Mahadev story : भोलेनाथ की भक्ति से बड़ा सुख और मोक्ष दूसरा नहीं

रमेश गुप्ता

Mahadev story  महादेव कथा का समापन

श्री एकांतेश्वर महादेव कथा : इस संसार को छोड़ना हैं, तो कुछ ऐसा करके जाए कि दुनिया  याद रखे 

Mahadev story  भिलाई । श्री शिवमहापुराण भक्ति और मुक्ति की कथा है। श्रीराम जन्मोत्सव समिति एवं जीवन आनंद फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एकांतेश्वर महादेव शिवमहापुराण की कथा के समापन दिवस पर श्रद्धालुओं के जनसमूह को कथा वाचन करते हुए विश्वविख्यात कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने भक्तों को शिव की अविरल भक्ति शिव तत्व को धारण करने का संदेश दिया।

उन्होंने कहा कि मृत्यु लोक में एक न एक दिन सभी को इस देह का त्याग करना हैं इस संसार को छोड़ना हैं, तो कुछ ऐसा करके जाए की दुनिया से जाने के बाद भी लोग आपका स्मरण कर सकें आपको याद रख सकें। इस संसार मे भोलेनाथ की भक्ति से बड़ा सुख और मोक्ष दूसरा नहीं हैं।

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भारत की संस्कृति हैं अतिथि देवो भव का अपनी कथा में सदैव ही आचरण और संस्कार की शिक्षा देने वाले मिश्रा जी ने कहा कि हमारी सनातन की संस्कृति हैं अतिथि देवों भव। घर में आये हर व्यक्ति का आदर, सत्कार करना हमारा कर्तव्य हैं। घर मे पधारें हर व्यक्ति में नारायण का स्वरूप होता हैं। नर में ही नारायण हैं का अर्थ बताते हुए उन्होंने कहा कि हमें अपने आचरण, व्यवहार, कर्म, वाणी से कभी किसी को दुख, कष्ट नहीं देना चाहिए। पंडित मिश्रा ने कहा कि गृहस्थ जीवन का सबसे बड़ा कर्म पति – पत्नी का एक साथ बैठकर धार्मिक अनुष्ठान करना हैं। एक साथ भगवान की अविरल भक्ति करना हैं। अपने दैनिक जीवन के कर्मों से थोड़ा समय निकाल कर नियमित रूप से भगवान का भजन करना चाहिए। अंतिम दिन की कथा में विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, राजनांदगांव से लोकसभा सांसद संतोष पांडेय, पूर्व सांसद मधुसूदन यादव एवं वरिष्ठ पत्रकार डॉ हिमांशु द्विवेदी भी सम्मिलित हुए।

पंडित मिश्रा ने कहा की शिवमहापुराण की कथा में वर्णित हैं मनुष्य अपने जीवन में जितने ऊँचाई पर जाता हैं उसे उतना ही विनम्र होना चाहिए। नम्रता, विनम्रता, संस्कार ही आपकी शिक्षा को परिलक्षित करते हैं। ऊँचे पदों पर जाने के बाद अगर आपको बडों को नमन करने, उनका आदर करने, नम्रता से बात करने की समझ नहीं हैं तो आपकी शिक्षा बेकार हैं अर्थहीन हैं। उन्होंने कहा कि भूगोल पढ़कर देश की सीमा का और इतिहास पढ़कर धर्म और देश की रक्षा करने वालों का ज्ञान रखे जीवन की बारीकियां उनसे सीखें। अपनी शिक्षा और संस्कार से दुनिया को कुछ देने का प्रयत्न करें। पिता अपने पुत्र को अच्छे कपड़े, अच्छे स्कूल, अच्छी ट्यूशन , अच्छी महंगी किताब, अच्छा भोजन, महंगा बिस्तर देता हैं लेकिन अगर वो अच्छे संस्कार नही दे पाता हैं तो फिर सारी चीज़ें व्यर्थ हो जाती हैं। संस्कारविहीन शिक्षा का कोई अर्थ नही रह जाता हैं।

कथा के समापन दिवस पर पूर्व विस अध्यक्ष ने किया सभी का आभार व्यक्त

जीवन आनंद फॉउंडेशन और श्रीराम जन्मोत्सव समिति के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित सात दिवसीय शिवमहापुराण कथा के अंतिम दिवस कथा के पश्चात पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पाण्डेय ने उपस्थित श्रद्धालुओं के जनसमूह को संबोधित करते हुए कथा के सफल आयोजन के लिए सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने आपने संबोधन में आयोजन को सफल बनाने के लिए कथा श्रवण करने उपस्थित सभी श्रद्धालु, श्रद्धालुओं की सेवा के लिए दिन रात तत्पर सेवादार, स्थानीय प्रशासन, पुलिस प्रशासन,स्वास्थ्य प्रशासन, सामाजिक संगठन, निगम के कर्मचारियों एवं सभी भिलाईवासियों का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में दिन प्रतिदिन उपस्थित होकर कथा श्रवण कर आप सभी ने इस कथा को सफल बनाया हैं और भिलाई के निवासियों ने निजी स्तर पर श्रद्धालुओं की निःस्वार्थ भाव से सेवा कर इस गरिमामयी आयोजन में अपना सहयोग दिया हैं इसके लिए वो आभारी हैं।

