शुभम शुक्ला
Vote bank of educated candidates : बेरोजगार युवाओं के सपने धुआं धुआं….सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना
Vote bank of educated candidates : छ.ग.की लगभग डेढ़ करोड़ आबादी में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या लगभग 22 लाख हो गई है। जिसमे से अगर प्राइवेट जॉब और उद्यम के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने वाले युवाओं को छोड़ दें तो लगभग 15 लाख से अधिक युवा राज्य और केंद्र में निकलने वाली सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं।
लेकिन दुर्भाग्य ये है की जिन युवाओं के हाथों में नौकरी के अवसर होने चाहिए थे उनके हाथों में हर रोज नई निराशा ही आ रही है। जिन अभ्यर्थियों को मुख्य धारा में शामिल होकर सिस्टम का हिस्सा बनना था वे स्वयं ही उस सिस्टम के शिकार हो रहे हैं। अलग-अलग समय में अलग- अलग राजनीतिक पार्टियां इन शिक्षित अभ्यर्थियों के वोट बैंक का बड़ी ही चालाकी से अपने हित के लिए उपयोग कर लेती है। बड़ी संख्या में भर्ती निकालने का आश्वासन देकर युवाओं को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है।
मगर जीतने के बाद वही पार्टी वित्त का हवाला देकर या चुप्पी साधकर बड़ी ही आसानी से युवाओं के 4 वर्ष बर्बाद कर देती है। और अंतिम चुनावी वर्ष में एक साथ बड़ी संख्या में भर्ती का नोटिफिकेशन आता है।क्योंकि रुकी हुई अनेक भर्तियां चुनावी हित के लिए एक साथ निकाली जाती है इसलिए तैयारी करने वाले छात्र छात्राओं को यह समझ नही आता की किस परीक्षा की तैयारी करें और किसे छोड़ें? चूंकि उन्हें मालूम होता है की ये मौका हाथ से गया तो अगली भर्ती फिर से पंचवर्षी योजना की तरह अंतिम चुनावी वर्ष में ही निकाली जाएगी। इसलिए वे सिस्टम से हार कर सारी परीक्षाओं की तैयारी का निर्णय लेते हैं। नतीजन अधिकांश अभ्यर्थियों का एक भी परीक्षा में चयन नही हो पता।
चाहे राज्य हो या केंद्र सरकार सभी की कमोबेश यही स्थिति है। व्यापम की तरफ से बीजेपी सरकार में 2018 में SI भर्ती निकाली गई थी। 2 बार सरकारें बदल गई। फिर से बीजेपी की सरकार आ गई लेकिन इसकी भर्ती प्रक्रिया अब तक पूर्ण नही हुई है। इसी प्रकार बीजेपी की सरकार के वर्तमान वित्त मंत्री श्री ओ पी चौधरी ने दो लाख वेकेंसी का वादा चुनाव यात्रा के दौरान किया था लेकिन दो लाख तो दूर 2 हजार वेकेंसी भी अब तक नहीं निकाली गई है। अभ्यर्थियों के पूछने पर यह जवाब आया की सरकार के पास पैसा नहीं है। सरकार के पास चार्टेड प्लेन में अयोध्या घूमने के लिए पर्याप्त फंड है। लेकिन जिन युवाओं के वोटबैंक के कारण उन्हें इतनी बड़ी जीत मिली उनके लिए फूटी कौड़ी भी नही है। सरकार के पास राजधानी रायपुर में स्काई वाक बनाने के लिए पैसे हैं जो सभी लोगों की नजरों में साफ तौर पर देखा जा रहा है की पूर्ण रूप से पैसों की बर्बादी है लेकिन जिन युवाओं ने पार्टी को जीत दिलाने के लिए बड़ी भूमिका निभाई उनकी वेकेंसी के लिए फंड नही है।
वर्तमान में पिछले शिक्षा मंत्री रह चुके बृजमोहन अग्रवाल ने 33 हजार रिक्त शिक्षकों के पदों पर भर्ती का प्रस्ताव वित्त विभाग को सौंपे जाने की बात कही थी। लेकिन पैसे नही होने की बात कह कर वित्त विभाग में लगभग 44 सौ स्कूलों का युक्तियुक्तकरण कर दिया गया है। जिससे बताया जा रहा है की सारे पद भर जायेंगे। और शिक्षक अतिशेष हो जाएंगे। सवाल यह उठता है की एक वोटर का वोट लेने के लिए जब दुर्गम क्षेत्रों में भी चुनाव दल जा सकता है तो 10 से कम छात्र छात्राओं वाले स्कूलों में पढ़ाई क्यों नहीं करवाई जा सकती।उन्हें बंद क्यों किया जाना चाहिए?
