Mangarh Dham मानगढ़ धाम की गौरव गाथा का स्मरण

Mangarh Dham

Mangarh Dham अर्जुन राम मेघवाल

Mangarh Dham हमारा देश हमारे गौरवान्वित नागरिकों के संपूर्ण सामर्थ्य का उपयोग करते हुए बहुआयामी रूप से विकास की राह पर बड़े कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।

Mangarh Dham आजादी का अमृत महोत्सव स्वयं का विश्लेषण करने और जन चेतना को जागृत करने का सही अवसर है ताकि देश नई ऊंचाइयों को छू सके। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनेक ऐसी गाथाएं शामिल हैं जो स्वतंत्रता सेनानियों की जागृत चेतना को दर्शाती है जो राष्ट्रवादी आंदोलन में भाग लेने वाले सभी वर्गों को समाहित करती हैं।

यशवंचित विस्मृत वीरों और वीरांगनाओं ने मातृभूमि की गरिमा की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया था। हाल ही में भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर, 15 नवम्बर को मनाए गए द्वितीय ‘जनजातीय गौरव दिवस‘ में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के पराक्रम और साहसिक कृत्यों का पुन:स्मरण कराया गया। 17 नवम्बर का दिन अंग्रेज हुकूमत के अत्याचारों के विरुद्ध लड़ते हुए गोविंद गुरु के नेतृत्व में जनजातीय व्यक्तियों द्वारा किए गए नरसंहार का स्मरण कराता है।

Mangarh Dham राजस्थान के डूंगरपुर बांसवाड़ा क्षेत्र में एक बंजारा परिवार में जन्मे गोविंद गुरु ने स्वामी दयानंद सरस्वती की शिक्षा को आत्मसात किया और वह सामाजिक-धार्मिक उत्थान के माध्यम से भील जनजातियों को एकजुट करने के लिए सक्रिय हो गए।

भारतीय परंपरा और आदर्शों के सच्चे प्रतिपादक के रूप में उन्होंने 25 वर्ष की आयु में सन् 1883 में जनजातीय लोगों के बीच एकता और सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए ‘संप सभा‘ की स्थापना की। ये सामाजिक-आर्थिक कदम उसी समय उठाए गए जिस समय ब्रिटिशराज भारत से योजनाबद्ध तरीके से लूटपाट कर रहा था और स्थानीय और स्वदेशी लोगों के हितों के प्रति असंवेदनशील हो गया था। सन् 1903 के बाद से मानगढ़ पहाड़ी इस क्षेत्र के भील और अन्य जनजातीय लोगों के लिए एक मेले के रूप में आयोजित वार्षिक समागम के लिए प्रसिद्ध स्थान बन गया था।

Mangarh Dham भारत में स्व-शासन की मांग ने 20वीं शताब्दी के पहले दशक में बहुत अधिक जोर पकड़ लिया। फूट डालो और राज करो की नीति और उसके परिणामस्वरूप हुए बंगाल विभाजन तथा धन संपत्ति को देश से बाहर ले जाने की प्रणाली ने ब्रिटिश शासन के नैतिक आधार का भांडाफोड़ कर दिया था। गोविंद गुरु ने भी सूखा/अकाल प्रभावित परिस्थितियों में जनजातियों से लिए जाने वाले लगान को कम करने और धर्म तथा रीति-रिवाजों का पालन करने में स्वतंत्रता की मांग रखी।

स्वतंत्रता संग्राम के भाग के रूप में, जनजातियां और भील समुदाय अंग्रेजों के विरुद्ध बड़े संघर्ष की तैयारी में जुटे थे। सन 1913 में 17 नवम्बर की पूर्णिमा के दिन मानगढ़ पहाड़ी पर 1.5 लाख से अधिक भील, गुरु के प्रति अपनी निष्ठा दर्शाते हुए इकठ्ठा हुए ताकि वे अपनी आध्यात्मिक इच्छाओं को पूरा कर सकें और ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिए कोई रास्ता खोज सकें। गैर कानूनी रूप से इकठ्ठा किया गया लगान स्पष्ट रूप से अंग्रेजों की दमनकारी नीति और अन्यायपूर्ण कृत्यों को दर्शाता था। ‘भूरेटिया नही मानू रे‘ (मैं अंग्रेजों के दमनकारी शासन के प्रति कभी भी वफादार होना स्वीकार नहीं करूंगा) गीत जनजातीय लोगों की मुखर अभिव्यक्ति बन गया। अत: अन्याय के विरुद्ध लडऩे के लिए गोविंद गुरु का आह्वान ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रथम सविनय अवज्ञा आंदोलन की नींव साबित हुआ।

Mangarh Dham इतने बड़े पैमाने पर होने वाली सभा की भनक लगते ही अंग्रेजों ने मानगढ़ पहाड़ी पर 7 कंपनियां तैनात की जिन्होंने पूरी मानगढ़ पहाड़ी को घेर लिया और तोपें भी तैनात कर दीं। गोलियों का भय दिखाते हुए जनजातीय लोगों के हौंसलों को पस्त करने का प्रयास किया। अंग्रेजी हुकूमत ने गोविन्द गुरू और उनके अनुयायी भील समाज के लोगों को मानगढ़ पहाड़ी खाली करने का आदेश दिया।

जनता की आध्यात्मिकता द्वारा संवर्धित जागृत चेतना किसी भी प्रकार से अंग्रेजों के प्रति वफादारी स्वीकार करने को तैयार नहीं थी। उनके विश्वास और मातृभूमि की रक्षा करने की भावना ने गोलियों के भय को नजरअंदाज कर दिया।

