UK water industry जरूरत सीख लेने की

UK water industry

UK water industry जरूरत सीख लेने की

UK water industry दुनिया ब्रिटेन की बात इसलिए सुनी, क्योंकि उसने 1980 के दौर में खुद भी ज्यादातर सार्वजनिक सेवाओं का धुआंधार निजीकरण किया। यहां तक कि पानी का भी। अब ब्रिटेन के लोग उसकी महंगी कीमत चुका रहे हैँ। मार्गरेट थैचर के जमाने में ब्रिटेन ने सारी दुनिया को निजीकरण के फायदे बताए।

UK water industry  दुनिया ने उसकी बात इसलिए सुनी, क्योंकि उसने 1980 के दौर में खुद भी ज्यादातर सार्वजनिक सेवाओं का धुआंधार निजीकरण किया। यहां तक कि पानी भी प्राइवेट कंपनियों को सौंप दिया गया। आज हाल यह है कि देश में 70 प्रतिशत से अधिक पानी पर इन्वेस्टमेंट फर्मों, प्राइवेट इक्विटी फर्मों, पेंशन फंड्स और टैक्स हैवेन्स से कारोबार करने वाले बिजनेस घरानों का मालिकाना कायम हो गया है।

UK water industry  अखबार द गार्जियन के एक रिसर्च के मुताबिक ब्रिटेन के पानी पर दुनिया के बड़े इन्वेस्टमेंट फंड्स का मालिकाना बन गया है। ब्रिटेन की नौ प्रमुख और छह अपेक्षाकृत छोटी पानी और सीवेज कंपनियों में लगभग 100 अन्य कंपनियों की शेयरहोल्डिंग है। 17 देशों की इन कंपनियों का आज ब्रिटेन में वॉटर इंडस्ट्री के 72 प्रतिशत हिस्से पर नियंत्रण है। इस रिसर्च में वॉटर इंडस्ट्री के 82 फीसदी हिस्से को ही शामिल किया जा सका।

UK water industry  इस रिसर्च की जरूरत इसलिए पड़ी कि आज ब्रिटिश उपभोक्ता पानी आपूर्ति में कई तरह की दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। लोगों को इस समय पानी की कमी, सीवेज बहाव और पाइप लीक की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। इसी कारण अब कई जन संगठनों ने वॉटर इंडस्ट्री को जवाबदेह बनाने की मांग उठाई है। आरोप है कि पानी के कारोबारी कारगर सेवा देने के लिए पर्याप्त निवेश नहीं कर रहे हैँ। इसका खामियाजा लोगों को उठाना पड़ रहा है।

UK water industry  साथ ही पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा है। तीन दशक पहले जब पानी का निजीकरण किया गया, तब यह कहा गया था कि नई व्यवस्था में आम लोग जल प्रबंधन में भागीदार होंगे। लेकिन असल में पानी बड़े निवेशकों के मुनाफे का उद्योग बन गया। शोधकर्ताओं ने कहा है कि अब पानी पर स्वामित्व का जो ढांचा है, उसमें पारदर्शिता और जवाबदेही न्यूनतम है। तो साफ है, जब तक ये व्यवस्था प्राइवेट कंपनियों के हाथ में बनी रहेगी, वॉटर इंडस्ट्री की जवाबदेही तय करने की मांग कहीं नहीं पहुंचेगी। जाहिर है, अब दुनिया को ब्रिटेन के इस अनुभव से सीख लेने की जरूरत है।

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