Premchand’s death anniversary : प्रेमचंद की पुण्यतिथि पर जनमंच में नाटक “लांछन” का मंचन : नारियों की दर्द और व्यथा को दर्शाता है नाटक “लांछन”

Premchand's death anniversary :

Premchand’s death anniversary :  स्त्री पर बेवजह शक करने से बिखर गया पूरा परिवार

 

 

Premchand’s death anniversary :  रायपुर । प्रेमचंद की कहानी लांछन मौजूदा समय में स्त्रियों पर हो रहे जुल्म और अत्याचार की व्यथा को दर्शाता है साथ ही स्त्रियों पर बेवजह शक करने से किस तरह घर बिखर जाता है इसको भी प्रमुखता से नाटक में दर्शाया गया है… यानी समाज में स्त्री को छले जाने की कहानी है लांछन।  यह नाटक एक महिला के इर्द गिर्द घूमती है। एक महिला अपने घर में सफाई करने वाले की माली हालात पर तरस खाकर उसकी आर्थिक सहायता करती है। लेकिन महिला का पति बेवजह उसपर शक करता है पति के बार-बार शक करने की प्रवृत्ति से महिला परेशान हो जाती है। इससे पति-पत्नी के बीच रोजाना झगड़े होते हैं। अंत में पति की असलियत सामने आती है और है और महिला घर छोड़कर चली जाती है। और घर बिखर जाता है। कुछ ऐसा ही देखने को मिला नाटक लांछन में। प्रेमचंद की पुण्यतिथि पर छत्तीसगढ़ फिल्म एंड विजुअल आर्ट सोसाइटी की ओर से रविवार को सड्डू स्थित जनमंच पर नाटक लांछन का मंचन किया गया… नाटक का निर्देशन रचना मिश्रा ने किया … कार्यक्रम डॉ. राधा बाई शासकीय नवीन कन्या महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा रखा गया… नाटक में  कलाकारों ने बेहतरीन प्रस्तुति दी… और कई संदेश भी दिए…प्रेमचंद की कहानी ‘लांछन’ मौजूदा समय में महिलाओं की दशा को चित्रित करता है.. नाटक लांछन एक ओर जहां दर्शकों को गुदगुदाया तो वहीं लोगों कई समस्याओं पर सोचने पर मजबूर किया…

Premchand’s death anniversary :  इस अवसर पर छत्तीसगढ़ फिल्म एंड विजुअल आर्ट सोसाइटी के डायरेक्टर सुभाष मिश्रा ने कहा कि प्रेमचंद्र की पुण्यतिथि पर हम सभी उनको स्मरण करते हैं उन्होंने कहा कि प्रेमचन्द मानव को मानवता का पहचान करवाते हैं  जिन्दगी की हकीकतों से हमारा साक्षात्कार कराते हैं। समाज में बढ रहे उत्पीडन, अन्याय और शोषण के विरूध्द आवाज उठाते हैं। खासकर स्त्रियों को लेकर उन्होंने जो रचना अपने समय में की थी, वो आज भी उतना ही प्रासंगिकता है। नाटक लांछन भी ऐसा ही है।

 100 साल बाद भी प्रासंगिक है नाटक

 

 

छत्तीसगढ़ में नाट्य निर्देशिका रचना मिश्रा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। ये निरंतर छत्तीसगढ़ के विभिन्न नाट्य आयोजनों में नाटकों की प्रस्तुति करवाती रही हैं।  इस अवसर पर रचना मिश्रा ने कहा प्रेमचंद की कहानी आज भी वैसा ही प्रासंगिक है जैसे कि उस समय थी। यह कहानी 100 साल के बाद भी आज भी प्रासंगिक है समय बदला है चीजें बदली है लेकिन महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और दर्द वही है आज चाहे घर हो या बाहर महिलाओं को वैसे ही देखा जाता है जैसे पहले देखा जाता था हालांकि थोड़ा बदलाव हुआ है जमाना एडवांस हुआ है लेकिन चीजें वैसे की वैसा ही है..

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पात्र परिचय

मंगेश कुमार – श्याम बाबू
संध्या वर्मा – देवी
आदित्य देवांगन – मुन्नू
रोहिणी परिहार – शारदा
सूर्या तिवारी – रजा
प्रेम वस्त्रकार – दरोगा
लोकेश यादव – हवलदार
उमेश उपाध्याय – पड़ोसी
सुमित भारती – फुगे वाला

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