Web Series: किसान के मान-सम्मान और आधुनिक खेती की बात करती ‘मिट्टी एक नई पहचान’

जो सड़कें गांव से शहर जाती है, क्या वे लौटकर गांव आयेगी

प्राइम वीडियो, एमएक्स प्लेयर पर आई एक वेबसीरिज मिट्टी एक नई पहचान के जरिए बहुत ईमानदारी, सादगी और विश्वसनीयता के साथ किसान और किसानी की बात कही गई है। किसी समय लालबहादुर शास्त्री ने नारा दिया था जय जवान, जय किसान किंतु कालांतर में दोनों की हालत ठीक नहीं रही। जवान चार साल में रिटायर्ड होने लगे, किसान कर्ज और घाटे की खेती के कारण आत्महत्या को मजबूर हैं।

इस वेबसीरिज में दादी अपने नाती राघव शर्मा से कहती है बाबू हमें लगता था जो सड़कें गांव से शहर जाती है वो लौटकर शहर में गांव कभी नहीं आती, आज मैं गलत साबित हो गई।  ये ऐसा इसलिए है कि राघव शहर की ग्लैमर जिंदगी छोड़कर गांव में आकर आधुनिक खेती करके गांव में रहना चाहता है। वास्तविक समय में ऐसे राघवों की संख्या बहुत कम है।

मिट्टी एक नई पहचान में कोई चमक-दमक नहीं है। हर फ्रेम में कोई बड़ा ड्रामा नहीं है। सीरिज में सभी चरित्र जाने पहचाने लगते हैं। समस्याएं असली लगती हैं और उत्तर प्रदेश के डोल छपरा गांव सिर्फ एक पृष्ठभूमि से कहीं बढ़कर अपने आप में किरदार बन जाता है।

दादा जो आधुनिक खेती का पक्षधर है और गांव को बदलना चाहता है पर सफल नहीं हो पाता। जब मैं मर जाऊं तो मेरी राख खेत में डाल देना उनका कहना देखना फिर से जी उठूगा। चावल की बाली बनकर तो कभी गन्ने की मिठास बनकर आऊंगा। गांव के प्रधान का शहर में रहने वाले राघव को तंज ‘गांव में होने में और गांव का होने में अंतर है।

इधर के दिनों में ओटीटी प्लेटफार्म पर गांव की कहानियों से जुड़ी सीरिज पंचायत, दुपहिया, ग्राम चिकित्सालय की सफलता ने फिल्म मेकर को गांव की ओर देखने विवश किया है किन्तु ये सभी वेबसीरिज गांव के किसी एक संस्थान या गांव की राजनीति पर केंद्रित है। पहली बार कोई वेबसीरिज खेती किसानी के साथ किसान के सम्मान और आधुनिक खेती की बात करती है।

निर्देशक आलोक कुमार और गगनजीत सिंह की यह वेब सीरिज बेहद और सहज है। एक तरह से देखा जाए, तो इसका संपूर्ण परिवेश ग्रामीण जीवन को दर्शता है। यह दर्शकों को मौजूदा किसानों की दिक्कतों और लाचारी से तो परिचित करवाता है, मगर साथ में खेती-बाड़ी को बढ़ावा देने वाली स्कीमों की पोल भी खोलता है। सीरिज गांव के किसानों को आधुनिक खेती के प्रति जागरूक करती है। किसान और किसानी को सम्मान दिलाने पर जोर देती है। एक अरसे से किसानों की दुर्दशा और आत्महत्या की खबरों के बीच यह सीरिज आधुनिक कृषि तकनीक के जरिए किसानों को जागरूक करने का काम करती है।

कहानी का नायक राघव शर्मा (इश्वाक सिंह) विज्ञापन जगत में काम करने वाला एक सफल युवा है, जो अपने नित नए कॉन्सेप्ट और आइडियाज से अपनी कंपनी का चहेता है।

