इफ्फी 55 में प्रदर्शित हुई ‘मिक्का बन्नडा हक्की’, सोनिया.एस की आत्मकथा पर आधारित फिल्म…

“मिक्का बन्नडा हक्की:वाॅय चीट इंडिया ”

55वे इफ्फी के आखरी दिन यानि कि 28 नवम्बर को एक छोटा पैकेट बडा धमाका वाली मनोहारी फिल्म “मिक्का बन्नडा हक्की “प्रदर्शित कि गयी जो सोनिया.एस की इसी नाम की आत्मकथा पर आधारित है ।
‘मिक्का बन्नडा हक्की ‘का मतलब अलग पंख की चिडियाँ, एक कन्नड फिल्म है जिसे की मनोहरा.के ने निर्देशित कर भारतीय सिनेमा मे बेस्ट डेब्यु निर्देशक का अवार्ड दिया गया है। “मिक्का बन्नडा हक्की ” एक बारह साल की लडकी ‘सोनिया ‘ की कहानी है जो कि अल्बिनिज़म से पीडित हैं और एक गरीब परिवार से आती है जो बंगलुरु के एक छोटे से गांव बसा है। अल्बिनिज़म के कारण उसका शराबी पिता लगभग उससे नफरत करता है और उसकी माँ जो उसे चाहती है असहाय है। आठवीं कक्षा में सोनिया का एक नये स्कूल में एडमिशन किया जाता है जहाँ उसके नये सहपाठी न केवल रंगभेद और अल्बिनिज़म के चलते उससे दुरी बनाये रहते है बल्कि नकारात्मक रवैया भी रखते हैं।और क्लास टीचर अश्विनी भी किसी तरह की संवेदना सोनिया के प्रति ना होने के कारण कैसे सोनिया की स्थिति स्कूल और कक्षा में दयनीय होते चली जाती है, इसी के तानेबाने में एक रोचक फिल्म है “मिक्का बन्नडा हक्की “।गरीबी के कारणवश सोनियां स्कूल में बिना टाई-बैल्ट और जूतों के आना पडता है जिसके कारण उसकी क्लास टीचर रोजाना उसे डांटती है। उसके चेहरे के पीलेपन और सफेद बाल के कारण सभी छात्राये उससे दुरी बनाये रहती है और अपने बेन्च में बैठने भी नहीं देती है।अरविंद अडिगा की बुकर अवार्ड प्राप्त किताब-द वाइट टाइगर मे बलराम हलवाई का साथी ड्राइवर विटिलिगो से पीडित हैं जिसके कारण उसके होठों के हिस्से में सफेद दाग पड जाते है। अल्बिनिज़म के कारण सोनिया उसे दूर से ब्लैकबोर्ड मे लिखे अक्षर स्पष्ट दिखाई नहीं देते हैं और इसी वजह से सोनिया को हर टैस्ट में शून्य मिलता है, और सबसे कम अंक के कारण हमेशा क्लास टीचर सोनिया को सबसे पिछले बैन्च में बैठाती है और धुप मे पूरे मैदान की सफाई कराती है। अल्बिनिज़म से ग्रसित लोगों को धूप मे बेचैनी और कमजोरी होती है। स्कूल का कोई भी शिक्षक सोनिया के अल्बिनिज़म की समस्या को समझ नहीं पाता है और हर पिरीयड में उलाहना ही देते रहते है।

आज वो दौर नहीं रहा जब शिक्षा को एक पूजा के रूप मे देखा जाता था जो कि गुरूकुल और आश्रम में संचालित होते थे। न तो आज एकलव्य जैसे छात्र है जो कि गुरूदक्षिणा के लिए अपने अंगूठे तक को काट के आचार्य के चरणों में समर्पित कर देते थे और न ही आदरणीय संदीपनी जैसे गुरु हैं जो अपने विधार्थी को अपने पुत्र से भी बढ कर समझते थे और पूरे तल्लीन हो कर ज्ञान का प्रसाद विधार्थियों बांटते थे।वेब सिरिज पाताल लोक में हथौड़ा त्यागी को भी अपना अंगूठा काट कर अपनी इमानदारी का सबूत देना पडा था। गुरूकुल और आश्रम की जगह अब फैक्ट्री और इंटरनेशनल वर्ड स्कूल ने ले ली है

