Punjab Assembly आत्म पराजय का रास्ता

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Punjab Assembly पंजाब विधानसभा 

Punjab Assembly अब इस बात का पर्याप्त अनुभव है कि पहचान आधारित ध्रुवीकरण मुक्ति कोई मार्ग प्रशस्त नहीं करते। उलटे वे समाज को एक दुश्चक्र में फंसा देते हैं।

Punjab Assembly जब पंजाब विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत के बाद पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने पंजाब और दिल्ली के सभी सरकारी दफ्तरों में महात्मा गांधी की तस्वीर हटा कर भगत सिंह और डॉ. बीआर अंबेडकर के फोटो लगाने का फैसला लिया, तो संभवत: इसे पार्टी के नेता और दिल्ली में मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने अधिक गंभीरता से ले लिया।

Punjab Assembly उन्होंने शायद यह सोच लिया कि अब सचमुच उनकी पार्टी भगत सिंह और डॉ. अंबेडकर के बताए रास्ते पर चलेगी। और इसीलिए उन्होंने ‘अशोक विजय दशमी’ पर उस समारोह में भाग लिया, जिसमें हिंदू देवी-देवताओं में आस्था ना रखने की उस प्रतिज्ञा को दोहराया गया, जो डॉ. अंबेडकर ने बौद्ध धर्म का अंगीकार करने के समय अपने अनुयायियों को दिलाई थी।

मगर गौतम यह नहीं समझ पाए कि जिस उदार और प्रगतिशील माहौल में इस तरह की बहसें और कार्य में कोई जोखिम नहीं था, वो माहौल अब बदल चुका है। तो भारतीय जनता पार्टी ने दोहराए गए कार्य को मुद्दा बनाया। और केजरीवाल ने उसी गणना के तहत गौतम को सियासी तौर पर कुर्बान करने का फैसला किया, जिसके तहत उन्होंने डॉ. अंबेडकर की तस्वीरें लगवाई थीँ।

बहरहाल, ये मसला सिर्फ किसी पार्टी या नेता से जुड़ा नहीं है। इसका संबंध व्यापक राजनीतिक वातावरण से है, जो गुरते वक्त के साथ में देश बनता गया है। कहा जा सकता है कि इस माहौल को बनाने में जाति और संप्रदाय की पहचान आधारित वैसी चर्चाओं ने भी योगदान किया है, जिन्होंने अपने अति-उत्साह में जवाबी ध्रुवीकरण को शक्ति दी। अब दुनिया में इस बात का पर्याप्त अनुभव है कि ऐसे ध्रुवीकरण- चाहे वो जिस तरफ से हों, मुक्ति कोई मार्ग प्रशस्त नहीं करते।

उलटे वे समाज को ऐसे दुश्चक्र में फंसा देते हैं, जिनमें रोजमर्रा की जिंदगी के असली सवाल एजेंडे से हट जाते हैँ। इससे लाभान्वित सत्ताधारी वर्ग अपनी सुविधा के मुताबिक ऐसे ध्रुवीकरणों को और हवा देते हैँ। ऐसे में आस्था और पहचान की राजनीति उन समूहों के लिए आत्म पराजय का रास्ता बन जाती है, जो वंचित या हाशिये पर रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन तबकों के हितों की नुमाइंदगी का दावा करने वाली पार्टियां, नेता और बुद्धिजीवी अब भी इसे समझने में अक्षम बने हुए हैँ।

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