Political turmoil in Jharkhand झारखण्ड में राजनैतिक उथल-पुथल

Political turmoil in Jharkhand

अजय दीक्षित

Political turmoil in Jharkhand झारखण्ड में राजनैतिक उथल-पुथल

Political turmoil in Jharkhand  झारखण्ड की राजनीति में अचानक अंधड़ आ गया है । मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लाभ के पद के तहत दागी पाये गये हैं । आश्चर्य है कि खुद मुख्यमंत्री और खनन मंत्री ने अपने नाम पत्थर खनन का पट्टा लिखवा लिया, लेकिन जब विपक्ष ने तमाम दस्तावेज और साक्ष्य सार्वजनिक कर दिये और राज्यपाल तक शिकायत पहुंच गई, तो लाभ के पत्थर छोड़ भी दिये ।

Political turmoil in Jharkhand  इतने नासमझ हैं मुख्यमंत्री सोरेन और इतने बेवकूफ सरकार के आला अफसर और मुख्यमंत्री के सलाहकार हैं! हेमंत सोरेन पहले भी मुख्यमंत्री रहे हैं । विधायकी के कायदे-कानून भी उन्होंने पढ़े होंगे कि किसी भी तरह की लाभ की खदान भ्रष्टाचार का ही पर्याय है ।

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इसी आरोप में उनके पिता शिबू सोरेन को इस्तीफा देना पड़ा था । बहरहाल आज वह राज्यसभा सांसद हैं । सोनिया गांधी को 2006 में सांसदी से इस्तीफा देना पड़ा था, क्योंकि यह यूपीए सरकार में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष थीं । इस पद में संशोधन किया गया ।

उन्हें दोबारा लोकसभा चुनाव जीत कर संसद में लौटना पड़ा । इसी तरह जया बच्चन उप्र फिल्म विकास निगम की अध्यक्षा थीं, लिहाजा उन्हें भी राज्यसभा की सदस्यता गंवानी पड़ी । हेमंत सोरेन ने तो लाभ की खदान के लिए बाकायदा आवेदन किया था । अपने अधीन मंत्रालय से जून, 2021 में उसे मंजूरी दिलाई गई। सितंबर तक पर्यावरण संबंधी प्रावधान भी पास करवा लिये गये ।

Political turmoil in Jharkhand  उन्होंने पत्थर खनन से मुनाफा कमाया अथवा कुछ भी हासिल नहीं किया, लेकिन संवैधानिक पद का दुरुपयोग तो किया और सत्ता के साथ-साथ खननकारी बनकर माल कमाने का बन्दोबस्त जरूर किया था यही बुनियादी तौर पर अपराध था । वैसे झारखंड मुक्ति मोर्चा ( झामुमो) का भ्रष्टाचार से पुराना नाता रहा है । केन्द्र में पीवी नरसिंह राव सरकार के पक्ष में बहुमत के जुगाड़ के मद्देनजर तत्कालीन झामुमो नेताओं-शिबू सोरेन और सूरज मंडल आदि ने नकदी घूस कबूल की थी और पैसे को दिल्ली के बैंकों में ही जमा करवा दिया था ।

अदालत उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकी, क्योंकि उसे संसद के भीतर का घटनाक्रम मान लिया गया । लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री को अभियुक्त नंबर वन अदालत ने घोषित किया था और विज्ञान भवन में विशेष अदालत का निर्माण किया गया था। बहरहाल अब मुख्यमंत्री सोरेन की कुर्सी संकट में है ।

चुनाव आयोग ने जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के तहत जो अनुशंसा राज्यपाल रमेश बैंस को भेजी है, महामहिम उसे स्वीकार करने को बाध्यकारी हैं। चूंकि सम्पादकीय लिखने तक राज्यपाल का फैसला और अधिसूचना सार्वजनिक नहीं हुए थे, लिहाजा यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि आयोग ने 6 साल के लिए सोरेन को अयोग्य करार दिया है अथवा मुख्यमंत्री को इस्तीफा ही देना पड़ेगा, क्योंकि उनकी विधायकी रद्द कर दी गई है। ऐसे में सोरेन उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च अदालत में चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दे सकते हैं ।

यह भी सम्भव है कि सोरेन के इस्तीफे से जो सीट खाली होगी, उसी पर वह उपचुनाव जीत कर फिर विधायक बन सकते हैं । नतीजतन विधायक दल उन्हें मुख्यमंत्री भी चुन सकता है । उस स्थिति में राज्यपाल के लिए उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाना बाध्यकारी होगा । बहरहाल इस अंधड़ के बावजूद झारखण्ड में राजनीतिक समीकरण बदलने वाले नहीं हैं, क्योंकि झामुमो गठबंधन के पास कुल 52 विधायकों का समर्थन है। विधानसभा में कुल सदस्य 82 हैं। विपक्षी भाजपा के कुल 30 विधायक हैं। अलबत्ता भाजपा गठबंधन गदगद है, क्योंकि मुख्यमंत्री को बेनकाब करने की उनकी रणनीति कामयाब रही है।

बिहार के बाद झारखंड भाजपा के लिए बेहद संवेदनशील राज्य है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में उसे 51 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे भाजपा उसी चुनावी स्वीकृति के माहौल को जिन्दा रखना चाहती है ।

राज्यपाल क्या फैसला सुनाते हैं और स्पीकर मुख्यमंत्री को अदालत में चुनौती देने के नाम पर कितना समय देते हैं और सोरेन वैकल्पिक मुख्यमंत्री के तौर पर किसका चयन करते हैं, ये घटनाक्रम देखने के बाद ही आकलन किया जा सकेगा कि झारखण्ड की राजनीति किस दिशा में बढ़ती है । उधर, हेमंत सोरेन ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि उन्हें बदनाम करने के लिए उनके खिलाफ दुष्प्रचार किया जा रहा है।

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उन्होंने यह भी कहा कि मोदी सरकार अपने इरादों में सफल नहीं होगी। उनके खिलाफ अभियान तो चलाया जा सकता है, किन्तु जनमत को खरीदा नहीं जा सकता ।

उन्होंने कहा कि जनमत हमारे दल के समर्थन में है । ऐसी स्थिति में केन्द्र सरकार को जनता को यह आश्वासन दिलाना है कि यह अभियान हेमंत सोरेन को बदनाम करने के लिए नहीं चलाया जा रहा है, बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को अपने अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश है । वैसे अगर सार्वजनिक पद पर बैठा कोई व्यक्ति भ्रष्टाचार करता है, तो उसकी जवाबदेही सुनिधित की जानी चाहिए। भ्रष्टाचार के कारण देश में लोकतंत्र कमजोर होता है ।

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