(Special Editorial) विशेष संपादकीय : प्रधान संपादक सुभाष मिश्र कलम से त्योहार और परंपराओं को खुलकर जीता है छत्तीसगढ़

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(Special Editorial) त्योहार और परंपराओं को खुलकर जीने वाला प्रदेश छत्तीसगढ़

(Special Editorial) छत्तीसगढ़ त्योहार और परंपराओं को खुलकर जीने वाला प्रदेश है। यहां के ग्रामीण अंचलों में छोटे छोटे त्योहार को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। जब से प्रदेश की कमान भूपेश बघेल ने संभाली है, तब से इन पर्वों को खास महत्व मिलना शुरू हुआ। अब ये गांवों की तरह शहरों में भी बड़े ही धूम धाम से मनाया जा रहा है।

(Special Editorial) इसमें तीजा-पोरा, हरेली और छेरछेरा जैसे त्योहार शामिल हैं। ये कभी ठेठ ग्रामीण इलाकों में ही मनाए जाते थे, लेकिन अब सरकार ने इन्हें धूमधाम से मना रही है। सरकारी छुट्टी इन दिनों पर दिए जाने लगी है। हमारा प्रदेश गांव में बसता है लेकिन लंबे समय से गांवों की इन पर्व और परंपराओं से शहर अछूते ही था। शासन-प्रशासन स्तर पर उस तरह की सोच नहीं दिखाई देती थी, इसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अगुवाई कर दिखाया गया, ये काबिले तारीफ है।

(Special Editorial) कुछ इसी तर्ज में रायपुर के मठपारा की सड़कों पर शुक्रवार को अलग नजारा देखने को मिला, जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हाथ में झोला लिए गली-गली दान मांगते नजर आए, मौका था छेरछेरा त्यौहार का। मुख्यमंत्री ने करीब आधे घंटे तक गलियों में घूम-घूम कर सभी से दान लिया।

मुख्यमंत्री बघेल को देखकर मठपारा के निवासी घरों से निकलकर बाहर आए और उनके झोले में अनाज, सब्जी आदि दान स्वरूप डाली। दान देने वालों में छोटे-छोटे बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग बड़े उत्साह से शामिल हुए। इस दौरान मुख्यमंत्री ने भी वहां मौजूद बच्चों को दान स्वरूप राशि भेंट की।

छेरछेरा पर्व के अवसर पर दूधाधारी मठ पहुंचकर भगवान के दर्शन किए और पूजा-अर्चना कर प्रदेशवासियों के लिए सुख समृद्धि की कामना की। बघेल ने सभी को छेरछेरा की बधाई देते हुए कहा कि छेरछेरा का पर्व हमें बड़ा संदेश देता है क्योंकि इस दिन दान दिया जाता है और दान लिया भी जाता है। दान देना उदारता और दान लेना अहंकार को नष्ट करने का प्रतीक है। छेरछेरा में दान की राशि जनकल्याण में खर्च की जाती है।

अब छत्तीसगढ़ की परंपराओं में छुपे बड़े संदेश को भी समझिए। मुख्यमंत्री बघेल ने जिस तरह कहा कि दान लेने से अहंकार नष्ट होता है। वाकई दान देने और लेने की ये परंपरा से हम काफी कुछ सीख सकते हैं। छेरछेरा के दौरान गांवों की गलियों बच्चे और बड़े-अरन बरन कोदो दरन… का नारा लगाते हुए निकलते हैं।

(Special Editorial) कोदो का महत्व इन दिनों काफी बढ़ गया है मिलेट के तौर पर कोदो, कुटकी और रागी को सरकार भी बढ़ावा दे रही है। हाल ही में मुख्यमंत्री ने विधानसभा में इससे बने व्यंजनों की दावत दी थी।

मिलेट को बढ़ावा देने के लिए सरकार मिलेट कैफे खोलने की तैयारी कर रही है। उस मिलेट का हमारी परंपराओं में बहुत पहले ही महत्व साबित कर दिया था। इसी तरह सरकार ने माघी पुन्नी मेला, गौरा-गौरी पूजा, गोवर्धन पूजा का महत्व भी स्थापित किया है।

(Special Editorial) सरकार ने पारंपरिक त्योहारों के साथ ही लोक खेलों को भी इन दिनों सरकार ने खास महत्व दिया है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद पहली बार मुख्यमंत्री भूपेश ने छत्तीसगढ़ के पारंपरिक खेलों को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए छत्तीसगढिय़ा ओलंपिक की शुरुआत की है।

(Special Editorial) छत्तीसगढ़ी पारंपरिक लोक खेल गिल्ली डंडा, पिट्टूल, लंगड़ी दौड़, बांटी (कंचा), बिल्लस, फुगड़ी, गेड़ी दौड़, भंवरा सहित 14 तरह के खेल के साथ गुरुवार को जिले में छत्तीसगढिय़ा ओलंपिक का शुभारंभ हुआ। जिले में शहर से लेकर गांव तक महिला, पुरुष, बुजुर्ग सहित बच्चों ने इस पारंपरिक लोक खेल में भाग लिया। इस तरह सांस्कृति और परंपरा को लेकर गांव और शहर के बीच जो खाई थी उसे सरकार ने पाटने का काम किया है। कहीं न कहीं यही गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ की अवधारणा है।

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