Sarkeguda firing सारकेगुडा गोलीकांड : आदिवासी नहीं संविधान की मौत 

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Sarkeguda firing सारकेगुडा गोलीकांड : आदिवासी नहीं संविधान की मौत 

Sarkeguda firing दंतेवाड़ा !   सामाजिक कार्यकर्ता एवं भारतीय किसान यूनियन टिकैत, छत्तीसगढ़ प्रदेश अध्यक्ष संजय पंत ने प्रेस नोट जारी कर बस्तर क्षेत्र के बारे में निम्नलिखित बातें कहीं | भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 देश के सभी नागरिकों को जीवन जीने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के सारकेनगुड़ा गांव में 28 जून 2012 को हुए गोलीकांड में 16 निर्दोष आदिवासियों के मारे जाने की घटना आदिवासियों के जीवन जीने की स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।

आदिवासी ग्रामीणों के अनुसार वे सभी निर्दोष थे और बीच पंडूम की तैयारी के लिए एकत्रित हुए थे जबकि सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार उन्हें नक्सलियों के जमा होने की सूचना मिली थी और मारे गए सभी ग्रामीण नक्सली थे। मामले की जांच के लिए 2012 में एक सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया गया था जिसने सभी बिंदुओं एवं पक्षों की जांच कर 2019 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह साफ कहा कि मारे गए ग्रामीणों के नक्सली होने के कोई प्रमाण प्राप्त नहीं हुए।

न्यायिक आयोग की जांच रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि 17 ग्रामीण किसान मारे गए लोगों में से 10 ग्रामीणों की मृत्यु तो पीठ पर गोली लगने से हुई है इसका अर्थ यह हुआ कि वे तो भाग रहे थे ना कि सुरक्षा बलों के साथ लड़ रहे थे। जांच रिपोर्ट यह कहती है कि सुरक्षा बलों ने यह फायरिंग घबराहट में प्रतिक्रिया स्वरूप की थी। मारे गए 17 ग्रामीण आदिवासी किसानों में 7 अवयस्क थे।
न्यायिक आयोग की रिपोर्ट को 2019 में ही विधानसभा के पटल पर रखा जा चुका है एवं कैबिनेट की बैठक में इस पर चर्चा भी की जा चुकी है जिसमें राज्य के डीजीपी एवं मुख्य सचिव भी शामिल थे।

ग्रामीण आदिवासी किसान हितों की बात करने वाले एवं विपक्ष में रहकर इस मामले के लिए न्यायिक आयोग के गठन की मांग करने वाले प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की इस मामले में आर्थिक मुआवजे एवं सरकारी नौकरी को लेकर चुप्पी आदिवासियों के प्रति सरकार की मानसिकता को दिखाता है। और न्यायिक आयोग की जांच रिपोर्ट यह स्पष्ट कर देती है कि इस पूरे मामले में ग्रामीण आदिवासी हित की नीयत ही नहीं है।

बस्तर क्षेत्र के सभी पार्टियों के आदिवासी विधायकों, सांसद, मंत्रियों, राजनेताओं, एवं आदिवासी समाज के संगठनों के प्रमुखों से बस्तर की आदिवासी किसान जनता यह प्रश्न करती है कि वे ऐसी कौन सी पार्टी की गुलामी कर रहे हैं कि न्यायिक आयोग की रिपोर्ट आने के 3 साल के बाद भी खुद के अपने समाज के ग्रामीणों को निर्मम खुलेआम मार दिए गए आदिवासी किसानों की उन्होंने मुआवजे एवं सरकारी नौकरी के लिए एक शब्द तक नहीं कहा।

आदिवासी समाज के लिए यह समझने का समय आ गया है कि किसी भी राजनीतिक पार्टी से न्याय की उम्मीद करना व्यर्थ है और स्वयं आदिवासी समाज ही खुद का हित कर सकती है। स्वयं का हित करने के लिए आदिवासी समाज को पढ़ना होगा और अपनी लड़ाई संवैधानिक तरीके से लड़नी होगी।

चूंकि सारकेगुड़ा की घटना में 17 ग्रामीण आदिवासी किसानों की मृत्यु हुई थी इसलिए भारतीय किसान यूनियन छत्तीसगढ़ सरकार से मारे गए प्रत्येक आदिवासी किसान के परिवार को एक करोड़ रुपए एवं परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की मांग करता है।

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प्रशासन को सूचित करने के बाद इस संबंध में पीड़ित परिवार के सदस्यों, सभी समाज के प्रतिनिधियों एवं बीजापुर जिला प्रशासन के साथ अति शीघ्र बैठक आयोजित की जाएगी। भारतीय किसान यूनियन पीड़ित परिवारों को यह आश्वासन देता है कि अतिशीघ्र उन्हेंं न्याय दिलाने के लिए कदम उठाया जाएगा।

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