Jagdalpur Breaking धर्मापेंटा में नरवा विकास के नाम किया बड़ा भ्रष्टाचार
किस्टाराम वन परिक्षेत्र के धर्मापेंटा का मामला
ग्रामीणों का दावा यहां नहीं हुआ कोई काम
दो डबरी और तीन गेबियन बनाकर किया 4 करोड़ का आहरण
Jagdalpur Breaking जगदलपुर/कोंटा। भूपेश सरकार के ड्रीम प्रॉजेक्ट नरवा को संवारने की जिम्मेदारी बस्तर जैसे सूदूर क्षेत्र में वन अफसरों पर थी। यह प्रॉजेक्ट वनअधिकारियों के भ्रष्टाचार का चारागाह बन कर रह गया। सुकमा वन मंडल के किस्टारम वन परिक्षेत्र में करोड़ों का घोटाला हुआ है। किस्टारम वन परिक्षेत्र के धर्मापेंटा के नालों में कोई काम नही हुआ है। वन अधिकारियों ने तकरीबन तीन करोड़ से अधिक की राशि का आहरण भी कर लिया। ग्रामीणों का दावा है कि यहां सिर्फ दो डबरी और तीन गेबियन ही तैयार हुए हैं।
इन दो कार्यो के आलावा वन विभाग ने कुछ नहीं किया है। भले ही वन अधिकारी गांव के लोगों से काम करवाए या न करवाए, लेकिन ग्रामीणों को ये तो पता रहता ही है, जल, जंगल, नदी, नालों में कोई काम हो रहा है या नहीं। गांव के लोग निरंतर जंगल में घूमते रहते हैं। किस्टाराम परिक्षेत्र के धार्मापेंटा में वन अफसरों ने नरवा विकास के नाम पर बड़ा भ्रष्टाचार किया है। इधर वन विभाग के अधिकारी कह रहे हैं कि गांव के लोग काम नही करते है, इस लिए कोंडागांव और उड़ीसा से मजदूरों को बुला कर काम करवाया गया है।
अब बड़ा सवाल खड़ा होता है कि जब गांव के लोगों ने काम ही नहीं किया तो गांव के आस-पास के मजदूरों के नाम से बिल-व्हाउचर कैसे तैयार कर दिए? खुद अपने बयान में अधिकारी फंसे हुए हैं। ग्रामीण कहते है कि काम किसे बुरे लगता है, जब भी वन विभाग ने काम के लिए बोला ग्रामीण काम करने के लिए तत्पर रहे। धर्मापेंटा में अभी कोई काम ही नहीं हुआ और न ही अधिकारियों ने उनसे काम के लिए कभी कहा है।
सडक़ के लिए निकाली गई मिट्टी
से हुए गढ्ढे का बना दिया तालाब
ग्रामीण जिन दो तालाबों का निर्माण होना बता रहे हैं, उनमें से एक तलाब धर्मापेंटा से करीब एक किमी दूर एरलापेंटा में बना है। धर्मापेंट में रहने वाले सिद्धू ने बताया है कि इस तालाब को वन विभाग ने खोदा जरूर है, लेकिन पहले से यहां बड़ा गढ्ढा था। सडक़ बनने के दौरान यहां से मिट्टी उठाई गई थी। वन विभाग ने तीन जेसीबी लगा कर यह काम करवाया है। इन मशीनों से यहां तीन दिनों तक काम करवाया गया।
तीन ओर की मेड़ बना दी और एक तरफ छोड़ दिया। पानी निकासी के लिए सीमेंट के किसी स्ट्रक्चर का निर्माण भी नहीं करवाया है। एक जोरदार बारिश में यह पूरा तालाब बह जाएगा। इस तालाब में अनुमानित 60 से 70 हजार रुपए ही खर्च हुआ होगा। इसी तरह एक तलाब सिलिगुड़ा में वन विभाग ने बनाया है। दो तालाबों का निर्माण ये है और तीन गेबियन ही नालों में नजर आते है। यही काम वन विभाग ने यहां करवाया है।
गुब्बलवागू नाले में भी करोड़ों का खेल
गुब्बलवागू नाला के ठीक बगल में सीआरपीएफ कैंप स्थापित है। सीआरपीएफ ने तकरीब 20 से 30 मीटर की दूरी पर कैमरे लगा रखे है। इस नाले के आस-पास भी कोई दिखा तो तत्काल लाउड स्पीकर से सीआरपीएफ के जवान इन्हें दूर हटने की चेतावनी देने लगते है। खुले शब्दों में उद्घोष करते है कि इस नाले के पास से तुरंत दूर चले जओ। ग्रामीणों का कहना है कि गांव के लोग भी उस नाले के पास नही खड़े होते है।
वहां वन विभाग ने कैसे काम करवाया है, इसी बात से समझा जा सकता है। वन विभग के दस्तावेजों में इस नाले पर 69 लाख रुपए से अधिक खर्च होना दर्शाया जा रहा है। इस पैसे से ब्रशवुड चेक डेम, लूजबोल्डर चेक डेम, गेबियान संरचना, अर्दन डेम, स्टेगर्ड कंटुर ट्रैंच, परकोलेश टैंक, तालाब, वाटर ऑबजरसन टैंच तैयार करना दिखाया जा रहा है, लेकिन मौके पर यह निर्माण नहीं दिख रहा है।
धमापेंटा नाला भाग-1,2,3 व 4 में भी करोड़ों की हेराफेरी
धर्मापेंटा भाग एक में प्रावधानित कुल राशि 95 लाख के करीब है। इसमें से वन विभाग 75 लाख रुपए का काम होना बता रहा है। वन विभग के दस्तावजे इन आंकड़ों की पुष्टि कर रहे हैं। भाग -2 में प्रावधानित कुल राशि 55 लाख रुपए दर्शाई जा रही है। वही 50 लाख रुपए का व्यय होना दिखाया जा रहा है। भाग तीन में भी प्रावधानित कुल राशि सवा करोड़ रुपए के करीब है। इसमें से वन विभाग 95 लाख रुपए का काम होना बता रहा है। इसी तरह भाग-4 में प्रावधानित कुल राशि28 लाख रुपए दर्शाई गई और व्यय 19 लाख रुपए के करीब है। कागजों में ब्रशवुड चेक डेम, लूजबोल्डर चेक डेम, गेबियन संरचना, अर्दन डेम, स्टेगर्ड कंटुर ट्रैंच, परकोलेश टैंक, तालाब, वाटर ऑबजरसन टैंच तैयार हो चुके है। इन नालों में भी ग्रामीण कोई काम न हो ने की बात पूरे विश्वास के साथ कह रहे हैं।
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जिस रेंज ऑफीसर ने काम करवाया था, वह रिटायर हो चुका है, लेकिन काम हुआ है। उड़ीसा और कोंडागांव से मजदूरों को लाकर काम करवाया गया है। बहुत सारे कामों को देखा, 100 प्रतिशत काम को तो देख नही सकता। अंदरूनी क्षेत्रों में बहुत जगह जाना संभव नहीं है। क्षेत्र के ग्रामीणों ने भी काम किया है। कोई भी आकर काम देख सकता है।
के. एस .ध्रुव, उप वनमंडलाधिकारी कोंटा