How to avoid negativity : नेगेटिविटी से कैसे बचें ( भाग -1 )

How to avoid negativity :

How to avoid negativity :  नेगेटिविटी से कैसे बचें ( भाग -1 )

 

How to avoid negativity :  पत्र पत्रिकाओं में प्रायः एक्सपर्ट्स के विचार इस विषय पर पढ़ने को मिलते हैं। जिसमें चिंता उदासी डिप्रेशन एंग्जायटी भय आदि का इलाज बताया जाता है- पॉजिटिव सोचो। सपने देखो, आदि आदि।

ऐसा लगता है लोग जान बूझकर शौकिया नेगेटिव विचारों को पालते हैं। कौन चाहता है कि नेगेटिविटी में फंसा रहना? कौन चाहता है चिंता में जीना, एंग्जायटी और भय में जीना?  कोई नहीं।

लेकिन चूंकि हमें पता नहीं है कि हमारा माइंड काम कैसे करता है, इसलिए हम इन लाइलाज विचारों को पालते हैं।
माइंड का स्वभाव है कि यह सदैव भूतकाल की स्मृतियों से घिरा रहता है या फिर भविष्य में भम्रण करता रहता है।

How to avoid negativity :  चिंता भय उदासी डिप्रेशन एंग्जायटी का एकमात्र कारण यही है कि हम वर्तमान में जीना सीख नहीं पाते। भविष्य और कुछ भी नहीं सिवा भूत के प्रक्षेपण के। भूत को सजा सवांर कर प्रस्तुत करना ही भविष्य है। दोनों मृत हैं। इस तरह देखा जाय तो हम मुर्दा ढोते हैं अपने मन में।

भूतकाल जा चुका है। भविष्य अभी आया नहीं है। इसलिए मोटे तौर पर इन समस्त विचारों का कोई अस्तित्व नहीं है। लेकिन हम जीवन भर यही करते रहते हैं। हर व्यक्ति का संसार है यह। हर व्यक्ति का अपना व्यैक्तिक संसार होता है। इसी संसार को माया कहा है हमारे ऋषियों ने।

नेगेटिविटी है क्या ? विचारों का वह संसार, जो हमें दुखी करता है, चिंतित करता है। जिन विचारों को हम पसंद नहीं करते, वही हमें घेरे रहते हैं। हमें भारी बनाते हैं। हमें अंदर ही अंदर घुटने के लिए बाध्य करते हैं। हमें बोझिल करते हैं।

How to avoid negativity :  पाजिटिविटी क्या है ? – वे विचार जो हमें पसंद हैं, खुशी देते हैं। हमें हल्का करते हैं। उन विचारों से उत्साह पैदा होता है। ऊर्जा मिलती है। हम निर्भार होते हैं।

कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं है जो जानबूझकर दुखी रहना चाहता हो। फिर भी लोग सलाह देते हैं खुश रहा करो। वस्तुतः वह जानते नहीं कि यह सम्भव नहीं है। किसी को यह सलाह देना आसान है कि चिंता दुख परेशानी वाले विचार न पालो। लेकिन उसका पालन करना बहुत कठिन है। क्योंकि माइंड का स्वभाव है – नेगेटिविटी।

एक साधारण सी घटना को ध्यान में रखिये – किसी दीवाल पर लिखा हो – यहाँ मूत्र विसर्जन करना मना है, या पान थूकना मना है, या इस कमरे में झांक तांक न करें। तो आप क्या पाते हैं? लोग वह कार्य अवश्य करते हैं जो उन्हें करने से रोका जाता है।

आप अपने बच्चे को बोलकर देखिये कि बेटा उस जगह मत जाना। अब बच्चे के लिए सारा संसार गौड़ हो गया। अब वह वहीं जाएगा।

हां कहते ही मन का काम समाप्त। यदि सहमति ही है तो क्यों मन खड़ा रहेगा। विवाद कैसा? वितर्क कैसा? वह तो विश्राम करने लगेगा।

इसीलिये तो संसार में इतनी तकरार है। मन का भोजन है न। न कहने से ही हमारा अहंकार संतुष्ट होता है। हां कहते ही हमारा अहंकार तिरोहित हो जाता है। इसीलिये तो सभी संस्थाओं में इतनी मारकाट है। इतनी लड़ाई झगड़ा क्यों हैं? सब मन और अहंकार का खेल है।

तो यदि कोई कहेगा कि नेगेटिव विचारों से बचो तो ऐसा संभव नहीं हो पाता। क्योंकि माइंड का स्वभाव ही नेगेटिविटी है।

तो क्या किया जाय?

