Sanaatan Dharm : आज की जनधारा मल्टी मीडिया के प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से : क्या सनातन धर्म खतरे में है?
Sanaatan Dharm : देश में आज-कल सबसे अधिक वाद-विवाद का विषय यह है कि क्या सनातन सचमुच खतरे में है। और इस खतरे की अनुभूति इसलिए हो रही है क्योकि सनातन के खिलाफ कुछ नेताओं के ऐसे बयान आए हैं जिसकी प्रजातंत्र कभी अनुमति नहीं देता है। लेकिन बात बस इतनी सी समझने की है कि सनातन जो कालांतर से विभिन्न झंझावतों का सामना करता हुआ भी कभी प्रभावित नहीं हुआ, समाप्त नहीं हुआ, क्या वह कुछ नेताओं के बयान से ही खतरे में आ जाएगा, समाप्त हो जाएगा। आदिकाल से लेकर विभिन्न विदेशी आक्रमण को झेलता हुआ सनातन समय के साथ और भी ज्यादा परिपक्व हुआ, बलशाली बना। ऐसे सनातन को ऐसे बयानों की क्या परवाह।
Sanaatan Dharm : देश की वर्तमान राजनीति में अब वो जरूरी मुद्दे नदारद हैं जो देशकाल और नागरिकों के लिए जरूरी है। राजनीतिक पार्टियों से जुड़े लोग जनमानस के बीच ऐसे मुद्दे लेकर जाना चाहते हैं जो कि उनकी भावनाओं से व धार्मिक अस्थाओं से जुड़े हैं।
राजनीति को पता होता है कि कब कौनसी बात किस तरह से उठानी है। यह प्रतिभा तो अपनी जगह है लेकिन बलीहारि उन नेताओं की जो ऐसे मुद्दे थाल में परोस कर सादर प्रस्तुत कर देते हैं। आज-कल देश में दृष्य कुछ ऐसा ही है। सनातन के मुद्दे पर भाजपा काफी मुखर और आक्रामक है। भाजपा की खूबी यही है कि उसने कुछ नेताओं के द्वारा दिए गए बयान पर पूरे विपक्ष को लपेट लिया।
इण्डिया गठबंधन को भी और एक ऐसा माहौल बनाने का प्रयास किया जिससे यह लगने लगे कि भाजपा और उसके सहयोगियों के अलावा सभी सनातन के दुश्मन हैं। अपने लाभ की चीजों को प्रचार के शिखर तक ले जाना भाजपा की खूबी है और भाजपा की पिच पर आकर खेलने लगना विपक्ष का अनाड़ीपन। सभी को पता है राष्ट्रवाद, हिन्दुत्व, धर्म, ऐतिहासिक धार्मिक सांस्कृतिक विरासतों पर गर्व यह सभी भाजपा के लिए बड़ी आसान पिच हैं। अब इसे राजनीतिक सूझबूझ की कमी कहें या फिर कुछ और कि विपक्ष अक्सर इन्हीं पिचों पर आकर ललकार लगाने लगता है।
Sanaatan Dharm : सवाल यह है कि क्या है हमारी सनातन संस्कृति, क्या राजनेताओं के कहने से ये मिट जाएगी। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छत्तीसगढ़ के रायगढ़ के कोण्डातराई की जनसभा में मंच से कई बार बिना नाम लिए कहा कि कुछ लोग सनातन संस्कृति को तोडऩा चाहते हैं। उन्होंने कहा कि माता कौशल्या का धाम छत्तीसगढ़ में है। भगवान राम के ननिहाल से लोगों को जागरूक करना चाहता हूं, जिनको आप लोगों ने 9 साल से केंद्र से बाहर कर रखा है।
