Hindi literature 02 सितंबर जन्मदिन पर विशेष : यशस्वी कवि साहित्य वाचस्पति डा. श्रीपाल सिंह क्षेम
Hindi literature जौनपुर ! ओ रंग रली, कंज कली। नन्दन की मन्दारकली, तुम गम को सारी आयु रूप की महकी हुई जवानी में। मैं गीत रचूं अगवानी में। एक पल ही जियो फूल बनकर जियो, शूल बनकर ठहरना नहीं जिंदगी जैसे गीतों के प्रणेता हिन्दी साहित्य के यशस्वी कवि साहित्य वाचस्पति डा. श्रीपाल सिंह क्षेम का जन्म 02 सितंबर 1922 को जनपद मुख्यालय से लगभग 10 किमी पश्चिम स्थित बशारतपुर गांव में हुआ।एक कृषक परिवार में जन्में डा. क्षेम ने प्रारंभिक शिक्षा गांव में प्राप्त किये।
राज कालेज से माध्यमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने इलाहाबाद विश्व विद्यालय में प्रवेश लिया। उन दिनों इलाहाबाद साहित्य का केन्द्र था। छायावाद के प्रमुख स्तंभों में जयशंकर प्रसाद को छोड़कर पंडित सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला एंव महादेवी वर्मा अपना डेरा जमाये हुए थे। नयी कविता के सशक्त हस्ताक्षर लक्ष्मीकांत वर्मा, डा. जगदीश गुप्त, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, डा. धर्मवीर भारती साहित्यिक संस्था परिमल से जुड़े थे।
Hindi literature डा. क्षेम भी परिमल के सदस्य रहे। वैसे डा. क्षेम मूलत: गीतकार थे। इनके गीतों में प्रेम और सौन्दर्य की अनुपम छटा देखने को मिलती है। श्रृंगार रस से ओत प्रोत इनकी कविताओं में संयोग श्रृंगार का अद्भूत रूप झलकता है। रातभर चांदनी गीत गाती रही, बांह पर चांद हंसता रहा रात भर तथा मै तुम्हारी चांदनी पीता रहूंगा, चांद मेरे आज दग खोलो न खोलो, जैसे गीत संयोग श्रृंगार के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। छायावाद के युग की महत्वपूर्ण कवयित्री महादेवी वर्मा ने तो उन्हे गीत के राजकुमार की संज्ञा प्रदान की थी।
डा. क्षेम राजनीतिक दृष्टि से कांग्रेस से जुड़े थे किन्तु आपात काल में जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन उन्हे उद्धेलित कर दिया। लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना के उद्देश्य से रचे गये उनके गीत बहुत चर्चित हुए। नीदिया घरों से देखो, धूपिया मुंडेरा है, जभी से जगे रे भाई।
तभी से सवेरा है तथा देश के सितारों बलिहारी बलिहारी है, जैसे जनगीतों ने डा. क्षेम को लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाने का कार्य किया। महाकाव्य के रूप में कृष्ण द्वैपायन जैसे प्रबंध काव्य की रचना करके डा. क्षेम ने अपने बहुआयामी व्यक्तित्व का प्रदर्शन किया है। इस महाकाव्य के माध्यम से डा. क्षेम ने वर्तमान राजनीति और समाज की अनेक अनसुलझी गुत्थियों को सुलझाने का प्रयास किया है। कविता के साथ साथ गद्य की रचना में भी डा. क्षेम को महारत प्राप्त था।
छायावाद की काव्य साधना, छायावाद के गौरव चिन्ह जैसी कृतियां डा. क्षेम को कुशल समीक्षक के रूप में स्थापित करती है। हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा साहित्य वाचस्पति की उपाधि से विभूषित डा. क्षेम को उप्र हिन्दी साहित्य संस्थान से साहित्य भूषण एंव मधुलिमये पुरस्कार प्राप्त हुआ। नीलम तरी, संघर्ष तरी, राख और पाटल, रूप तुम्हारा प्रीति हमारी, अन्तर्ज्वाला जैसी दर्जनों कृतियों के प्रणेता डा. क्षेम ने —
‘ एक पल ही जियो, फूल बनकर जियो, शूल बनकर ठहरना नहीं जिंदगी , जैसे गीतों से ‘मानवीय मूल्यों की स्थापना करने का सार्थक प्रयास किया है। डा. क्षेम के व्यक्तित्व पर दृष्टिपात किया जाये तो पता चलता है कि वे अत्यंत सहज एवं सरल व्यक्ति थे। उनके घर पर अक्सर लोगों का आना जाना लगा रहता था। तरह तरह की परेशानियां लेकर लोग डा. क्षेम के पास आते थे।
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डा. क्षेम एक जनप्रतिनिधि की भाँति शोषित, पीड़ित लोगों के साथ संबंधित अधिकारियों से मिलते। अधिकारीगण भी एक ख्यातिलब्ध साहित्यिक व्यक्तित्व से मिलकर स्वयं को धन्य समझता और साथ में गये व्यक्ति की समस्या का यथासंभव निराकरण भी कर देता। डा. क्षेम के व्यक्तित्व व कृतित्व को शब्दों में बांधा जना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा ही प्रयास कहा जायेगा। यद्यपि डा. श्रीपाल सिंह क्षेम आज हमारे बीच नहीं है फिर भी अपनी लोकप्रिय पंक्तियों के माध्यम से साहित्य के रसिकों के हृदय में आज भी जीवंत है। ऐसे ही साहित्यिक मनीषियों के बारे में कहा गया है- जयन्ति ते सुकृतिनो रस सिद्धा: कवीश्वरा। नास्ति येषां यश: काये, जरामरण जम् भयम्।।
डॉक्टर श्रीपाल सिंह ‘क्षेम’ की 101 वीं जयंती 02 सितंबर को सुबह 9:00 बजे जेल के पास क्षेम उपवन में पुष्पांजलि समारोह का आयोजन किया गया है, इसके पश्चात 11:00 बजे जिला अस्पताल में मरीजों को फल वितरित किया जाएगा। इसके पश्चात कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया है।