महर्षि पतंजलि योगसूत्र में इसका मंत्र देते हैं :-
वितर्क बाधने प्रतिपक्ष भावनम्

नेगेटिव भाव आने पर उसके विपरीत भाव के बारे में सोचो।

आप कहेंगे कि बात तो वही है?
ऐसा नहीं है। एकदम उल्टी बात है। वहां पूरा जोर था – नेगेटिव मत सोचो। यहाँ नेगेटिव को न नहीं कहा जा रहा है। पॉजिटिव पर जोर है।

क्रोध आये तो क्रोध न करो, ऐसी सलाह लोग देते हैं। क्योंकि क्रोध हानिकारक है। आपको हानि पहुंचा सकता है। इसलिए उसका दमन करो। दमन करने से क्या वह ठीक हो जाएगा? नहीं वह विकृत हो जाएगा। आप नकली जीवन जीने लगेंगे।

आपने देखा होगा बहुत से लोग सदैव लंबी मुस्कान लपेटे रहते हैं चेहरे पर। उनका क्रोध कहाँ निकलता होगा, उन्हीं को पता होगा। क्रोध पर विजय पा गए हों वे यह सम्भव नहीं है। ऐसा होता तो वे संसार में रहते हुए योगी हो गए होते – राजा जनक की भांति।

उपाय बताया जा रहा है कि क्रोध आये तो करुणा की भावना ले आओ। क्रोध की ऊर्जा करुणा में बदल जाएगी।

लेकिन यह आसान नहीं है, मुश्किल है।
मुश्किल है तभी तो महर्षि पतंजलि को सूत्र गढ़ना पड़ा। मुश्किल है परंतु सम्भव है। असम्भव नहीं है।

विपरीत भाव लाने का दो अर्थ है :-

1 – एक तो आपको अपने मन पर निगाह रखनी होगी। अभी तो आप मन में लिप्त हैं पूरी तरह। मन ही हो गए हैं। क्योंकि मन का एक और नाम है – विचार। सारे विचार हमारे मन में संकलित होते हैं। वहीं निवास स्थल है उनका।

2 – प्रतिपक्ष भावनम – क्रोध आये, घृणा उपजे, चिंता उपजे तो विरोधी भाव लाना सम्भव न होगा। शुरुवात में। तो क्या करें?

वह बात और भाव विचार में लाएं या मन को उन विचार और भावों की ओर ले जाइए – जो आपको सबसे अधिक प्रीतिकर प्रतीत होता हो। यह आसान है। और आजमाया हुवा भी।

मन एक बंदर है ऐसा हमारे ऋषि मुनि तो कहते ही आये “हैं”। मॉडर्न साइंस भी आजकल यही कह रहा है। वे बता रहे हैं कि माइंड का स्वभाव है – monkeying. मन को उलझाव चाहिए। उलझन ही स्वभाव है उसका। बन्दर जैसे कूदता रहता है एक डाल से दूसरी डाल। ठीक वैसे ही माइंड भी है।

खाली बैठ जाय मन तो बेचैनी उतपन्न कर दे। इसीलिये सोशल मीडिया, व्हाट्सएप आदि इतने लोकप्रिय हो गए हैं। वे मन के अनुरूप हैं। कुछ न कुछ नया, हर पल आता रहता है इन पर। मन उसी में उलझा रहता है। बेचैन होने से बच जाता है।

तो मन जब नेगेटिविटी से भर जाए, तो मन को किसी प्रीतिकर भाव से विचार से उलझाइये।

नेगेटिविटी से निकलने की तो सोचिये भी मत। क्योंकि कौन है जो सोच रहा है? आपका मन ही न? उसे आपने जैसे ही कहा -न। तो वह मानने वाला नहीं है। बच्चे क्यों अपने माता पिता के विरुद्ध रहते हैं? इसी न के कारण। इसी टोका टाकी के कारण – यह न करो। वह न करो।

 

lok sabha election 2024 पीठासीन अधिकारियों एवं मतदान दल का दो दिवसीय प्रशिक्षण संपन्न

 

तो उसे मना न करो – उसे करने दो। उसे देखते रहो और धीरे से किसी प्रीतिकर भाव या विचार से उलझा दो।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU