Discussion on inflation in Parliament संसद में महंगाई पर चर्चा: तब फिर बहस क्या ?

Discussion on inflation in Parliament

Discussion on inflation in Parliament संसद में महंगाई पर चर्चा: तब फिर बहस क्या ?

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Discussion on inflation in Parliament संसद में महंगाई पर चर्चा: तब फिर बहस क्या ?

Parliament  संसद में महंगाई के सवाल पर आखिर चर्चा हुई। लेकिन उसका जवाब जिस रूप में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने दिया, उसका निष्कर्ष यह है कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में कोई सार्थक बहस नहीं हो सकती। जिस समय सारी दुनिया महंगाई से परेशान है, उस समय वित्त मंत्री का यह कहना कि भारत में महंगाई समस्या नहीं है, क्या अजीब बात नहीं है? वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि हाल में खाने-पीने की चीजों पर लगाए गए जीएसटी से गरीबों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

Parliament  उन्होंने यह दावा भी कर दिया कि भारत ना तो मुद्रास्फीति का शिकार होगा, ना ही स्टैगफ्लैशन (आर्थिक वृद्धि दर से मुद्रास्फीति दर के ज्यादा होने) से। जाहिरा तौर पर ये तमाम बातें तथ्यों और आज की सच्चाई का मुंह चिढ़ाती लगती हैँ। वैसे ये दावे वर्तमान सरकार की शैली के अनुरूप ही हैं। यह समझ तो कई वर्ष पहले बन गई थी कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की रुचि अर्थव्यवस्था को संभालने में नहीं, बल्कि आर्थिक सुर्खियों को संभालने में है। तो वित्त मंत्री के दावे प्रमुख सुर्खियां बने।

Parliament  स्पष्टत: देश में आज मीडिया और राजनीति का जो माहौल है, उसके बीच बड़ी संख्या में लोग इन दावों पर यकीन कर लेंगे। उससे सरकार का फौरी मकसद पूरा हो जाएगा। लेकिन आखिर कोई समाज सच्चाई से मुंह छिपा कर कब तक चल सकता है?

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Discussion on inflation in Parliament संसद में महंगाई पर चर्चा: तब फिर बहस क्या ?Parliament ध्यान देने की बात यह है कि वित्त मंत्री की बातें खुद उनकी सरकार के आंकड़ों को नजरअंदाज करती लगती हैं। ऐसे में आखिर क्या सार्थक बहस हो सकती है? अगर सरकार बुनियादी सच को भी स्वीकार नहीं करना चाहती, सामने मौजूद समस्याओं पर भी उसका उद्देश्य सिर्फ शोर की बढ़त हासिल करना है, तो फिर मंच चाहे संसद का हो या फिर मीडिया का- वहां होने वाली चर्चा से देश की ना तो कोई दिशा तय हो सकती है और ना ही कोई बुनियादी राष्ट्रीय आम सहमति बन सकती है।

Parliament  उस हाल में देश में मत विखंडन का बढ़ते जाना एक तयशुदा बात होगी। लेकिन हकीकत यह है कि कोई देश या समाज अलग-अलग खेमों की बिखरी सच्चाइयों के साथ जी नहीं सकता- आगे बढऩे की बात तो दीगर है।

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