जो की नर्सरी से ले कर बारहवीं तक और उसके बाद महाविद्यालयों में भी लाखो रूपये फीस ऐंठ कर भी गुणवत्ता युक्त शिक्षा मुहैया कराने में नाकाम रहते है।निल बटे सन्नाटा मे रत्ना पाठक स्वरा भास्कर से कहती है हमारे जमाने में तो फीस ज्यादा नहीं लगती थी तभी तो मैं बन पायी डाक्टर पर अब शिक्षा बिल्कुल व्यापार बन चुकी है, पांच-दस लाख तो कहीं नहीं गये, कहीं-कहीं सुना है पचास लाख भी ले लेते है। बेहद गैर मामूली और बहुमुखी प्रतिभा के धनी हास्य अभिनेता और निर्देशक मरहुम जसपाल भट्टी के सुपर हिट धारावाहिक फ्लाप शो में एक बार बैंक में भट्टी साॅहब का पडोसी पैसे निकाल रहा होता है। भट्टी साहब के पूछने पर कि यहां क्या कर रहे हो-वो कहता है कि बेटे कि नर्सरी मे एडमिशन कराने के डोनेशन के लिए बारह हजार रूपये निकाल रहा हु-इस पर भट्टी कहते हैं, नर्सरी के लिए सिर्फ बारह हजार, बडा रद्दी स्कूल है!!! सोशल मीडिया में बहुत सारे मिम्स देखने को मिलते हैं जिसमें दिखाया जाता है कि सरकारी स्कूल की बिल्डिंग बहुत खस्ता हाल है और प्राइवेट स्कूल की बिल्डिंग टिप टाॅप है ताजमहल की तरह। सरकारीस्कूल के शिक्षक का घर एक आलिशान बंगला है और प्राइवेट स्कूल के शिक्षक एक दस बाय दस के छोटे से किराये के कमरे में अपना गुजर बसर कर रहा होता है। प्राइवेट स्कूल और प्राइवेट कालेजों की बात की जाये तो मुनाफा कमाने की दुकान बना बैठे ये स्कूल और कालेज के मालिक नाम मात्र की तनख्वाह अपने शिक्षकों को देते हैं, इसका नतीजा ये होता है कि ये शिक्षक अपने अपने कक्षा में बेहद कमतर गुणवत्ताका ज्ञान देते नजर आते हैं और अपनी ट्यूशन और कोचिंग संस्था का खुले आम प्रचार करते रहते हैं। आरक्षण फिल्म में मनोज बाजपेयी एक कालेज के प्रोफेसर है और वे अपने कक्षा के समय कालेज में पढाने के बजाय अपने प्राइवेट कोचिंग में क्लास ले रहे होते है। इस तरह असंतोष के चलते शिक्षक अपने विद्यार्थियों के नजर मे खुद ब खुद ही गिरते चले जाते हैं और उसके बाद शिक्षको का नामकरण भी होने लग जाता है और ये नामकरण व्यवस्था मे ऐसे विद्यार्थी शामिल होते है जिनको पढाई लिखाई से कोई खास वास्ता नहीं होता है, वे तो बस अपने स्कूल-कालेज का समय निकालने पाठशाला और महाविद्यालय को कोई उद्यान समझ के आते हैं।ये ऐसे विद्यार्थी होते है जिन्हे पढाई नहीं करनी होती है लेकिन उनके मां-बाप उन्हे केवल इसलिए शिक्षण संस्थानों में भेजते है ताकि कम से कम चार पांच घंटे तो उनकी जान बची रहे और ये उदंड विद्यार्थी स्कूल-कालेज जा के शिक्षकों का भेजा फ्राई कर सके। ये विधार्थी अपने शिक्षकों का नाम कॉमिक्स और सिनेमा के किरदार जैसे ‘साबु-चाचा चौधरी, फिल्मो के किरदार जैसे चार्ली चैपलिन आदि रख देते है। एक स्कूल के प्राचार्य से जब इस मुद्दे पर मेरी चर्चा हुई तो उन्होंने कहा कि विद्यार्थीयोने उनका नाम ‘मुगैम्बो ‘रखा हुआ है,और उसी स्कूल की एक युवा मैडम ने मुझे बताया कि स्टूडेंट्स ने उनका नम्बर मोबाइल में सेव कर के नाम में “सेक्सी” लिखा है। कुछ एसे ही बदमाश और उदंड विद्यार्थीयो के कारण अच्छे शिक्षक जो की जुनून से पढाना चाहते हैं स्कूल-कालेजमें पढाना बंद कर देते हैं। मुन्ना भाई एम.बी .बी. एस में संजय दत्त अपने कालेज के डीन (बमन ईरानी) और अन्य प्राध्यापको को मामु कह के संबोधित करता हैं,थ्री इडियट्स में रेन्चो बनें आमिर खान और पुरे कालेज के विद्यार्थी अपने प्राचार्य को वाइरस कह के बुलाते हैं जिसका असल नाम वीरू सहस्र बुद्धि होता है और रस्तोगी बने शरमन जोशी को कोमा से बाहर निकालने के वे सभी बमन के तस्वीर पर निशाना साधते रहते है।

