Srimad Bhagwat Purana Katha
Srimad Bhagwat Purana Katha : श्री राम मंदिर प्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में नगर पंचायत मारो की पावन धरा पे आयोजित नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत पुराण कथा में कथा पांचवे दिन श्रीकृष्ण बाल लीलाओं का वर्णन किया गया। कथा वाचक पंडित श्री कांत पाठक ने कहा कि सदा सुख केवल भगवान के चरणों में है। भगवान के सम्मुख और उनके शरणागत होने को ही भागवत कथा है। भागवत कथा से कल्याणकारी और कोई भी साधन नहीं है
Srimad Bhagwat Purana Katha : इसलिए व्यस्त जीवन से समय निकालकर कथा को आवश्यक महत्व देना चाहिए। भागवत कथा से बडा कोई सत्य नहीं है। भागवत कथा अमृत है इसके श्रवण करने से मनुष्य अमर हो जाता है। यह एक ऐसी औषधि है जिससे जन्म-मरण का रोग मिट जाता है। भागवत कथा को पांचवां वेद कहा गया है जिसे पढ सकते हैं और सुन सकते हैं। कृष्ण हिन्दू धर्म में विष्णु के अवतार हैं। सनातन धर्म के अनुसार भगवान
विष्णु सर्वपापहारी पवित्र और समस्त मनुष्यों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करने वाले प्रमुख देवता हैं। जब-जब इस पृथ्वी पर असुर एवं राक्षसों के पापों का आतंक व्याप्त होता है तब-तब भगवान विष्णु किसी किसी रूप में अवतरित होकर पृथ्वी के भार को कम करते हैं। वैसे तो भगवान विष्णु ने कुल चौबीस अवतारों को धारण किया। इन अवतारों में उनके सबसे महत्वपूर्ण अवतार श्रीराम और श्रीकृष्ण के ही माने
जाते हैं। श्री कृष्ण का जन्म क्षत्रिय कुल में राजा यदु कुल के वंश में हुआ था। भागवत भूषण ने कृष्ण के जीवन गाथा का विस्तार पूर्वक विवरण कर संगतों को कृष्ण के जीवन लीला के बारे में बताया गया।
व्यास जी ने भगवान की अनेक लीलाओं में श्रेष्ठतम लीला रास लीला का वर्णन करते हुए बताया कि रास तो जीव का ईश्वर से मिलन की कथा है। यह काम को बढ़ाने की नहीं काम पर विजय प्राप्त करने की
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कथा है। इस कथा में कामदेव ने भगवान पर खुले मैदान में अपने पूर्व सामर्थ्य के साथ आक्रमण किया है लेकिन वह भगवान को पराजित नही कर पाया उसे ही परास्त होना पड़ा है रास लीला में जीव का शंका करना या काम को देखना ही पाप है गोपी गीत पर बोलते हुए व्यास ने कहा जब तब जीव में अभिमान आता है भगवान उनसे दूर हो जाता है लेकिन जब कोई भगवान को न पाकर विरह में होता है
तो श्रीकृष्ण उस पर अनुग्रह करते है उसे दर्शन देते है। भगवान श्रीकृष्ण के विवाह प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम विवाह विदर्भ देश के राजा की पुत्री रुक्मणि के साथ संपन्न हुआ लेकिन रुक्मणि को श्रीकृष्ण द्वारा हरण कर विवाह किया गया। इस कथा में समझाया गया कि रुक्मणि स्वयं साक्षात लक्ष्मी है और वह नारायण से दूर रह ही नही सकती यदि जीव अपने धन अर्थात लक्ष्मी को
भगवान के काम में लगाए तो ठीक नही तो फिर वह धन चोरी द्वारा, बीमारी द्वारा या अन्य मार्ग से हरण हो ही जाता है। धन को परमार्थ में लगाना चाहिए और जब कोई लक्ष्मी नारायण को पूजता है या उनकी सेवा करता है तो उन्हें भगवान की कृपा स्वत ही प्राप्त हो जाती है।
श्रीकृष्ण भगवान व रुक्मणि के अतिरिक्त अन्य विवाहों का भी वर्णन किया गया। कथा का आयोजन नगर वासियों के द्वारा बड़े धूमधाम से किया जा रहा क्षेत्र के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित हो रहे