उन्होंने मिलकर एक गठबंधन बनाया है। कुछ लोग इसे घमंडिया गठबंधन भी कह रहे हैं। ये लोग सत्ता के लालच में सनातन संस्कृति को तोडऩा चाहते हैं। सनातन संस्कृति वह है जिसमें राम वनवासियों को अपने भाई से भी बढ़कर बताते हैं। सनातन संस्कृति वह है जिसमें राम नाव चलाने वाले केवट को गले लगाकर धन्य हो जाते हैं। सनातन संस्कृति वह है जिसमें शबरी के जूूठे बेर प्यार से राम खा लेते हैं। प्रधानमंत्री ने यह नहीं कह पाए कि उनकी पार्टी कि 15 साल रही सरकार ने कौशल्या माता की उस तरह से पुछ परख नहीं कि जैसे भूपेश बघेल की सरकार ने की।
आज बहुत से लोग जानना चाहते हैं कि सनातन धर्म क्या है। सनातन धर्म अपने हिंदू धर्म के वैकल्पिक नाम से भी जाना जाता है। वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिए सनातन धर्म नाम मिलता है। सनातन का अर्थ है-शाश्वत या सदा बना रहने वाला, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त।
सनातन शब्द सत् और तत् से मिलकर बना है। दोनों शब्दों का अर्थ यह और वह है। इसका व्यापक उल्लेख अहं ब्रह्मास्मि और तत्वमसि श्लोक से मिलता है। इस श्लोक का अर्थ है कि मैं ही ब्रह्म हूँ और यह संपूर्ण जगत ब्रह्म है। ब्रह्म पूर्ण है। इस सृष्टि के निर्माण के पश्चात भी ब्रह्म में न्यूनता नहीं आई है।
सनातन धर्म पर बयानबाजी के मामले में मद्रास हाईकोर्ट के वकील सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं और स्टालिन व अन्य खिलाफ एफआईआर की मांग की है। साथ ही स्टालिन को आगे कोई टिप्पणी न करने के निर्देश की भी मांग की है। सनातन धर्म के खिलाफ सभी बैठकों पर रोक लगाने की मांग की है। याचिका में छात्रों को धर्म के खिलाफ बोलने के लिए कॉलेजों में बैठकें आयोजित करने की सभी ‘प्रस्तावित योजना पर रोक लगाने की मांग की है। हालांकि फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि पहले जल्द सुनवाई के लिए ई-मेल करें। इससे पहले तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन और सांसद ए राजा के सनातन धर्म पर टिप्पणी का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। अर्जी में उदयनिधि स्टालिन और सांसद ए राजा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई की मांग की गई थी।
हमारी सनातन संस्कृति कई हजार साल पुरानी है। हम ऐसी संस्कृति में जीते हैं जहां किसी भी धर्म के साथ भेदभाव नहीं किया जाता। जैसे-जैसे हमारा समाज शिक्षित हो रहा है, इसमें और भी पारदर्शिता आती जा रही है। पहले विवाहों को लेकर भी हमारे समाज में कड़े नियम थे। जैसे-जैसे हमारे युवा शिक्षित होते जा रहे हैं वैसे-वैसे हमारे रिश्ते तक दीगर समाजों में हो रहे हैं। इससे हमारा रोटी-बेटी का संबंध और भी प्रगाढ़ होता जा रहा है। ऐसे में भारत का शिक्षित युवा इस बात को बखूबी समझता है, कि यहां जो भी बातें कही जा रही हैं उनके पीछे का उद्देश्य महज अपना सियासी हित साधना भर है। लिहाजा यह कह देना कि कुछ लोग हमारी सनातन संस्कृति को तोडऩा चाहते हैं, इससे काम नहीं चलने वाला। हमारी सनातन संस्कृति बेहद मजबूत है। इसको इतनी आसानी से नहीं तोड़ा जा सकता है।
