भारत के संविधान निर्माण में हमारे पुरखों ने गलतियां की

भारत के संविधान निर्माण में हमारे पुरखों ने गलतियां की
0 वरिष्ठ वकील कनक तिवारी से जनधारा के प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की विशेष चर्चा

जनधारा समाचार
रायपुर। देश में लोकसभा चुनाव के बीच ‘संविधान संकट में हैÓ को लेकर सत्ता और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। इस आम चुनाव में भाजपा अबकी बार 400 पार के नारे के साथ मैदान में उतरी तो कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल भाजपा की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं। विपक्ष का आरोप है कि भाजपा पूरे देश में सबकुछ एक जैसा करना चाहती है, जबकि यह देश विविधताओं वाला है। भाजपा हिंदुत्व को समर्थन करने वाली पार्टी है। भाजपा सत्ता में आई तो संविधान से धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और आरक्षण खत्म कर देगी। अपनी मंशा पूरा करने के लिए भाजपा संविधान बदल देगी। इसके कारण देश का संविधान संकट में है। विपक्ष के आरोपों का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राजस्थान के दौसा की सभा में जवाब दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि अगर आंबेडकर भी आ जाए तो कोई संविधान नहीं बदल सकता, क्योंकि गीता, बाइबल और कुरान की तरह हमारा संविधान है। इसी विषय पर जनधारा के प्रधान संपादक सुभाष मिश्र ने संविधान के ज्ञाता और वरिष्ठ वकील कनक तिवारी से चर्चा कर विपक्ष के आरोपों और भाजपा के दावों के कारण आमजन पर पड़ी राजनीतिक धूल हटाने का प्रयास किया।
वरिष्ठ वकील कनक तिवारी ने बताया कि संविधान पर संकट तो है। उन्होंने कहा कि भारत के संविधान निर्माण में हमारे पुरखों ने गलतियां की हैं। संविधान में बुनियादी यह हुई है कि संविधान में कई ऐसे प्रावधान हैं, जो भविष्य के संसदों के लिए छोड़ दिए गए कि वे लोग जैसा चाहें वैसा करें। यह उनकी सद्भावना थी, वे भले लोग थे। संविधान इतिहास, समाज विज्ञान, कानून, नीति शास्त्र और भूगोल है, लेकिन भूगोल ऐसा विज्ञान है, जिसे हम इतिहास के साथ जोड़कर समझने का प्रयास नहीं करते हैं। संविधान बनाने का काम 9 दिसंबर 1946 को शुरू हुआ, जबकि देश स्वतंत्र हुआ 15 अगस्त 1947 को और संविधान बनकर तैयार हुआ 26 नवंबर 1949 को। संविधान के कुछ हिस्से उसी समय लागू हुए, जबकि शेष 26 नवंबर 1950 को लागू हुआ। उसे हम संविधान दिवस या गणतंत्र दिवस कहते हैं। अब प्रश्न है कि क्या संविधान का मुखड़ा बदला जा सकता है? संविधान के मुखड़े में शुरू में समाजवाद और धर्म निरपेक्षता या पन्थ निरपेक्षता शब्द नहीं था। यह 42वें संसोधन में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 3 जनवरी 1977 को जोड़ा गया। भाजपा और प्रधानमन्त्री मोदी का कहना है कि समाजवाद और धर्म निरपेक्षता या पन्थ निरपेक्षता मूल संविधान में नहीं था। इसे इंदिरा गाँधी ने आपातकाल का फायदा उठाकर जोड़ा गया। प्रधानमंत्री मोदी काफी पढ़े-लिखे हैं। उनके सलाहकार भी पढ़े-लिखे हैं, लेकिन सार्वजनिक रूप से कुछ भी कहने से पहले फिर पढ़-लिख लेना चाहिए। ज्ञान पर दंभ नहीं करना चाहिए। इस देश में सबसे बड़ी ताकत सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है। आज तक देश में सर्वोच्च न्यायालय की सबसे बड़ी बेंच 13 जजों की बनी है। 13 जजों की इस बेंच का बड़ा फैसला आकार में भी बड़ा है। यह फैसला पूरी किताब है। उसमें कुछ बातें तय है। इस फैसले में एक बात स्पष्ट है कि संविधान का उद्देश्य धर्म निरपेक्षता या पन्थ निरपेक्षता है। यह संविधान का बुनियादी ढांचा है और इसे बदला नहीं जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला 1973 में आया था, जबकि इंदिरा गांधी ने संशोधन 1977 में लाया। इसलिए यह आरोप लगाना कि इंदिरा गांधी ने संविधान संशोधन कर इसे जोड़ा गलत है। भाजपा के पूर्व मंत्री रविशंकर प्रसाद और स्वर्गीय अरुण जेटली कहते रहे हैं कि इंदिरा गांधी ने संविधान संशोधन कर इसे जोड़ा है। वे लोगों को यह क्यों नहीं बताते कि सर्वोच्च न्यायालय ने चार पहले ही कहा था कि संविधान का