क्या वोट की अहमियत शिक्षा से अधिक है। जब पद ही खाली नहीं रहेंगे तो शिक्षकों की भर्ती कहां से होगी । और जब यही करना था तो अभ्यर्थियों को झूठा दिलासा क्यों दिया गया? 2 लाख वेकेंसी का झूठा वादा क्यों किया गया? बृजमोहन अग्रवाल जी के एक मिडिया बयान से लाखों की संख्या में अभ्यर्थी शिक्षक भर्ती के तैयारी में जुट गए थे। लेकिन युक्तियुक्तकरण का आदेश जारी कर सरकार ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेरने का काम किया है। जिसके कारण अभ्यर्थियों ने ट्विटर(एक्स)ट्रेंड चलाया और वह टाप 5 पर ट्रेंड भी कर रहा था।
Vote bank of educated candidates : कई जगह पर जिम्मेदारों को जाकर अभ्यर्थियों ने रिक्त पदों की भर्ती को लेकर ज्ञापन सौंपे लेकिन उनकी परेशानियों को हल करना तो दूर,सरकार ने शाही फरमान जारी कर शिक्षक के रिक्त पदों को ही समाप्त कर दिया। सवाल ये उठता है की यदि भर्ती नही निकालनी है तो चुनाव के समय झूठा आश्वासन देकर युवाओं को छला क्यों गया ?यदि फिर से अंतिम चुनावी वर्ष में ही बड़ी संख्या में भर्ती विज्ञापन जारी करना है तो इन 4 वर्षों तक हजारों युवाओं को परीक्षा में बैठने का अवसर भी नही मिल पाएगा।ना जाने कितने अभ्यर्थियों की निर्धारित आयु सीमा पार हो जाएगी। कितनो का मनोबल टूट जाएगा और न जाने कितने ही युवा लंबे समय से तैयारी करने के कारण मानसिक तनाव और अवसाद से घिर जायेंगे। जब मनुष्य किसी मनुष्य की हत्या करता है तो वो शारीरिक हत्या होती है। जिसमे दर्द होता है चीखें होती है खून के छीटें होती है। लेकिन जब सिस्टम के निकम्मेपन की सजा एक अभ्यर्थी भुगतता है तो वह मानसिक हत्या होती है। जिसकी कोई सुनवाई नहीं होती ।कोई पोस्टमार्डम नही होता।
पाश ने कहा था –
सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
न होना तड़प का सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर जाना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना ।
युवाओं को भी इससे कुछ सबक लेने की जरूरत है। पहला ये की चुनावी जुमलों पर भरोसा न करते हुए उस सरकार को सत्ता में लाने का प्रयास करे जो जाति, धर्म,मजहब और कट्टरता के बजाए स्कूल अस्पताल सड़क बनाने और रोजगार देने का आश्वासन दे। और यदि अपने वादों को पूरा ना करे तो अगले चुनाव में एक जुट होकर विपक्ष में मतदान करना चाहिए जिससे नेताओं को सबक मिले। दूसरा यह कि सड़क पर उतरकर अंतिम समय तक अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए। सरकार से एग्जाम कैलेंडर की मांग करनी चाहिए।
Vote bank of educated candidates : सरकार के बहरे कानो तक यह बात चीख चीखकर पहुचाई जानी चाहिए की युवा ही इतिहास के किसी भी बड़े आंदोलन के केंद्र बिंदु रहे हैं। और देर से ही सही लेकिन सरकारों को झुकना पड़ा है। तीसरा यह की कितनी भी भर्तियां निकल जाए लेकिन 15 लाख शिक्षित बेरोजगार युवाओं को नौकरी नहीं दिया जा सकता। अपना प्रयास जरूर करें । लेकिन कुछ स्किल सीखने की भी कोशिश करें। ऐसा करने से सलेक्शन ना होने पर युवा अवसाद से नही घिरेंगे और उनके पास सम्मानजनक जीवन जीने के और भी कई अवसर होंगे। जो हो सकते हैं उन्हें सरकारी नौकरी से बेहतर जीवन भी दे सकें।