कवि ध्रुव शुक्ल कहते हैं कि ‘सनातन’ एक विशेषण है जो यह न जान पाने के कारण दिया गया है कि जीवन कहॉं से आ रहा है और कब से है। जैसे ‘अनादि’ एक विशेषण है जो हमारे पूर्वजों ने यह न जान पाने के कारण दिया है कि इस सृष्टि का आदि और अंत कहॉं है। जब हमारे पुरखे इस संसार के होने के कारण को खोजते हुए उसके उत्प्रेरक के नाम रखते-रखते थक गये तो उसे ‘अनाम’ कहने लगे। जब अपनी ही राम कहानी पूरी नहीं कह पाये तो कहने लगे कि जीवन तो एक ‘अकथ कहानी’ है। कुछ समझते तो बनती है पर पूरी बखानी नहीं जाती।
पूर्वजों ने अपनी प्रतीतियों से ही यह जाना कि महाशून्य के महामौन से यह सृष्टि मुखरित हुई होगी। रूप, रस, गंध, स्पर्श और शब्द उसी से आये होंगे। यह धरती, आग, पानी, हवा उसी एक महाकाश से प्रकट हुए होंगे। हमारे ज्ञान और कर्म की इंद्रियां भी उसी एक रहस्यमय विराट के अंत:करण से जुड़ी हुई लगती हैं। हम उस ‘अविनाशी’ में अपने जन्म और मृत्यु के बीच थोड़ी-सी जगह पाकर न जाने कबसे पोषित होते चले आ रहे हैं।
हमें अब क्यों लगने लगा है कि अस्तित्व में मौजूद हमारे पोषण के साधन घटते जा रहे हैं? हमें अब क्यों लगने लगा है कि हमारी बनायी राज्य व्यवस्थाएं और हम इन साधनों को सुरक्षित नहीं रख पा रहे हैं? हमें अब क्यों लगने लगा है कि यह धरती जिसे हम माता कहते हैं, आने वाले समय में हमें पालने-पोसने में असमर्थ हो जायेगी? हम क्यों इतने अशांत हैं? हमारे जीवन में शांति और सन्मति का उद्गम कहॉं है? हमारे भीतर और बाहर के बीच वह द्वार कहॉं है जिस पर सनातन प्रकाश रोज दस्तक देता है। नींद में डूबे लोगों को इस प्रकाश की खबर देने के लिए खगकुल की अलार्म घड़ी भोर होते ही अपने आप बजने लगती है।
जिन्हें हम देवता कहते हैं वे हमारे जैसे कोई व्यक्ति तो हैं नहीं। वे तो ऋतुकालों में अपनी भूमिका निभाने वाली आग, हवा और पानी जैसे हैं जो धरती और आकाश के बीच बार-बार वह वर्षाकाल रचते रहते हैं। जो बिना किसी भेदभाव के सबके जीवन को समर्थन देने के लिए हर साल सब पर छा जाता है। देवता कहॉं जानते हैं कि धरती पर बसे किस देश में हिन्दुओं का शासन है, किस देश में ईसाइयों का शासन है और किस देश में मुसलमान राज्य कर रहे हैं। देवता तो सनातन में अपने स्वभाव के अनुरूप प्रकट होकर सबके स्वराज्य में सहयोगी हैं और जो देवताओं की तरह ही सबको जन्मजात मिला हुआ है।
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सनातन तो हमें बचाये हुए है, हम क्या सनातन को बचायेंगे! हम अगर अब भी बचे रहना चाहते हैं और हमारी अंगुली पकड़कर जो जीवन हमारे साथ चला आ रहा है, उसे भी बचाना चाहते हैं तो बचने एक ही उपाय है कि हम बिना देर किये उन साधनों को बचाने में जुट जायें जिनकी कोई जात-पांत नहीं होती। ये साधन तो जीवनव्यापी सर्वनाम में घुले-मिले हैं। यह सर्वनाम ही सनातन है, जिसे भले ही सब अलग-अलग नामों से पुकारते हों। महात्मा गांधी का राम इसी सनातन का एक नाम है। इसी सनातन का एक नाम रहीम भी तो है।