संवेदनहीन अंग्रेजों ने बड़े पैमाने पर गोलीबारी का आदेश दिया और इस अमानवीय कृत्य के कारण उस दिन 1500 से अधिक जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राण त्याग दिए। अंग्रेजों का नैतिक आचरण लगातार विकृत होता गया जब उन्होंने 6 वर्षों के बाद जलियांवाला बाग नरसंहार और ऐसे ही अन्य अमानवीय कृत्यों को अंजाम दिया।

Mangarh Dham स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे विस्मृत वीरों के बलिदानों ने राष्ट्रवादी समुदाय के नैतिक मूल्यों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। इससे स्वतंत्रता को कानूनी और न्यायसंगत आवश्यकता के रूप में देखे जाने का एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया। इस भावना ने सभी को स्वतंत्र भारत के लिए कर्तव्यनिष्ठता से अपनी सक्रिय भूमिका निभाने में संपूर्ण रूप से प्रेरित किया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हमारे मूल, एकता और कर्तव्यपरायणता पर गर्व करते हुए औपनिवेशिक मानसिकता के अवशेषों को हटाते हुए विकसित भारत के उद्देश्य के साथ अमृत काल के पांच प्रण का आह्वान किया है। राष्ट्र निर्माण हेतु स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीयों की महत्पूर्ण भूमिका पूर्ण रूप से एक प्रेरणादायक गाथा है।

जनजातीय संस्कृति, प्रकृति संरक्षण और पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली के प्रति उनकी संबद्धता और सौहार्द अनुकरणीय है तथा संभ्रांत वर्ग और विकसित देशों के लिए एक सबक है जिसके माध्यम से कार्बन फुट प्रिंट को कम करने के तौर-तरीकों पर चर्चा की जा सकती है।

हाल ही में 01 नवंबर को मानगढ़ पहाड़ी में आयोजित ‘मानगढ़ धाम की गौरव गाथा’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात के मुख्यमंत्रियों के साथ, गोविन्द गुरू व बलिदानी भील समाज के वीरों का श्रद्धांजलि देने उपस्थित हुए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 1913 में इसी पहाड़ी पर एकत्रित जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के वंशज भी इस कार्यक्रम में उपस्थित थे।

राष्ट्रीय जनजातीय केन्द्र के रूप में इसका विकास राष्ट्र निर्माण में जनजातीय योगदान को मान्यता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। माननीय प्रधानमंत्री जी ने इस अवसर पर घोषणा की कि मानगढ़ धाम का विकास राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र की सरकारों के समन्वित प्रयासों और सहयोग से किया जाएगा।

इसके अतिरिक्त आदिवासी समाज के राष्ट्र निर्माण में योगदान एवं देश की स्वतंत्रता में उनके योगदान और बलिदान को रेखांकित करते हुए भारत सरकार द्वारा दस राज्यों यथा – अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात, आंध्र प्रदेश, गोवा एवं केरल में जनजाति संग्रहालय विकसित किए जा रहे हैं।

भारत के विकास पथ की तुलना किसी भरे गिलास से करें तो जनजातीय विरासत का उल्लेख करना ऐसा ही होगा जैसे आधे भरे गिलास को उलट देना। अब मोदी सरकार द्वारा की गई पहलों से जनजातीय लोग सरकार की मुख्य धारा में विकास एजेंडा में कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रहे हैं।

Mangarh Dham  इस गणतंत्र के राष्ट्रपति के रूप में जनजातीय नेता द्रौपदी मुर्मू को पाकर राष्ट्र गौरवान्वित महसूस करता है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल परिषद भी 08 जनजातीय मंत्रियों से अलंकृत है। लक्षित लाभार्थियों तक लाभ पहुंचाते हुए संपूर्ण परिपूर्णता करने के लिए गरीब कल्याण उपाय, जन केन्द्रित नीतियां और सुशासन के दृष्टिकोण ने उनके जीवनयापन को आसान करने की सुविधा प्रदान की है।

एकलव्य मोडल आवासीय विद्यालय का निर्माण, आदिवासी विश्वविद्यालय की स्थापना, छात्रों के लिए समर्पित छात्रवृत्ति स्कीम, सिकल सेल एनीमिया को नियंत्रित करने पर विशेष ध्यान, मिशन इन्द्रधनुष, अनुसंधान संस्थानों के माध्यम से जनजातीय विकास, बांस को वृक्ष की परिभाषा से हटाना, आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री आवास योजना सहित अन्य जनजातीय लोगों की क्षमता को विकसित करने में सहायता कर रहे हैं। संशोधनों के माध्यम से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) सुदृढ़ करने से उनके विरुद्ध अत्याचारों का प्रभावी निवारण हुआ है। समग्र रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व के कारण सामाजिक न्याय की एक नई परिभाषा तैयार हो रही है।

Mangarh Dham  आज हम मानगढ़ के शहीदों और विस्मृत वीरों के उत्कृष्ट बलिदान को याद करते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। आइए, समकालीन अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों पर एक व्यावहारिक समस्या-निवारक के रूप में, एक वैश्विक नेता के रूप में उभर रहे एक नए भारत के निर्माण हेतु उन स्वतंत्रता सेनानियों की नैतिकता के साथ हम अपने मूल्यों को एक साथ सार्थक करें।

आइए, अपने अतीत को जानें, अदम्य विरासत को आगे बढ़ाएं और आने वाली पीढ़ी के लिए एक उज्ज्वल भविष्य प्राप्त होने हेतु सांस्कृतिक मूल्यों से सीख प्राप्त करें। यह एक विकसित भारत के निर्माण के लिए सोच समझकर चिंतन-मनन करने और कार्य करने का समय है।

लेखक केंद्रीय संस्कृति और संसदीय कार्य राज्य मंत्री, एवं बीकानेर से लोकसभा सांसद हैं

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