Khelo India Youth Games बिहार के किसान की बेटी ने जीता सोना

Khelo India Youth Games

Khelo India Youth Games केआईवाईजी 2023: बिहार के किसान की बेटी ने जीता सोना

Khelo India Youth Games चेन्नई !  चेन्नई में जारी छठे खेलो इंडिया यूथ गेम्स में चार मिनट 29.22 सेकंड के समय के साथ 1500 मीटर खेलों का रिकार्ड करने वाली दुर्गा सिंह बिहार के गोपालगंज जिले के अपने सुदूर गांव बेलवा ठकुराई में खेतों के आसपास खुले स्थानों में दौड़ती थीं। खेल के लिहाज़ से अविकसित पृष्ठभूमि वाले क्षेत्र में दुर्गा को सपोर्ट करने वाले सिर्फ़ उनके पिता शंभू शरण सिंह थे जो एक किसान है।

Khelo India Youth Games  खेलों के रिकॉर्ड को तोड़ने के बाद दुर्गा ने कहा, “मैंने बहुत सारी चुनौतियों का सामना किया है। मेरे पिता के अलावा मेरे परिवार में खेल के प्रति कोई उत्सुकता नहीं थी। मेरे पिता कहते हैं, ‘तुम जहां जाना चाहो जाओ, जो करना चाहो करो।’ केवल उन्होंने मेरा समर्थन किया, यही कारण है कि मैं यहां हूं।”

दसवीं कक्षा की छात्र ने पिछले साल कोयंबटूर में आयोजित 38वीं जूनियर नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 4 मिनट 38.29 सेकेंड का समय लेकर 1500 मीटर में स्वर्ण पदक जीता था।

Khelo India Youth Games  पांच भाई-बहनों में से चौथी, दुर्गा बचपन में कबड्डी और फुटबॉल भी खेलती थीं लेकिन उनके हीरो धावक ही थे। वह पीटी उषा और उसेन बोल्ट की इतनी प्रशंसक थीं कि उन्होंने अपने कमरे में उनकी तस्वीरें प्रिंट और फ्रेम करवा रखी थीं।

उसकी प्रतिभा को कम से कम उसके स्कूल में ही पहचान लिया गया था। दुर्गा ने कहा, “मुझे मैचों के लिए वरिष्ठ छात्रों के साथ ले जाया जाता था। लोग मुझे अपनी टीम में शामिल करने के लिए लड़ते थे।’

Khelo India Youth Games  स्थानीय मुकाबलों में पदक तेजी से आते थे । लेकिन उस वक्त उन्हें उनकी कीमत का एहसास नहीं हुआ। दुर्गा ने कहा, “मैं पहले या दूसरे स्थान पर आती थी। पदक घर लाती थी और उसे एक तरफ फेंक देती थी। मैं इसकी ज्यादा परवाह नहीं करती थी क्योंकि तब घर पर मेरी उपलब्धियों को कोई महत्व नहीं देता था। जो रिश्तेदार घर आते थे वे यह देखकर आश्चर्यचकित थे कि पदक यूं ही कैसे पड़े हैं।’

धीरे-धीरे, 17 वर्षीय की प्रतिभा को और भी अधिक नोटिस किया जाने लगा। उन्होंने कोच राकेश सिंह के मार्गदर्शन में प्रशिक्षण लेने के लिए पटना के पाटलिपुत्र स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का दौरा किया और उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद पदकों के प्रति उनका नजरिया भी बदल गया।

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दुर्गा ने कहा,”तब मुझे एहसास हुआ कि अगर आप पदक जीतते हैं तो आप अपना नाम बना सकते हैं। मैं और अधिक दृढ़ हो गई और अधिक मेहनत करने लगी। अब मैं अपने देश को गौरवान्वित करना चाहती हूं।’

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