Inflation फिलवक्त महंगाई नियंत्रण पर नजर

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Inflation  सतीश सिंह

Inflation  मंहगाई को नियंत्रित करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक को रेपो दर में बार-बार इजाफा करना पड़ रहा है, क्योंकि इसमें बढ़ोतरी से ऋण दर में इजाफा होता है, लेकिन महंगाई में कमी आने की संभावना बढ़ जाती है।

रेपो दर में वृद्धि से बैंक महंगी दर पर कर्ज देते हैं, जिससे लोगों के पास पैसों की कमी हो जाती है। कम आय और उत्पादों की ज्यादा कीमत होने से मांग में कमी आती है, और जब किसी उत्पाद की मांग में कमी आती है, तो उसकी कीमत में भी कमी आ जाती है। सात दिसम्बर की मौद्रिक समीक्षा में रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 0.35 प्रतिशत की बढ़ोतरी की जिससे रेपो दर 5.90 से बढक़र 6.25 प्रतिशत हो गई।

वैसे, खुदरा महंगाई अभी भी रिजर्व बैंक द्वारा तय महंगाई दर की ऊपरी सीमा 6.00 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है। रिजर्व बैंक का मानना है कि वित्त वर्ष 2023 में खुदरा महंगाई 6.7 प्रतिशत रह सकती है। केंद्रीय बैंक इसे 4 प्रतिशत के स्तर पर लाना चाहता है, लेकिन वित्त वर्ष 2024 में भी महंगाई दर के 5.4 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है। मौजूदा परिदृश्य में लगता है कि महंगाई लंबे समय तक परेशान करने वाली है।

महंगाई के उच्च स्तर पर रहने के बावजूद ऋण दर में उल्लेखनीय तेजी आने की वजह से अर्थव्यवस्था थोड़ी बेहतर स्थिति में है अन्यथा जीडीपी वृद्धि की रफ्तार और भी कम होती। केंद्रीय बैंक के अनुसार 18 नवम्बर, 2022 तक बैंकों द्वारा दिया जाने वाला ऋण 17.2 प्रतिशत बढक़र 129.48 लाख करोड़ रु पये हो गया जबकि 4 नवम्बर को ऋण वृद्धि दर 17 प्रतिशत थी। कर्ज की मांग में तब तेजी आ रही है, जब ऋण दर ज्यादा है, अगर यह सस्ती होती तो भारत में जीडीपी की रफ्तार और भी तेज होती।

उधारी में उठाव और रेपो दर में वृद्धि की वजह से बैंकों को जमा बढ़ाने पर जोर देना पड़ रहा है। विगत 12 महीनों में 12 सरकारी बैंकों में से महज 4 बैंकों ने जमा में दो अंकों की वृद्धि दर्ज की जबकि एक को छोडक़र अन्य बैंकों की उधारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

बैंक ऑफ महाराष्ट्र की उधारी में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि जमा में 8 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई। सेंट्रल बैंक की ऋण वृद्धि दर 12 प्रतिशत है, लेकिन जमा वृद्धि दर महज 2 प्रतिशत। निजी बैंकों में भी ऐसे ही हालात हैं। सभी सूचीबद्ध निजी बैंकों में से केवल दो बैंकों ने ऋण के मुकाबले जमा में अधिक वृद्धि दर्ज की। आईडीएफसी फस्र्ट बैंक में जमा वृद्धि दर 37 प्रतिशत रही जबकि ऋण वृद्धि दर 32 प्रतिशत। यस बैंक की जमा वृद्धि दर 13 प्रतिशत रही जबकि ऋण वृद्धि दर 11 प्रतिशत।

18 नवम्बर, 2022 को बैंकों के जमा में वृद्धि पिछले साल की समान अवधि में 9.6 प्रतिशत बढक़र 172.95 लाख करोड़ रुपये हो गई जो 4 नवम्बर के 8.2 प्रतिशत वृद्धि की तुलना में थोडा ज्यादा है। बैंक बॉन्ड के जरिए भी पूंजी जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। भारतीय स्टेट बैंक ने हाल में 10 वर्षीय इंफ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड के पहले निर्गम के जरिए 10,000 करोड़ जुटाए हैं।

मुद्रास्फीति की वजह से लोगों की खरीदने की क्षमता घट जाती है। भारत समेत अनेक देशों के लोगों की क्रय शक्ति कम हो गई है। ऐसे में लोगों की कमाई कम नहीं होती है, लेकिन मुद्रा की कीमत कम हो जाने से लोगों को किसी भी वस्तु को खरीदने के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते, जिसके कारण वे न तो जरूरत के सामान खरीद पाते हैं, और न ही बचत कर पाते हैं। आर्थिक गतिविधियां धीमी पडऩे लगती हैं।

उत्पादन और विकास दर, दोनों में गिरावट दर्ज की जाती है। रोजगार सृजन का कार्य बंद हो जाता है और लोगों के हाथों से रोजगार फिसलने लगते हैं। महंगाई की वजह से विविध उत्पादों की मांग में कमी आती है और मांग में कमी आने से कल-कारखानों को उत्पादन को कम करना पड़ता है, जिसके कारण कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ता है, और लंबी अवधि तक नकारात्मक स्थिति बनी रहने से कंपनियां बंद भी हो जाती हैं।

उच्च महंगाई दर के लिए घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय, दोनों कारण जिम्मेदार हैं जिनमें अंतरराष्ट्रीय कारण ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं। भू-राजनैतिक संकट का अभी भी समाधान निकलता नहीं दिख रहा। रूस और यूक्रेन अभी भी अपने-अपने ईगो पर अड़े हुए हैं। इस वजह से वैश्विक स्तर पर महंगाई बढ़ रही है। चूंकि रेपो दर में बढ़ोतरी से महंगाई कम होती है, इसलिए महंगाई को सहनशीलता सीमा के अंदर लाने के लिए रिजर्व बैंक को ताजा मौद्रिक समीक्षा में भी रेपो दर में इजाफा करना पड़ा।

हालांकि, रेपो दर में ज्यादा बढ़ोतरी से विकासात्मक कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, और बैंकों के लिए मुश्किलें बढ़ती हैं। बावजूद इसके, रिजर्व बैंक और सरकार फिलवक्त मंहगाई को नियंत्रित करने की नीति पर चल रहे हैं क्योंकि लंबी अवधि में इससे विकास दर में तेज वृद्धि हो सकती है।

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