अपनी लिव इन पार्टनर स्तुति (दीक्षा जुनेजा) से उसकी शादी होने वाली है। उसे अपने गांव से बेहद प्यार है और यही वजह है कि वह अपने देश को इंडिया के बजाय भारत कहना पसंद करता है।

अपने दादा (योगेंद्र टीकू) के निधन पर वह गांव आता है, तो वह बचपन की उन यादों में खो जाता है, जहां उसके दादा और दादी (अलका अमीन) ने उसे पाल-पोसकर बड़ा किया था। गांव आने के बाद उसे पता चलता है कि उसके दादा ने खेती-बाड़ी के आधुनिक तकनीकों को अपनाकर फसल उगाने के लिए बहुत बड़ा कर्ज लिया था, मगर नई कृषि तकनीकों की विफलता के कारण वे सफल नहीं हो पाए और दिल का दौरा पडऩे से उनकी मौत हो गई।

दादा के जाने के बाद अब पीछे रह गया बहुत बड़ा कर्ज। अपनी मिट्टी से लगाव रखने वाला राघव शहर में जमी-जमाई

नौकरी और स्तुति के साथ देखे गए सपनों को छोड़, गांव में दादा के अधूरे काम को पूरा करने में जुट जाता है। इस सफर में उसे नाकामी, दिल टूटना, दुख, विश्वासघात, अपमान जैसे कई पड़ावों से गुजरना पड़ता है, मगर अंतत: वह माहु (पीयूष कुमार) और बैजू (प्रांजल पटेरिया) की मदद से अपने दादा के मिशन को पूरा करता है। इस सफर में उसे कृतिका सिन्हा (श्रुति शर्मा) जैसी सरकारी अफसर का साथ मिलता है, जो खेती और किरानों के हित में काम करती है।

एक्टिंग की बात की जाए, तो इश्वाक सिंह हर बार की तरह इस दफा भी अपने किरदार राघव शर्मा में जान डाल देते हैं। एक उज्जवल एड मैन से खेती-बाड़ी के लिए संघर्ष करने वाले किसान के ट्रांसफॉर्मेशन को उन्होंने बखूबी दर्शाया है। आशा-निराशा के बीच झूलते अपने चरित्र को उन्होंने कहीं भी ओवर द टॉप नहीं होने दिया है।

राघव की प्रेमिका स्तुति बनी दीक्षा जुनेजा ने कम स्क्रीन स्पेस के बावजूद अच्छा काम किया है। दादी बनीं अलका अमीन ने संयमित अभिनय किया है। पोते बने इश्वाक सिंह के साथ उनकी केमिस्ट्री जमती है। दादू के रोल में योगेंद्र टीकू याद रह जाते हैं, मगर माहू बने पीयूष कुमार और बैजू का किरदार निभाने वाले प्रांजल पटेरिया न केवल अपनी मासूमियत से दिल जीतते हैं, बल्कि हास्य के पल भी जोड़ते हैं।

कृतिका सिन्हा के रूप में श्रुति शर्मा ने अच्छा काम किया है। कहानी के लेखक कहते हैं कि ये शो कोविड की दूसरी वेव के दौरान लिखना शुरू किया था। जब लाखों लोग यूं खत्म हो रहे थे जैसे पानी में कागज गल जाता है। इस अजीब समय में मैंने ऐसे तमाम लोगों के बारे में पढ़ा जो तब कुछ छोड़कर अमेरिका जैसे संपन्न देशों से लौट आए और भारत आकर खेती करने लगे। कई ऐसे लोग भी थे जो दिल्ली, मुम्बई, बैंगलोर जैसे शहरों में बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करते थे और वे सब छोड़कर मॉडर्न फार्मिंग करने लगे।