भक्ति के लिए पवित्र कपड़ा नही पवित्र मन का होना जरूरी हैं।

कथा के अंतिम दिन उपस्थित श्रद्धालुओं के विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए पंडित जी ने कहा कि लोग मंदिर जाते समय अच्छे कपड़े, अच्छे श्रृंगार का ध्यान रखते हैं लेकिन वो अपना आचरण अच्छा रखना भूल जाते हैं। शिवमहापुराण की कथा कहती हैं मृत्युलोक में मोक्ष की प्राप्ति अच्छे कपड़ों से नहीं अच्छे आचरण से मिलता हैं। अगर आप अपनी वाणी से, अपने आचरण से ,अपने कर्म से किसी को दुख, पीड़ा पहुंचा रहे हैं तो ऐसी भक्ति का कोई फल प्राप्त नही होता ऐसी भक्ति ईश्वर को पसंद नही आती हैं। किसी को दुःख देकर किया गया भजन का कोई अर्थ नही रह जाता हैं।

क्यों नहीं कि जाती भोलेनाथ की पूरी परिक्रमा

शिवमहापुराण का एक प्रसंग सुनाते हुए पंडित जी ने कहा कि कार्तिकेय जी अपने वाहन ओर सवार होकर सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करने चले गए तब गणेश जी ने भगवान शिव और माँ पार्वती की परिक्रमा की इससे प्रसन्न होकर शिवजी ने गणेश जी को प्रथम पूजनीय होने का आशीर्वाद दिया। पार्वती जी रुष्ट होकर बोली गणेश ने आपकी परिक्रमा की इसलिए आपने इसे प्रथम पूजनीय का आशीर्वाद दिया लेकिन कार्तिक तो पूरे पृथ्वी की परिक्रमा करने गया हैं। इसके बाद माँ पार्वती ने भगवान शिव से कहा की आपकी पूर्ण परिक्रमा अब नही होगी, आप बहुत भोले हैं और परिक्रमा से प्रसन्न होकर संसार मे किसीको भी सब कुछ दे देंगे।

एक ही व्यक्ति नाम भी करता हैं और बदनाम भी

पंडित श्री मिश्रा ने कहा कि एक व्यक्ति पूरे गाँव का नाम भी कर सकता हैं और बदनाम भी। जिस प्रकार गांव में टेलीफोन का एक टावर लग जाने से वो पूरे गांव को नेटवर्क मिलने लगता हैं उसी प्रकार एक व्यक्ति की भक्तिधारा पूरे गाँव को भक्तिमय बना देती हैं। भक्ति प्रत्येक मनुष्य के जीवन अहम हिस्सा होना चाहिए। भक्ति से मानव परमात्मा के निकट जाता है उसके आचरण में सुधार आता हैं।

आस रखना ही दुःखों का कारण हैं

पंडित श्री मिश्रा ने मनुष्य के जीवन मे दुःखों का कारण लोगों से आस रखने की वजह को बताया। उन्हीने कहा कि गाड़ी और मन को नियंत्रण में रखना चाहिए। अगर ये तीनों नियंत्रण में रहेंगे तो मनुष्य का जीवन भी दुःख से दूर रहेगा। मृत्यु लोक में प्रत्येक मनुष्य अकेला आता हैं और अकेला ही जाता हैं और जो लोगों से आस बाँधकर रखता हैं वो दुख पता हैं। सास अच्छे बहु की उम्मीद में रहती हैं अगर बहु उसकी उम्मीद के मुताबिक नही मिली तो दुख होता है। इसलिए जीवन मे किसी से आस रखनी ही नही चाहिए।

कुबरेश्वर धाम में वीआईपी लोगों की जगह नहीं हैं

सीहोर स्थित कुबेरेश्वर धाम का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जिस भूमि का कंकर भी शंकर हैं वहाँ वीआईपी लोगों को आने की आवश्यकता नहीं हैं। भोलेनाथ को वीआईपी भक्त पसन्द नही हैं। उसे साधारण और सरल हृदय वाले भक्त पसन्द हैं। कथा में वीआईपी लोग पहुँच भी नही पाते हैं वो अपने एसी कमरों और एसी गाड़ियों में ही बैठे रह जाते हैं।

उन्होंने कहा कुबेरेश्वर धाम में हर व्यक्ति एक आम इंसान की तरह आता हैं आम इंसान की तरह बाबा की भक्ति करता हैं आम इंसान की तरह गद्दे पर सोता हैं और आम इंसान की तरह भोलेनाथ का प्रसाद खाता हैं।

कुबेरेश्वर धाम का रुद्राक्ष किसी वीआईपी को नहीं मिलता, इसकी होम डिलीवरी नहीं होती हैं और ना ही ये किसी के जान पहचान से मिलता हैं। कुबेरेश्वर धाम का रुद्राक्ष सिर्फ कुबेरेश्वर धाम की धरती और मिलता हैं, सिर्फ उसे ही मिलता हैं जो स्वयं कंकर शंकर की धरती पर उपस्थित होता हैं।

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