Srimad Bhagwat Katha पूरी रात लाखों गोपियों ने रचा भगवान श्री कृष्ण के साथ साथ रासलीला, देखिये VIDEO

Srimad Bhagwat Katha

रामनारायण गौतम

 

Srimad Bhagwat Katha पूरी रात लाखों गोपियों ने रचा भगवान श्री कृष्ण के साथ साथ रासलीला, देखिये VIDEO

 

Srimad Bhagwat Katha सक्ती ! जासवाल परिवार द्वारा वंदना परिसर मेंआयोजित श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन गोपियों संग महारास कंस वध रुकमणी विवाह के प्रसंगों का कथा श्रवण करते हुए व्यास पीठ से देवी चित्रलेखा ने बताया भगवान विष्णु के पृथ्वी लोक में अवतरित होने के प्रमुख कारण थे, जिसमें एक कारण कंस वध भी था।

Srimad Bhagwat Katha कंस के अत्याचार से पृथ्वी पर ऋषि मुनि पर अत्याचार हो रहा था अत्याचार से मुक्त कराने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन देवी चित्रलेखा ने गोपियों के संग महारास कंस वध व रुकमणी विवाह के प्रसंग का भक्तगणों को कथा श्रवण कराते हुए कहा कि भगवान इस धरती में बार-बार जन्म लेते हैं जब-जब अत्याचार बड़ता है है तब तब उनका नाश करने के लिए भगवान कृष्ण जन्म लेते हैं भगवान श्री कृष्णा बड़े-बड़े असुरों सहित कंस का वध कर अत्याचारी कंस से पृथ्वी का भार उतारा कंस के अत्याचार से त्राहीं त्राही जब होने लगा तब कृष्ण अवतरित हुए। कंस को यह पता था कि उसका वध श्रीकृष्ण के हाथों होना निश्चित है।

 

 

Srimad Bhagwat Katha इसलिए उसने बाल्यावस्था में ही श्रीकृष्ण को अनेक बार मरवाने का प्रयास किया, लेकिन हर प्रयास भगवान के सामने असफल साबित होता रहा। 11 वर्ष की अल्प आयु में कंस ने अपने प्रमुख अकरुर के द्वारा मल्ल युद्ध के बहाने कृष्ण, बलराम को मथुरा बुलवाकर शक्तिशाली योद्धा और पागल हाथियों से कुचलवाकर मारने का प्रयास किया, लेकिन वह सभी श्रीकृष्ण और बलराम के हाथों मारे गए और अंत में श्रीकृष्ण ने अपने मामा कंस का वध कर मथुरा नगरी को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने अपने माता-पिता वसुदेव और देवकी को जहां कारागार से मुक्त कराया, वही कंस के द्वारा अपने पिता उग्रसेन महाराज को भी बंदी बनाकर कारागार में रखा था, उन्हें भी श्रीकृष्ण ने मुक्त कराकर मथुरा के सिंहासन पर बैठाया उन्होंने बताया कि रुकमणी जिन्हें माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है।

 

 

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वह विदर्भ साम्राज्य की पुत्री थी, जो विष्णु रूपी श्रीकृष्ण से विवाह करने को इच्छुक थी। लेकिन रुकमणी जी के पिता व भाई इससे सहमत नहीं थे, जिसके चलते उन्होंने रुकमणी के विवाह में जरासंध और शिशुपाल को भी विवाह के लिए आमंत्रित किया था, जैसे ही यह खबर रुकमणी को पता चला तो उन्होंने दूत के माध्यम से अपने दिल की बात श्रीकृष्ण तक पहुंचाई और और कृष्णा जी ने रुक्मणी की निमंत्रण को स्वीकार करते हुए रुक्मणी तक पहुंचे जहां काफी संघर्ष हुआ युद्ध के बाद अंततः द्वारकापुरी में बड़े धूमधाम से श्री कृष्ण रुकमणी से विवाह हुआ भागवत कथा श्रवण करने के लिए हजारों की संख्या में महिला पुरुष भक्तगण श्रद्वालु उपस्थित थे।

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