Shrimad Bhagwat Katha : माया बड़ी बलवती होती है , वह मनुष्य का पीछा करते कहीं भी पहुंच जाती है, मन उस चाबी की तरह है जिससे ताला खुलता और बंद है

Shrimad Bhagwat Katha

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Shrimad Bhagwat Katha : सक्ती नवागढ़ । माया बड़ी बलवती होती है , वह मनुष्य का पीछा करते कहीं भी पहुंच जाती है । मन उस चाबी की तरह है जिससे ताला खुलता और बंद ही होता है यही हमारा मन जब संसार पर आशक्त रहता है तो मोक्ष का द्वार बंद हो जाता है और ईश्वर पर अनुरक्त होने पर स्वर्ग का द्वार खुल जाता है । इसलिए भक्ति को अपने अंदर उतारने के

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Shrimad Bhagwat Katha : लिए मन की अनिवार्यता है , यह उद्गार एस डी , कॉलेज नवागढ़ में आयोजित संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस व्यास पीठ से छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध भागवत आचार्य राजेंद्र महाराज ने प्रकट किया ।

जय भारत प्रसंग का वर्णन करते हुए आचार्य ने बताया कि राजा भरत ने अपने राजसी सत्ता और परिवार को भक्ति के मार्ग में बाधा मानकर तप करने वन में चले गए किंतु वहां एक मृग शावक से मन जोड़ लिए और भगवान की भक्ति नहीं हो पाई अर्थात माया के वशीभूत होकर अपने अंत समय में मृग शावक का ही स्मरण करके रहे और उन्हें मृग पशु

योनि मैं ही जन्म मिला । मनुष्य अपने भावी जन्म की तैयारी इसी जन्म मैं ही करता है । वामन प्रसंग का उद्देश्य आचार्य ने बताया कि मांगने वाला ही छोटा होता है और देने वाला तो दाता कहलाता है । त्रिलोकी नाथ भगवान नारायण जी वामन कार उधर कर आजा बली के यज्ञ स्थल मै दान मांगने छोटा बनकर गए थे , और राजा बली पर अति

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कृपा करते हुए तीन पग भूमि नाप कर अभिभूत कर दिए । राजा बली ने अपना सर्वस्व भगवान को समर्पण कर दिया , पूर्ण समर्पण का भाव रखने पर परमात्मा भी दान दाता के ऋणी बन जाते हैं । बामन भगवान ने राजा बली पर कृपा करते हुए उसे हमेशा के लिए चिरंजीवी बना दिए और राजा बली के द्वार पर भगवान स्वयं रक्षक बनकर खड़े हो गए ।

भगवान श्री राम और श्री कृष्ण के अवतार का उद्देश्य आचार्य द्वारा बताया गया कि भगवान का अवतार धरती से बाप और अधर्म का भार उतारने तथा सनातन धर्म और धर्मात्माओं की रक्षा करने के लिए होता है । संसार के समस्त प्राणी अपने-अपने कर्मवश जन्म लेते हैं किंतु भगवान का अवतार करुणावश होता है । श्री राम साक्षात धर्म की

मूर्ति की रूप में धरा मैं पधारे इसलिए हम सभी को रामचंद्र के जीवन चरित्र से अनुप्राणित होने की अनिवार्यता हो और श्री कृष्ण के संदेश को आत्मसात करते हुए कर्म क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ाने की आवश्यकता है । आचार्य ने आग्रह के साथ कहा की श्रीमद् भागवत की कथा मनुष्य जीवन की परम औषधि है , यही हमारे वैद्य है और यही हमारा उपचार भी है ।

स्मृति शेष पंडित दुर्गा प्रसाद जी एवं स्मृति शेष श्रीमती शांति पांडे जी के सद्गति की कामना से आयोजित संगीत में श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस कथा श्रवण करने हेतु श्रीमती आशा जनार्दन दुबे , योगिता शुक्ला , श्वाती विवेक , चंद्रकांत पांडेय , प्रेमलता अरुण दुबे , अतुल तिवारी , पूनम आशुतोष पांडे , ललिता मिश्रा , मनीषा आयुष सिंह

, जगदीश प्रजापति , अंजनी बिरजू कश्यप , सरिता अरुण पांडे , चंद्र मौली तिवारी , अहिल्या शर्मा आदि सैकड़ो श्रोता उपस्थित थे । श्रीमद् भागवत कथा के आयोजन वर्षा रानी आनंद पांडे , अनामिका कमलेश , सीमा विमलेश , गुणवती रवि कुमार , निशा अभय कुमार एवं गिरिजा , निर्मला , संगीता , सारिका , श्वेता , रामनारायण दुबे , नर्मदा तिवारी , श्याम शरण पांडे , ज्योतिष तिवारी , अतुल तिवारी द्वारा अधिक से अधिक संख्या में कथा श्रवण करने की अपील की गई है ।

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