मुन्ना भाई में ही संजय दत्त अपने पिता के अपमान का बदला लेने के लिये कक्षा में बमन ईरानी से सिलेबस से हट कर सवाल करते रहते है ताकि वो (संजय) बमन को परेशान कर सके ।प्राइवेट स्कूल और कालेज के शिक्षकोंका जीवन कम तनख्वाह, उदंड विद्यार्थीयो को समझाईश देते हुए, अपने उपर बैठे मैनेजमेंट डायरेक्टर और चेयरमैन की खरी-खोटी बाते सुनते हुए और इसके अलावा पारिवारिक मसले, दुसरे शिक्षको के कारण उपजे पोलिटिक्स के भंवर मे फंसे रहते है जैसे कि कोई जहाज बरमूडा ट्राएंगल में फंस जाता है और कभी निकल नहीं पाता है,इसका नतीजा ये होता है कि ये एक विकृत व्यक्ति के रुप में (अंग्रेजी में जिसे पवर्ट कहते हैं)दिखाई देते है और ये सब परेशानीयो के चलते ये अपना पुरा गुस्सा विद्यार्थीयो पर निकालते हैं। कक्षा नवमी में मेरे विज्ञान के शिक्षक श्री ज़करूद्दिन ने आवेश में आ के मेरे मरहुम सहपाठी वीरेन्द्र शुक्ला के सिर के बाल हाथ में फंसा के बडी ही निर्ममता पुर्वक उखाड़ दिये थे। नब्बे के दशक में और उससे पहले जब शिक्षक अपने विद्यार्थियों पर जुल्म ढाते थे तब न तो किसी को जानकारी होती थी और ना ही कोई सुनवाई।आज के वायरल युग में कई एसे विडियो देखे जा सकते हैं जिसमें की शिक्षक बच्चो की जानवरों की तरह खाल उधेड़ रहे होते है, कभी छत से उठा के फैंक देते हैं तो कभी कक्षा में ही बाल काट देते। मेरे पड़ोस में एक कक्षा तीसरी के छात्र को उसके शिक्षक इतना मारते थे कि वह रात को नींद में भी उस शिक्षक का नाम ले के कहता रहता था सर प्लीज मुझे मत मारों!!! मुन्नाभाई में रेल्वे स्टेशन में जब सुनील दत्त के जेब से पर्स चुराने पर जब आसपास के लोग चोर को मारने लगते है तो सुनील दत्त चोर से कहते–जानते हो ये कौन है, ये हमारे देश की जनता है जनता, इनके चेहरे देखे कितने गुस्से में है-कोई बीवी से लड कर आया है, किसी का बेटा उसकी बात नहीं सुनता, किसी को अपने पडोसी की तरक्की से जलन है, कोई मकान मालिक के ताने सुन कर आया है, सरकार के भष्ट्राचार से लेकर किर्केट टीम की हार तक, हर बात पे नाराज हैं लेकिन सब चुप है, किसी के मुह से आवाज़ नहीं निकलती और ये सारा गुस्सा तुझ पे निकालेंगे–कर दु इनके हवाले सर फोड देंगे तेरा।

