ध्रुव शुक्ल जी के इस विचार का महत्वपूर्ण संदेश है उन्होंने कहा, हम तो समझे थे कि लोकतंत्र है पर आम चुनावों में जनता के बीच मतदान मांगने वाले नेता आपस में एक-दूसरे को शहंशाह, सुल्तान और शहजादा कहकर नवाज़ रहे हैं। लगता है कि जैसे भारत अभी राजतंत्र से मुक्त नहीं हो पाया है। मतदाताओं की परीक्षा का समय है कि वे राजा चुनें या अपने प्रतिनिधि चुनें।
इस पंक्ति कुछ ऐसा समझा जा सकता है कि लोकतंत्र की सच्चाई और उसकी मूल उपेक्षा कभी भी अपने समय की चुनौतियों से पूरी तरह से मुक्त नहीं होती है। नेताओं के इस तरह के व्यवहार से, जहां वे एक-दूसरे को राजाओं और शासकों के तरह संदर्भित कर रहे हैं, लोकतंत्र की आधारशिला हिल सकती है।
मतदाताओं को सदैव चुनाव करने के लिए जागरूक रहना चाहिए, और उन्हें अपने नेताओं को लोकतंत्र के सिद्धांतों और मूल्यों के प्रति वफादार रहने की जिम्मेदारी में लेना चाहिए। राजतंत्र से मुक्ति प्राप्त करने का सफर सदैव जारी रहता है, और मतदान एक महत्वपूर्ण कदम है इस सफर में।