Phagun Mandai Dantewada दंतेवाड़ा के ऐतिहासिक फागुन मंडई का आज पांचवा दिन

Phagun Mandai Dantewada

Phagun Mandai Dantewada दंतेवाड़ा के ऐतिहासिक फागुन मंडई का आज पांचवा दिन

Phagun Mandai Dantewada दंतेवाड़ा !   बस्तर की आराध्य देवी माई दंतेश्वरी के मंदिर की ऐतिहासिक व पुरातन काल से चली आ रही फागुन मडई जिसमे माई जी का नगर भ्रमण होती है |

इस यात्रा में पुरे नौ दिनों तक माँ दंतेश्वरि व माता मावली के छत्र को मांं दंतेश्वरी मंदिर से डोली के द्वारा स्थानीय सूर्य नारायण मंदिर तक ले जाया जाता है |

Phagun Mandai Dantewada 9 दिनों तक चलने वाले इस यात्रा पर माय जी अपने नौ अलग-अलग रूपों में विद्यमान रहती है प्रथम पालकी के दिन स्थानीय शीतला माता मंदिर सरोवर से जल लिया जाताा है व विधिवत पूजा-अर्चना उपरांत माता मावली व माता दंतेश्वरी की डोली को वापस माँ दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है !

 

मंदिर पहुंचने के उपरांत संध्या के समय भोग लगाया जाता है भोग के बाद जिया बाबा स्नान कर शीतला माता मंदिर सरोवर के जल से पराघाव कर पुनः माई जी की डोली को प्रवेश करवाया जाता है यह विधान पुरे नौ दिनों तक अलग अलग विधि से चलता है |

प्रथम पालकी के दिन स्थानीय मेंढका डोबरा देव गुड़ी में कलश स्थापना की जाती है द्वितीय दिवस को विशेष डोली परिक्रमा के साथ ताड़ धोनी रस्म की जाती है |इस रस्म में ताड़ के पत्तों को शाखा सहित माता शीतला सरोवर में धोया जाता है तत्पश्चात पत्तों की वधिवत पूजा अर्चना कर मंदिर में लाकर रखा जाता है तृतीय दिवस को खोर खुदनी कहा जाता है !

रस्म को पुरातन काल से विशेष पद व दायित्व प्राप्त लोग करते है जिसको तुड़पा, राउत, भंडारी इस रस्म को निभाते है माई जी के पुरातन काल से जो सेवादार व साधक है वो मेंढका डोबर गुड़ी में पूजा अर्चना कर वापस माई जी के मंदिर में पूजा साधना कर पुनः मेंढका डोबरा वापस आते है | रात्रि दस बजे पश्चात मंदिर में पूजा अर्चना व साधना की जाती है जो की गुप्त रूप से होता है जिसे खोर खुदनी कहते हैं |

चौथे दिन माई जी के डोली के साथ नाच माडनी जिसे सठिया व कुम्हार पद के लोग विशेष रूप से मेंढका डोबरा मैदान में इस रस्म को पूरा करते है | पंचमी के दिन भी डोली के साथ साथ डोली मंदिर वापसी उपरांत रात्रि में लम्हा मार कर रस्म अदा किया जाता है इस रस्म में खरगोश का शिकार किया जाता है जिसे नृत्य के माध्यम से पेस किया जाता है जिसे लम्हा मार कहा जाता है लम्हा मार नाट्य को पुरातन काल से दर्शाया जाता है |

आज़ पंचमी है याने रात्रि को लम्हा मार की रस्म अदा की जाएगी व इसी तरह प्रतिदिन होली तक रसमें व पूजा होती रहेगी समस्त देवी देवताओं के बिदाई के पश्चात फाल्गुन मंडई (मेला ) की समाप्ति होगी |

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