राजकुमार मल
Rain : किसानों को कृषि वैज्ञानिकों की सलाह, आकस्मिक कार्य योजना जरूरी
Rain भाटापारा- कम या मध्यम अवधि में तैयार होने वाली प्रजाति का चयन करें। दक्ष सिंचाई विधि और अतिरिक्त जल निकास का पुख्ता इंतजाम। यह दोनों उस आकस्मिक कार्य योजना का अहम हिस्सा हैं, जो अल्प या अति वर्षा की स्थिति में होने वाले नुकसान से बचाएंगी।
मानसूनी बारिश की गति फिलहाल ठीक है। खेतों में नमी का मानक स्तर भी बना हुआ है लेकिन कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को अलर्ट रहने की सलाह दी है। वर्षा जल पर निर्भर रहने वाले किसानों से कहा है कि अल्प या अति वर्षा जैसी स्थितियों से फसलों को बचाने के लिए आकस्मिक कार्य योजना के तहत काम करें ताकि नुकसान प्रतिशत कम हो सके और उत्पादन का स्तर भी प्रभावित ना हो।
अल्प वर्षा की स्थिति में
अल्प वर्षा की स्थितियां जहां ज्यादा देखी जातीं रहीं हैं, वहां कम पानी की जरूरत व शीघ्र पकने वाली प्रजाति का चयन किसानों को करना चाहिए। इसके अलावा एक फसल की जगह मिश्रित फसल लेना सही होगा। जल संरक्षण पर ध्यान देते हुए बहाव की विपरीत दिशा में कल्टीवेशन करना चाहिए ताकि जल-जमाव बना रहे। बोनी के समय बीज की मात्रा बढ़ाएं ताकि सूखा की स्थिति में अतिरिक्त बीज से बनने वाले पौधे बचे रहें।
अति वर्षा की स्थिति में
अति या भारी बारिश के बाद फसलों को डूबने से बचाने के लिए जल निकास नालियों की सफाई निरंतर करनी होगी। व्यवस्था के बाद भी जल-जमाव का स्तर बना हुआ हो, तो दोबारा बोनी की तैयारी करनी होगी। इसमें शीघ्र पकने वाली प्रजाति का चयन करना चाहिए। बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में बाढ़ का पानी उतरने के बाद तोरिया, उड़द, मूंग या सूरजमुखी की फसल ली जा सकती है। इन फसलों की बोनी के बाद भी जल निकास की पक्की व्यवस्था करनी होगी।
यह है आकस्मिक कार्य योजना
असामान्य मानसून की स्थितियों से बचाव के लिए बनी आकस्मिक कार्य योजना में उत्पादकता का स्तर बनाए रखने के लिए सुझाव दिए गए हैं। इसमें सूखा की स्थितियों पर जल संरक्षण पर गंभीरता के साथ काम करने की सलाह दी जाती है। अति बारिश से होने वाले नुकसान से बचाव के लिए जल निकास प्रणाली को सुदृढ़ बनाने का सुझाव है। दोनों ही स्थितियों में शीघ्र तैयार होने वाली प्रजाति की बोनी अहम है।
पर्याप्त नमी है
बारिश की स्थिति फिलहाल संतोषजनक है। नमी भी पर्याप्त है लेकिन आकस्मिक कार्य योजना आवश्यक है ताकि प्रतिकूल स्थितियों से बचा जा सके।
– डॉ एस आर पटेल, रिटायर्ड साइंटिस्ट, एग्रोनॉमी, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर