modern sanskrit जयंती विशेष एक नवम्बर

डा. संजय कुमार

modern sanskrit  संस्कृत कविता और भारतीय परंपरा के अग्रदूत श्रीनिवास रथ

modern sanskrit  आधुनिक संस्कृत के नवीन चिन्तक , नवीन सर्जक तथा नवीन रचनाधर्मी एवं अभिनवकालिदास के नाम से विख्यात श्रीनिवास रथ का जन्म कार्तिक पूर्णिमा 1 नवंबर 1933 ई . पुरी -उड़ीसा में हुआ था । उनके माता का नाम लक्ष्मीदेवी तथा पिता का नाम पं. जगन्नाथ शास्त्री काव्यतीर्थ था। जो गोपाल दिगंबर जैन महाविद्यालय,मुरैना में संस्कृत के प्राध्यापक थे। गद्यचिंतामणि, प्रमेयकमलमार्तंड एवं शाकटायन आदि ग्रंथों का बड़े सहज भाव से इनके पिता अध्यापन करते थे । श्रीनिवास रथ की प्रारंभिक शिक्षा पिता के सानिध्य में ही प्रारंभ हुई। इस प्रकार मुरैना से ही मध्यमा, उत्तर मध्यमा की परीक्षा उत्तीर्ण करके 1947 ई. में जिस समय भारत कठिन संघर्ष द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त किया उसी समय एस.डी. कॉलेज, सहारनपुर से आप इंटरमीडिएट की परीक्षा स सम्मान उत्तीर्ण किये । तत्पश्चात विक्टोरिया कॉलेज ,ग्वालियर से बी.ए.की परीक्षा उत्तीर्ण कर काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से स्वर्ण पदक के साथ स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त किये ।यद्यपि आप स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर लिए थे फिर भी ज्ञान की पिपासा शांत न होने के कारण राजकीय संस्कृत महाविद्यालय जो संप्रति संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के नाम से विख्यात है वहां से साहित्याचार्य की उपाधि भी ग्रहण किये । इस तरह प्रोफेसर रथ साहब प्राची एवं प्रतीची दोनों शिक्षा पद्धति से अपना ज्ञान वर्धन किए और संस्कृत अध्ययन –अध्यापन को ही अपने जीवन का लक्ष बना लिए । परिणाम स्वरूप सागर विश्वविद्यालय जो वर्तमान में डाक्टर हरीसिंह गौर विश्विद्यालय ,सागर(म.प्र.) में व्याख्याता के पद पर 1955 से कार्य करने लगे । उनकी विद्वत्ता , संस्कृत के प्रति लगन और निष्ठा के कारण संस्कृत विभाग -विक्रम विश्वविद्यालय ,उज्जैन (म.प्र.) के प्रारंभिक वर्ष में ही 195। ई. में आप नियुक्त हो गए ।यही पर आचार्य ,अध्यक्ष , संकायाध्यक्ष आदि महनीय पदों को अलंकृत करते हुए 1993 ई. सेवा निवृत्त हो गए । लेकिन आप सरकारी सेवा से निबृत्त हुए न कि अध्ययन , अध्यापन और लेखन की अपनी प्रवृत्ति से । आप सदैव अपने ज्ञान और लेखन से संस्कृत जगत आलोकित करते रहे । आपका संस्कृत छंद गानअद्भुत था जो कोई एक बार सुन लें तो वह श्रुति के सामान उसका स्मरण रखता था ।
modern sanskrit  आधुनिक संस्कृत में प्रो,श्री निवास रथ का विशेषस्थान है । इन्होने तदेव गगनं सैव धरा , भारतीय कवितायेँ , बाणस्यातिद्वयी कथा, बलदेवचरितम आदि मूल रचनाओं के साथ भास कृत ऊरुभंगम् और मेघदूतम् का सरल हिंदी अनुवाद भी पुस्तक के रूप में प्रकाशित है । साथ ही शोधलेख , समस्यापूर्ति एवं अभिनन्दन पत्र भी आपके द्वारा लिखा गया है जिसकी गणना श्रेष्ठ कवि कर्म के रूप में की जाती है । श्रीनिवास रथ संस्कृत कविता के बेजोड़ महारथी हैं । कविता की कमनीयता और रसपेश्लाता पग- पग पर दिखलाई पड़ती है । उनके कविता में युगबोध मिलता है । लगभग पचास वर्षों के लेखन काल में निरंतर जीवन के विविध पक्षों को ही आप साहित्य पटल अंकित करते हुए दिखलाई पड़ते हैं । आप आप संस्कृत साहित्य के बदलते हुए परिवेश में प्रत्येक समसामयिक आंदोलन आधुनिकता के विविध पक्ष , समकालीन जीवन को प्रभावित करने वाली कविताएं लिखें हैं।आपकी कविताएँ सदैव वर्तमान से संबाद करती हुई दिखलाई पड़ती हैं ।

modern sanskrit  सनातन बोध में स्थित होकर आप जो अनुभव करते हैं वही साहित्य में उतरते भी हैं जिसका उदहारण तदेव गगनं सैव धरा है । जिसमें 162 संस्कृत कवितायेँ संकलित हैं ।प्रो. रथ भारत के अनेक अकादमियों के पदों पर भी अपने दायित्त्व का निर्वाह किये हैं ।कालिदास अकादमी, उज्जैन के निदेशक , सिंधिया प्राच्य शोध संस्थान , उज्जैन के निदेशक ,महर्षि सान्दिपनी वेद विद्या प्रतिष्ठान के कोषाध्यक्षके साथ उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के मानद निदेशक आदि के साथ विश्विद्यालय अनुदान आयोग ,व विभिन्न विश्वविद्यालयों के अकादमिक समितियों के सदस्य भी आप रह चुके हैं । ऐसे कम लोग होते जो लेखन और प्रशासन दोनों में दक्ष रहते हों लेकिन उनमें से आप एक हैं ।
आपको सारस्वत योगदान के लिए राष्ट्रपति सम्मान , राजशेखर सम्मान , साहित्य अकादमी पुरस्कार , विश्व भारती पुरस्कार , कवि सार्वभौम राजप्रभा पुरस्कार ,प.राज जगन्नाथ सम्मान एवं महामहोपाध्याय उपाधि ,आदि प्रदान किया गया है ।दसवें विश्व संस्कृत सम्मलेन में बंगलौर के उपाध्यक्ष तथा इटली में होने वाले ग्यारहवें विश्व संस्कृत सम्मलेन में आप मानव संसाधन विकास मंत्रालय , भरत सरकार के प्रतिनिधि के रूप उपस्थित रहे जो भारत और संस्कृत जगत के लिए गौरव की बात है ।
श्रीनिवास रथ निरंतर साहित्य सेवा को अपना धर्म मानकर करते रहे । शोध की गुत्थियों के साथ संस्कृत नव कविता विलास को उच्च शिखर पर पहुचाने का श्रेय आपको ही जाता है । आप जितना मनुष्य के व्यक्तित्त्व के विषय में चिंतित रहते हैं उतने ही प्रकृति से भी गहरा नाता रखते हैं । उन्हें तालाब,नदियों ,वृक्ष ,पर्वत , पठार बड़े प्रभावित करते थे, उनकी विकृति से उन्हें कष्ट होता था । मनुष्य की सामाजिकता की बहुत चिंता थी और समाज विरोधी सरकार के नीतियों के विरोध का आत्मबल भी उनमे था । भारतीय संस्कृति का संवर्धन ही उनका ध्येय था ।उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति ही मनुष्य को मनुष्य बनती है । जिसे इसका बोध हो गया वह मानव नहीं महामानव बन जाता है। पुरुषार्थ ,संस्कार ,आश्रम से संबलित मानव जीवन श्रेष्ठ और उत्तम है । महाकाल के सानिध्य में जीवन को बड़े अच्छे रूप से जीते हुए कविता कामिनी के विलास पुरुष 13 जून 1914ई. को अपने भौतिक शरीर का परित्याग कर यश: शरीर में विलीन हो गए ।
(लेखक संस्कृत विभाग,डाक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय ,सागर म.प्र.हैं)

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