Xi Jinping threatens all of Asia शी जिनफिंग से पूरे एशिया में खतरा

Xi Jinping threatens all of Asia

हरिशंकर व्यास

Xi Jinping threatens all of Asia शी जिनफिंग से पूरे एशिया में खतरा

Xi Jinping threatens all of Asia
Xi Jinping threatens all of Asia शी जिनफिंग से पूरे एशिया में खतरा

Xi Jinping threatens all of Asia चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग पूरे एशिया के लिए खतरा बन रहे हैं। उनकी अनुदारवादी और सैन्य ताकत के दम पर भौगोलिक विस्तार करने की नीतियों ने पूरे एशिया को संकट में डाला है। अगले दो महीने में चीन में चुनाव होने वाले हैं, जिसमें शी जिनफिंग एक बार फिर नेता चुने जाएंगे।

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में शी की नीतियों पर सवाल उठाने वाले जो थोड़े से लोग बचे हैं वे सारे लोग इस बार चुनाव में रिटायर कर दिए जाएंगे। उसके बाद एक तरह से पूरी पार्टी और समूचे सिस्टम पर उनका एकछत्र राज होगा।

उन्होंने अमेरिका को हटा कर चीन को दुनिया की नंबर एक महाशक्ति बनाने का ख्वाब देखा है और इसे पूरा करने का वे जो भी प्रयास करेंगे, उससे खतरा तो पूरी दुनिया के लिए पैदा होगा, लेकिन एशिया के देश सबसे ज्यादा भुगतेंगे।

शी जिनफिंग ने ताइवान के प्रति अपनी नीति की वजह से परमाणु युद्ध की स्थिति पैदा कर दी है। पहली बार ऐसा हुआ कि अमेरिका ने परमाणु हथियारों से लैस अपने दो युद्धपोत ताइवान स्ट्रेट में उतारा।

इसके बाद चीन बैकफुट पर आया, उसका सुर बदला लेकिन वह ताइवान की घेराबंदी नहीं खत्म कर रहा है और न ताइवान के आसपास चल रहा सैन्य अभ्यास समाप्त कर रहा है।

 

वह दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप बना कर उस पर सैन्य ठिकाना बना रहा है। उसने समूचे दक्षिण चीन सागर को मिलिट्राइज कर दिया है। यहीं काम वह हिंद महासागर में भी कर रहा था तभी अमेरिका ने धमकाने के अंदाज में कहा कि हिंद महासागर सबके लिए खुला होना चाहिए।

अमेरिका की सीधी चेतावनी के बावजूद शी जिनफिंग इस जिद पर अड़े हैं कि ताइवान पर कब्जा करना है क्योंकि वह चीन का हिस्सा रहा है। दूसरी ओर ताइवान भी अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए तैयार है।

चीन ने जमीनी सीमा पर भारत की घेराबंदी के लिए श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देशों को अपनी आर्थिक कॉलोनी बनाई है। उसने दोनों को कर्ज के जाल में ऐसा फंसाया है कि दोनों देशों के लिए उसकी बात काट सकना संभव नहीं है।

श्रीलंका में हाल में देखने को मिला कि भारत के विरोध के बावजूद चीन का जासूसी जहाज एक हफ्ते के लिए कोलंबो के हंबनटोटा बंदरगाह पर खड़ा रहा।

भारत को चिंता है कि यह जासूसी जहाज भारत के परमाणु संयंत्रों और रणनीतिक ठिकानों पर नजर रखने और उनके बारे में सूचना जुटाने के लिए श्रीलंका के बंदरगाह पर खड़ा रहा।

श्रीलंका ने भारत के दबाव में पहले चीन को मना किया था लेकिन अंत में उसको चीन के सामने घुटने टेकने पड़े। वह भारत की घेराबंदी के लिए लद्दाख में पैंगोंग झील के आसपास बड़े निर्माण कर रहा है और सैन्य तैयारियां कर रही है तो उधर सिक्कम में डोकलाम के आसपास भी सडक़, पुल आदि बना रहा है।

वह अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा कर रहा है। उसने भूटान, म्यांमार और नेपाल जैसे भारत के पड़ोसी देशों को पूरी तरह से अपने पर निर्भर कराया है और उनका नियंत्रण अपने हाथ में लिया है।

चीन ने समूचे एशिया और एशिया-प्रशांत की सुरक्षा को खतरे में डाला है। अगर ताइवान के साथ युद्ध की स्थिति बनती है या भारत के साथ चिंगारी भडक़ती है तो उसके नतीजे बहुत भयावह होंगे। अगर चीन को लग रहा है कि रूस-यूक्रेन के युद्ध की तरह चीन-ताइवान युद्ध होगा तो ऐसा नहीं होगा।

ताइवान की रणनीतिक स्थिति यूक्रेन जैसी नहीं है। अमेरिका हर हाल में ताइवान की रक्षा के लिए उतरेगा। फिर मुक्त और शांत एशिया प्रशांत के लिए बने चार देशों के समूह क्वाड को भी इसमें उतरना होगा। अमेरिका के अलावा भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया भी इसमें शामिल होंगे। फिर जो होगा उसकी कल्पना बहुत भयावह है।

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