जवानी दीवानी फिल्म में कक्षा में बदमाशी करने पर प्रोफेसर रंणधीर कपूर को अपना गार्डियन लाने पर ही कक्षा में बैठने की इजाजत देंगे कहते हैं। इस पर रंणधीर कपूर कैंटिन के मैनेजर (सत्येन कप्पू जिन्हे सभी विधार्थी मामा कहते है) को अपना भाई बना के प्रोफेसर से मिलवाते है और सच्चाई पता चलने पर कालेज के प्राचार्य ए.के.हंगल पचास रूपये जुर्माना लगा के आखरी वाॅरनिंग दे के छोड देते हैं, इस पर प्रोफेसर हंगल से कहते हैं-सर जुर्माना भरने से यु ही जान छूटती रही तो जिन्दगी भर ये यही हरकतें करते रहेंगे। इसके जवाब में हंगल साहब कहते हैं-और हम कर ही क्या सकते हैं ,मार तो सकते नहीं, वो जमाना गया ‘प्रोफेसर’ जब स्टूडेंट अपने उस्ताद को बाप की तरह समझता था, अब तो वो कहता है आप पढाते है तो मैं फीस देता हूँ–आप नौकर है मै मालिक! आज के परिदृश्य में भी कुछ एसे ही विद्यार्थी हुडदंग मचाते हर कालेज और स्कूल में देखे जा सकते हैं। बंगाली ब्यूटी तनुश्री और किसिंग स्टार इमरान हाशमी स्टारर फिल्म गुड बाॅय-बैड बॉय में कालेज के प्राचार्य(परेश रावल) हाल में सभी विधार्थियों को वक्तव्य देते रहते हैं, उसी समय एक छात्र खीं खी कर हँसते हुए अपने मोबाइल में मैसेज पढ रहा होता है-परेश उसका मैसेज पढते हैं जिसमें लिखा होता है ‘दिस प्रिंसिपल इस अ बिग बोर,इस परेश उसे इ-सर्टीफिकेट देते हैं,इ फौर एक्सपैल याने कालेज से बाहर निकाल देते है ।लेकिन हकीकत में ऐसा देखने को नहीं मिलता उदाहरण के तौर पर जब मैने उन्ही प्राचार्य से (जिन्हे कि विद्यार्थीयो ने मुगैम्बो की संज्ञा दी थी) पूछा कि ऐसे बदमाश बच्चों को स्कूल से बाहर क्यो नही निकाल देते तो उनका जवाब था एसे ही सबको निकलते रहे तो सभी स्कूल कालेज ही बंद हो जायेंगे। कई कोचिंग संस्थानों में ऐसा देखा गया है कि वो कुछ मेधावी छात्रों को बडी रकम दे के दुसरे कमजोर छात्रों की जगह परीक्षा देने फर्जी प्रवेश पत्र के सहारे बैठा देते है। मुन्ना भाई में ही संजय दत्त की जगह मेडिकल इग्जाम टाॅपर परीक्षा दिलाने जाता है। इमरान हाशमी और अपने शोख मुस्कान से दर्शको में विशेष जगह बनाने वाली अभिनेत्री श्रेया धनवंतरि स्टारर ‘वाॅय चीट इंडिया’ मे इमरान हाशमी एक रैकेट चलाता है जिसमें कि मेधावी छात्रों को लाखो रूपये दे के गधे और कमजोर छात्रों की जगह परीक्षा में बैठाया जाता है।
सही हुई पटकथा, बेहतरीन निर्देशन, और उम्दा अभिनय के चलते ‘मिक्का बन्नडा हक्की ‘एक बेहतरीन फिल्म बन के उभरती है। फिल्म में कुछ गुदगुदाते दृश्य दर्शको को बांधे रखते है जैसे एक रात सोनिया अपने पिता को बाथरूम में बंद कर ताला लगा देती ताकि वो शराब पीने न जा सके।एक दृश्य में सोनिया की मां उसके छोटे बेटे को मारती है क्योंकि उसने तालाब में केकडा पकडा है और ठीक अगले दृश्य में परिवार के सभी लोग खाने में केकडे की सब्जी खा रहे होते है। फिल्म के आखिर में कैसे सोनिया अपने अंदर आत्मविश्वास जगा के एक नयी पहचान बनाती है जिसके वजह से दर्शक फिल्म के अंत तक बंधे रहते है। इफ्फी मे मिक्का को शामिल करने के लिए फेस्टिवल डायरेक्टर शेखर कपूर भी गौरवान्वित महसूस कर रहे होंगे जिन्हे कि हाल ही में पद्मश्री के लिए नामित किया गया है।

धन्यवाद
भवदीय
जी.सुशील .राॅव