मुझे पहले लगा कि ये बस क्लिकबेट न्यूज है-ट्रैफिक जुटाने के लिए। लेकिन फिर ऐसी तमाम खबरें आने लगी। इन लोगों के बारे में जितना जाना, उतनी ही बैचेनी बढ़ती गई। मैं इन लोगों से मिलने लगा, इंटरव्यू करने लगा। इन सब लोगों से मिलकर बस एक बात समझ में आई-अपना सुकून घर छोड़कर, तनख्वाह के लिए बड़े-बड़े शहरों में बस कर इन्हें कभी चैन नहीं मिला। रैट रेस और तनख्वाह……तन भी खा गई और मन भी। ये शो बस ऐसे ही लोगों से उपजा। जिनके लिए भारत एक गांव का देश है का नारा, बस एक नारा नहीं बल्कि जीवन का मंत्र है।

मिट्टी एक नई पहचान वेबसीरिज में पूना के पास के आदर्श गांव हिवडे बाजार की बात करके बताया गया है कि यदि गांव वाले आसपास में मिलकर सरकारी योजनाओं को समझकर उससे लाभ उठायें तो कोई भी गांव आत्मनिर्भर आदर्श ग्राम बन सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सांसद आदर्श ग्राम योजना इस परिकल्पना पर थी किन्तु इच्छाशक्ति नेतृत्व और ब्यूरोक्रेसी में फंसकर यह योजना सफल नहीं हुई।

अभी तक गांवों में पदस्थ अधिकारियों की सकारात्मक भूमिका पर कम बात हुई किन्तु इस सीरिज में एक कृषि अधिकारी जिसे पनिसमेंट पोस्टिंग के रूप में छोटी जगह पदस्थ किया है वह अपने ज्ञान और सरकारी योजना के जरिए गांव में खेती बाड़ी के तरीकों को कैसे बदलती है, यह दिखाया गया है। वहीं गांव का प्रधान और सहकारी बैंक का मैनेजर गांव वालों का किस तरह शोषण करता है, यह भी बहुत बेहतर तरीके से फिल्माया गया है। गांव में टिड्डी दल के हमले को रोकने प्रति किलो टिड्डी पकडऩे पर एक बोतल बीयर देने का प्रलोभन और पूरे गांव का टिड्डी पकडऩे निकल जाना, गांव में बढ़ती शराबखोरी को बहुत महीन तरीके से दिखाता है।

फिल्म में दो लड़किया हैं जो राघव शर्मा के गर्लफ्रेंड और गांव में कृषि अधिकारी के रूप में दिखाई गई है। मुंबई में कारर्पोरेट कंपनी में काम करने वाली गर्लफ्रेंड को केवल कारर्पोरेट कल्चर, नौकरी, मीटिंग, लैपटाप और अपने घर में बैठकर बारिश का मजा लेना याद है। यह स्थायी रूप से राघव के गांव में रहने के निर्णय से उससे दूरी बना लेती है वहीं कृषि अधिकारी है जो गांव में रहकर तब्दीली करना चाहती है।

सीरिज में स्थानीय मंडी में किसान की फसल की सही कीमत नहीं मिलने से लेकर गांव के कृषि केंद्र में मुफ्त में बांटी जाने वाली सामग्री की कालाबाजारी की ओर भी ध्यान आकृष्ट करती है। खेती में लगे गुलाब में से एक गुलाब के फूल का खिलना और राघव सहित बाकी लोगों का इसे खिले फूल का देखकर अभिभूत होना और शहर में उसकी गर्लफ्रेंड का इस दृश्य को देखकर ठंडा रियेक्शन कुछ कहता है। पूरी वेबसीरिज छोटे-छोटे प्रसंगों, प्रतीकों से बहुत सी ऐसी बातें कही गई है जो बड़े-बड़े दृश्यों, डायलाग से भई नहीं होती।

वेब सीरिज मिट्टी एक नई पहचान के अंत में स्क्रीन पर कुछ डाटा और सक्सेस स्टोरी भी बताई गई है। वहीं सीरिज में किसानों को इकट्ठा करके उन्हें पावर पाइंट प्रजेंटेशन और सफल किसान के जरिए भी मोटिवेट करने की कोशिश की गई है।

