Independent Bhatapara District : स्वतंत्र भाटापारा जिला,पूरा नहीं हो सका शहीद नंदकुमार पटेल का सपना…

Independent Bhatapara District :

राजकुमार मल

Independent Bhatapara District स्वतंत्र भाटापारा जिला,पूरा नहीं हो सका शहीद नंदकुमार पटेल का सपना…

Independent Bhatapara District भाटापारा– मुख्यमंत्री के भेंट मुलाकात कार्यक्रम में भाटापारा को स्वतंत्र जिला घोषित करने की पूरी उम्मीद थी परंतु नहीं होने से आम जनता नाराज और आक्रोशित है। इतने बड़े व्यवसायिक केंद्र, रेलवे ,सड़क मार्ग से लैस तथा जिले की सभी अहर्ता पूरी करने के बाद भी भाटापारा को जिला नहीं बनाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। स्वतंत्र जिला बनाने के लिए पिछले 42 वर्षों से संघर्ष करने वाले कई लोग स्वर्गवासी हो गए, कई सरकार आई और चली गई परंतु यहां की समस्या यथावत है।

अधूरा ही रह गया शहीद का सपना –

शहीद नंद कुमार पटेल का सपना था कि कांग्रेस की सरकार आने पर भाटापारा 28 वा जिला बनेगा लेकिन वे झीरम घाटी में शहीद हो गए और उनका सपना अधूरा रह गया । आशा थी कि प्रदेश की सरकार उनके सपनों को पूरा करेगी लेकिन अभी तक इस पर सकारात्मक पहल नहीं होने से जनता आक्रोशित है। जब-जब 25 मई का दिन आता है तब तब यहां की जनता उनको याद करके कहती है कि यदि नंद कुमार पटेल जी होते तो उनका सपना जरूर पूरा होता।

तीसरे विकल्प की तलाश –

कांग्रेस और भाजपा दोनों ने समय-समय पर यहां की आम जनता को छला है,इसलिए अब जनता तीसरा विकल्प की तलाश रही हैं। पिछले 42 वर्षों के दौरान जनप्रतिनिधियों का जो रवैया रहा है उससे लोग भली भांति परिचित हो चुके है। जनता अब आगामी चुनाव में इन दोनों पार्टियों में से किसी को भी वोट देने के मूड में नहीं है। यदि तीसरा बेहतर विकल्प मिलता है तो निश्चित तौर पर इन दोनों पार्टियों को मुंह की खानी पड़ेगी।

कोई दमदार स्थानीय नेता नहीं-

आज की तारीख में सत्ता पक्ष से भाटापारा में ऐसा कोई दमदार नेता नहीं है जो मुख्यमंत्री के पास जाकर स्वतंत्र जिले की बात दमदारी से रख सके। वहीं दूसरी ओर विपक्ष जिले की माँग को कमजोर करने पर तुला हुआ है। 15 साल की सत्ता का सुख भोगने वाले विपक्षी तब कभी भी जिले की बात नहीं किए लेकिन अब जिले के मुद्दे पर सत्ता पक्ष को घेरकर अपनी नाकामी छुपाने का भरपूर प्रयास कर रहा है।

बहरूपिए हैं भाटापारा के नेता –

क्षेत्र की जनता इस बात को समझ गई है कि दोनों ही दलों के नेता बहरूपिया है जो समय-समय पर रूप बदल कर आते हैं वादा करते हैं और चले जाते हैं । इनके खाने के दांत और दिखाने के दांत और हैं।

संघर्ष अब सत्ता और समाज के बीच –

क्षेत्र की आम जनता अब यह जान चुकी है कि स्वतंत्र जिले की घोषणा करवाना यहां के नेताओं के बस की बात नहीं है। इन सबको बस अपनी अपनी दुकानदारी चलाने से मतलब है इसलिए अब सामाजिक संगठन आगे आ रहे है। सामाजिक संगठनों को लगता है कि अब सीधा संघर्ष आम जनता और प्रदेश सरकार के बीच है। यहां के स्थानीय नेताओं का कोई रोल नहीं है। यहां के स्थानीय नेता एकजुट होकर अपनी बात मुख्यमंत्री के सामने रखते तो निश्चित तौर पर जिले की घोषणा हो जाती परंतु ऐसा नहीं हो सका।

अभी नहीं बन पाया तो फिर कभी नहीं बनेगा-

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यह तो निश्चित है कि 3 जिले चुनाव के पहले बनेंगे। हर बार भाटापारा का नाम आता है परंतु जब घोषणा होती है तो भाटापारा का नाम विलोपित हो जाता है । आम जनता समझ चुकी है कि यह अंतिम अवसर है इस बार भी अगर भाटापारा जिला नहीं बना तो फिर भविष्य में भाटापारा कभी जिला नहीं बन पाएगा।

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