Israeli democracy संकट में इजराइली लोकतंत्र
Israeli democracy खुद को बचाने की कोशिश में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इजराइली लोकतंत्र को स्थायी क्षति पहुंचा दी है। अब देखने की बात होगी कि इजराइली जनमत प्रधानमंत्री को इस मनमानी से रोकने में किस हद तक कामयाब होता है।
इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने खुद पर चल रहे मुकदमों के असर अपने को बचाने की कोशिश की।
इजराइल के इतिहास में सबसे अधिक धुर दक्षिणपंथी सरकार का फिलहाल नेतृत्व रहे नेतन्याहू ने ऐसा कानून पारित कराया, जिससे न्यायपालिका को पंगु बनाने की कोशिश समझा गया है। इस कानून में ऐसा प्रावधान भी है, जिससे सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले को संसद साधारण बहुमत से प्रस्ताव पारित कर निष्प्रभावी बना सकती है। बहरहाल, इजराइली समाज ने इस कोशिश को स्वीकार नहीं किया है।
जब से नेतन्याहू की यह मंशा सामने आई, विरोध जताने के लिए वहां की सडक़ों पर हजारों लोग लगभग रोजमर्रा के स्तर पर उतरे हैँ। कहा जा रहा है कि इस मुद्दे पर इजराइली समाज में जैसा मत-विभाजन हुआ है, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया। विधेयक गुरुवार को संसद में पास हुआ। रात भर की तीखी बहस के बाद विधेयक के समर्थन में 61 वोट पड़े और विरोध में 47 मत। विधेयक के जरिए इजराइल में बेसिक लॉ कहे जाने वाले अलिखित संविधान में संशोधन कर दिया गया है।
चूंकि इजराइल में लिखित संविधान मौजूद नहीं है, इसलिए वहां लोकतांत्रिक परंपराओं और कानून के राज को सुनिश्चित कराने में सुप्रीम कोर्ट की बहुत बड़ी भूमिका रही है। लोगों में गुस्सा इस कारण ही भडक़ा है कि इस कानून के जरिए सुप्रीम कोर्ट के अधिकार को संकुचित किया गया है। इसका अर्थ यह निकाला गया है कि एक वोट के बहुमत से भी सत्ता में आने वाली सरकार अब मनमाने ढंग से राज करने में सक्षण हो जाएगी।
यह इस संशोधन का दूरगामी असर होगा। फौरी तौर पर विपक्ष ने इसे नेतन्याहू की मदद करने वाला निजी कानून करार दिया है। दिसंबर 2022 में धुर दक्षिणपंथी पार्टियों के समर्थन से तीसरी बार प्रधानमंत्री बने नेतन्याहू को डर था कि भ्रष्टाचार के मुकदमों के कारण उन्हें पद के लिए अक्षम करार दिया जा सकता है। मगर खुद को बचाने की कोशिश में उन्होंने इजराइली लोकतंत्र को स्थायी क्षति पहुंचा दी है। अब देखने की बात होगी कि इजराइली जनमत प्रधानमंत्री को इस मनमानी से रोकने में किस हद तक कामयाब होता है।