उद्देश्य धर्म निरपेक्षता या पन्थ निरपेक्षता है। यह संविधान का बुनियादी ढांचा है और इसे बदला नहीं जा सकता है। इसके बावजूद इसे बदला जा सकता है, जब 15 जजों की बेंच नया फैसला दे दे। 15 जजों की बेंच कह दे कि धर्म निरपेक्षता या पन्थ निरपेक्षता संविधान का बुनियादी ढांचा नहीं है तो विवाद खड़ा हो सकता है।
उन्होंने कहा कि जब हम अपना संविधान बना रहे थे तो इसके निर्माण में करीब 300 लोग शामिल थे। इसे बनाने में दो साल लगे। संविधान निर्माता बड़े विद्वान थे। प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने 13 दिसंबर 1946 को संविधान की उद्देशिका का पहला भाषण दिया। इसकी तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन से की जाती है। नेहरु ने अपने भाषण में संविधान का उद्देश्य बताया। इसके बाद बहस शुरू हुई। डॉ. आंबेडकर ने सबसे पहले उठे और कहा कि नेहरु तो घोषित समाजवादी हैं, लेकिन उनके भाषण में भारत समाजवाद लाएंगे इसका उल्लेख क्यों नहीं आया? नेहरु ने इसका जवाब जनवरी में दिया। संविधान को समझने के लिए इतिहास से अधिक भूगोल समझना जरुरी है। स्वतंत्रता के साथ हमने विभाजन झेला। देशभर में दंगे हो रहे थे। स्वतंत्रता से पहले अंग्रेज व्यापार और उद्योग यहां से उठाकर ले जाने लगे, जो नहीं ले जा सकते थे। उसके लिए भारत में ही एजेंट खड़े किए। उस समय देश में 550 से अधिक देसी रियासते थीं। हमारे पास पैसा, व्यापार और एकता नहीं था। 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गठन हो चुका था। हिन्दू महासभा भी सक्रिय थी। यह आग में घी डालने का काम कर रहा था। इन संगठन के प्रमुखों ने अंग्रेजों को पत्र लिखकर कहा कि कांग्रेस के आन्दोलन को कुचलिए। ये देश के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं। नेहरु ने डॉ. आंबेडकर को कहा था कि हमारे संविधान के प्रावधान में समाजवाद और धर्म निरपेक्षता या पन्थ निरपेक्षता दोनों हैं। अगर हम शब्दों में पिरोएंगे तो उनको देश में अराजकता पैदा करने का अवसर मिल जाएगा। डॉ. आंबेडकर इसे समझा और फिर कोई प्रतिवाद नहीं किया। उन्होंने कहा कि संविधान के निर्माण में सबसे बड़ी गलती हुई कि संविधान 90 हजार शब्दों का बना। इसके बावजूद संविधान में कई धाराएं तय नहीं हो पाई। डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि में संविधान से संतुष्ट नहीं हूँ। संविधान मेरे मन से नहीं बना, मेरा बस चलता तो संविधान जला देता। संविधान को अमल करने वाले अगर अच्छे होंगे तो अच्छा होगा।
वकील कनक तिवारी ने कहा कि अनुछेद 32 में सुप्रीम कोर्ट का गठन है। सुप्रीम कोर्ट मूल अधिकारों का एक हिस्सा है। अनुछेद 42 में लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश देश का कानून होगा। अनुच्छेद 68 में संविधान में संशोधन का अधिकार है। समय-समय पर परिस्थितियों के आधार पर संशोधन किया जा सकता है। मगर बुनियादी ढांचे में संशोधन नहीं किया जा सकता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU