इस फि़ल्म में ए आर रहमान का संगीत है। इसे राजकुमार संतोषी जैसे फिल्मकार ने बनाया। इसमें नरसी मेहता का महानतम भजन है। इसे असगर वजाहत जैसे श्रेष्ठ और भारतीय साहित्य के गौरव लेखक ने लिखा। 5. यह फि़ल्म लोगों की सृजनात्मक एकजुटता का महत्व बताती है, झूठे आरोपों के मीडिया प्रसार का पर्दाफाश करती है। दर्शकों पर न केवल यकीन बल्कि उनसे प्यार करती है। देशभक्ति के मायने बताती है। अमेरिका के प्रसिद्ध अश्वेत नेता मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने जब भारत दौरा किया तो उन्होंने इसे ‘तीर्थयात्राÓ कहा था। इसका एकमात्र कारण गांधी जी थे। गांधी जी के सिद्धांतों के कारण भारत की धरती को ‘तीर्थ स्थल करार देकर उन्होंने भारत का मान बढ़ाया।
उन्होंने gandhi के सिद्धांतों के बारे में यह बेहद कथन कहा है जिसे हमें जरूर याद करना चाहिए। मार्टिन लूथर कहते हैं कि गांधी के विचारों का अनुसरण कर वह इस नतीजे पर पहुंचे कि ‘प्रेम और अहिंसा किसी सामाजिक-सामूहिक परिवर्तन के लिए भी शक्तिशाली उपकरण साबित हो सकते हैं। उन्होंने कहा था, ‘जो बौद्धिक-नैतिक संतुष्टि मैं बेथम और मिल के उपयोगितावाद, माक्र्स और लेनिन की क्रांतिकारी पद्धतियों, हॉब्स के सामाजिक सिद्धांत और नीत्शे के दर्शन में भी नहीं पा सका, वह मुझे गांधी के अहिंसक प्रतिरोध के दर्शन में मिला।
कुछ साल पहले राजू हिरानी ने गांधीवाद को आधुनिक जीवन से जोड़कर शानदार फिल्म बनाई। दक्षिण अफ्रीका के महान नेता नेल्सन मंडेला ने भी गांधी की ही तरह स्थानीय लोगों में अहिंसा की धारा का प्रवाह तेज करने में कामयाब रहे। कोई किसी से कितना प्रभावित हो सकता है, मंडेला इसकी मिसाल हैं। रंगभेद के खिलाफ लड़ाई में मंडेला को 27 वर्षों तक जेल में यातनाएं झेलनी पड़ीं, लेकिन जैसे gandhi ने विश्व युद्ध के बाद के हालात में असहयोग, अहिंसा और सत्य का मार्ग बुलंद किया, ठीक उसी तरह तमाम विषम और हिंसक परिस्थितियों के बावजूद मंडेला गांधीवादी तौर-तरीकों पर टिके रहे।
अपने लोकतांत्रिक अधिकारों को पाने के लिए गांधीवाद का सहारा अवश्य लिया जा सकता है, ये सभी काल परिस्थिति में एक उजली राह है। गांधी भारत की मिट्टी के ऐसे सपूत थे जिन्होंने विश्वपटल पर भारत की ‘बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय वाली छवि प्रस्तुत की। शायद गांधी इकलौते भारतीय हैं जो समूची विश्व बिरादरी के लिए प्रेरणास्नोत हैं। अपने जीवन काल में उन्होंने सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, भाषाई, मानवतावादी आदि सभी पक्षों को अपने जागरण और सत्याग्रह अभियान से जोड़े रखा। ये सभी विषय आज भी पूरी दुनिया के लिए प्रासंगिक हैं।

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