आईआईटी बॉम्बे ग्रेजुएट्स का स्टार्टअप, कीटनाशक मुक्त सब्जियां सुलभ दामों पर उपलब्ध कराता है। इस स्टार्टअप ने सौ करोड़ से अधिक राशि जुटाई है। आईआईएम बैंगलोर के पूर्व छात्र ने अपनी मोटी तनख्वाह वाली नौकरी छोड़कर, सुंदर वन स्थित अपने गांव से लौटकर, जैविक खेती की शुरूआत की। वो स्थानीय किसानों को भी सक्षम बना रहे हैं। उन्होंने अपनी आरामदायक कारपोरेट नौकरियां छोड़कर एक दिन डेटा आधारित प्रिसीजन फार्मिंग स्टार्टअप की शुरूआत की, जिसने खेती में रसायनिक उपयोग में 35 प्रतिशत तक की कमी करने में मदद की है और 100 अरब लीटर से अधिक पानी की बचत भी की है।

हर्षित गोधा ने यूके में उच्च शिक्षा पूरी की और भोपाल लौटकर बंजर जमीन को एक एवोकाडो बाग में बदल दिया। अब वे हर साल एक करोड़ की कमाई कर रहे हैं। भारतीय सरकार ने एग्री एंटरप्रेन्योरशिप को बढ़ावा देने और किसानों के लिए डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रदान करने के उद्देश्य से डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन और एग्रीस्टैक जैसी पहल शुरू की है। अभी भी लंबा सफर तय करना बाकी है, क्योंकि 95 प्रतिशत से अधिक भारतीय किसानों ने अब तक आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाया नहीं है। कई प्रेरणादायक लोग मिलकर भारतीय कृषि का नया भविष्य तैयार कर रहे हैं।

मयंक: एक साफ्टवेयर इंजीनियर से प्राकृतिक किसान बने, उन्होंने शहर छोड़कर ग्रामीण क्षेत्र में लौटकर आधुनिक तरीकों से खेती शुरू की, जिसमें एआई और टेक साल्यूशंस का उपयोग कर सिंचाई और कीट नियंत्रण किया।

झारखंड का एक किसान: मार्केटिंग अधिकारी से किसान बने, उन्होंने गांव लौटकर एआई और तकनीक से खेती को आधुनिक बनाया, जिसमें सिंचाई और कीट प्रबंधन शामिल है।

हरीश: इंजीनियर हरीश ने सरकारी नौकरी छोड़कर राजस्थान में एलोवोरा की खेती शुरू की, जो अत्यधिक सफल रही। मिशांक भाटिया : इंजीनियरिंग ग्रेजुएट मिशांक ने शहर में नौकरी न मिलने पर खेती अपनाई और आधुनिक तरीको से सफलता हासिल की।

पप्पू कुमार: कोविड के दौरान शहर से लौटे और हल्दी की पहली फसल उगाकर वैकल्पिक खेती से जीवन संवारा।

कुमार और अहिरवार: रिवर्स माइग्रेशन के उदाहरण में ये मजदूर शहर से लौटकर गांवों में कृषि क्षेत्र को मजबूत किया।

इसी तरह का उदाहरण छत्तीसगढ़ कोंडागांव के राजाराम त्रिपाठी और उनका परिवार है। राजाराम त्रिपाठी ने बैंक की नौकरी छोड़कर आधुनिक तरीके से हर्बल खेती को बढ़ावा दिया। उनका मां दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप ( एमडीएचपी) आज पूरी दुनिया में जाना जाने लगा है। दरअसल, भारत को यदि आत्मनिर्भर भारत और विकसित भारत बनाना है तो सबसे पहले खेती के तौर तरीकों को बदलकर उसे आधुनिक बनाने की जरुरत है। मिट्टी एक नई पहचान जैसी वेबसीरिज निराश होते कृषक समाज और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक नई आशा का संचार करती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *