Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – क्या रंग लाएगा उपमुख्यमंत्री का दांव

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

– सुभाष मिश्र

छत्तीसगढ़ की राजनीति ने फिर एक नया रंग दिखाया है, साथ ही कई सवाल ऐसे छोड़ दिए हैं जिन पर दूर तक चर्चा होगी और उसका सीधा असर नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा। कांग्रेस की रणनीति में हो सकता है बड़ा बदलाव दिखे। साथ ही साथ भाजपा को भी अपनी चुनावी रणनीति में बदलाव करना पड़ सकता है। इन्ही सवालों के इर्द-गिर्द अगर टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर हुए बड़े फैसले की पड़ताल करें तो कई अहम बात सामने आती है। मसलन चुनाव में जाने से पहले आलाकमान किसी भी तरह की नाराजगी मोल लेने का खतरा नहीं उठाना चाहता। दरअसल 2018 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की बड़ी जीत के बाद से ही मुख्यमंत्री पद के लिए ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले के बात तैर रही थी। सिंहदेव से कई मंच पर ये सवाल पूछे जाते रहे हैं, वो खुद कहते हैं कि इससे उनमें कहीं न कहीं निराशा का भाव था। खुद को समर्थकों के सामने असहज महसूस कर रहे थे। उनकी ओर से अगले चुनाव से दूरी बनाने की बात भी सामने आई थी। हो सकता है चुनाव से पहले आलाकमान ने सिंहदेव को साधने के लिए ये बड़ा कदम उठाया हो क्योंकि बाबा की पकड़ सरगुजा क्षेत्र के साथ ही प्रदेश के शहरी इलाकों में खासी रही है, और इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पिछली जीत के भूपेश बघेल के साथ वे भी प्रमुख शिल्पकार थे।
कर्नाटक में मिली जीत के बात कांग्रेस केन्द्रीय नेतृत्व का आत्मविश्वास अलग ही स्तर पर है। ऐसे में वो इस तरह के बड़े फैसले लेते नजर आ रहा है। ऐसे में क्या सिंहदेव सिर्फ चार माह के उपमुख्यमंत्री पद से संतुष्ट हो जाएंगे या फिर उनसे कोई और वादा किया गया है, ये कुछ दिनों में सिंहदेव के तेवर से साफ हो जाएगा। सवाल ये भी उठता है कि छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेश में जहां कांग्रेस काफी मजबूत स्थिति में दिख रही है वहां ठीक चुनाव से पहले ये फैसला क्यों लेना पड़ा।
फिर एआईसीसी को बकायदा पत्र जारी कर इसका ऐलान करना पड़ा। इससे पहले दिल्ली में हुई बैठक के बाद सिंहदेव का ये कहना कि अगले चुनाव में कोई भी हो सकता है मुख्यमंत्री का चेहरा काफी अहम हो जाता है। हालांकि उपमुख्यमंत्री बनने के बाद सिंहदेव ने एशियन न्यूज से खास बातचीत में कहा कि अगले सीएम के लिए अगर कोई लिस्ट बनती है तो मुख्यमंत्री होने के नाते भूपेश बघेल ही पहली पसंद होंगे, लेकिन उन्होंने एकमात्र पसंद की बात नहीं की है। इस तरह उनके मन में भी कहीं न कहीं मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद कायम है। खास बात ये है कि कई बार अपनी इस इच्छा को वो जाहिर कर चुके हैं।
हालांकि कांग्रेस आलाकमान के फैसले ने विपक्ष को भी कहीं न कहीं हैरान किया है। डॉ. रमन सिंह और बृजमोहन अग्रवाल जैसे नेता ने इसे कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा सिंहदेव को मनाने की कवायद करार दिया है। पिछले कुछ वर्षों में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जिस तरह अपनी राजनीतिक छबि बनाई है वो अलग स्तर की है। इस दौरान वे न केवल प्रदेश में बेहद कुशलता के साथ सत्ता को संभाली, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी एक मजबूत नेता के तौर पर उभरे हैं। उन्होंने अक्सर कहा है कि पार्टी आलाकमान की इच्छा पर ही वो सत्ता पर हैं। ऐसे में पार्टी नेतृत्व के प्रति उनकी पूरी निष्ठा रही है और उन्हें जिस तरह बड़े टॉस्क सौंपे गए उससे ये अब तक संदेश गया कि बघेल पर केन्द्रीय नेतृत्व पूरा भरोसा जता रहा है। इस दौरान उन्हें कई राज्यों में विधानसभा चुनाव में अहम जिम्मेदारी दी गई। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में पहली बार कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन का सफलतापूर्वक आयोजन कराने का श्रेय भी भूपेश बघेल को जाता है। इससे अंदाजा लगता है कि उनका कद किस ऊंचाई पर है। ऐसे में कांग्रेस विधानसभा चुनाव भूपेश बघेल की अगुवाई में ही लड़ेगी ये तय है। हालांकि पार्टी नेतृत्व सभी को अहमियत देना चाहती है और पार्टी हित के लिए जरूरी भी है। ऐसे में एन चुनाव के पहले दिल्ली में हुए इस फैसले के क्या मायने हो सकते हैं, इसे समझने में थोड़ा समय देने की जरूरत है। वैसे उपमुख्यमंत्री पद की बात की जाए तो इस समय छत्तीसगढ़ के अलावा 10 राज्यों में उपमुख्यमंत्री काम कर रहे हैं। इनमें आंध्र प्रदेश, अरुणाचल, बिहार, हरियाणा, हिमाचल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मेघालय, नगालैंड और उत्तर प्रदेश शामिल हैं। सबसे दिलचस्प मामला आंध्र प्रदेश का है जहां मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों के लिए पांच उपमुख्यमंत्री बना रखे हैं। हाल ही में कर्नाटक में मिली जीत के बाद भी कांग्रेस को डीके शिवकुमार को साधने के लिए उपमुख्यमंत्री बनाना पड़ा है। ऐसे में देश के कई राज्यों में आजमाया हुआ ये दांव छत्तीसगढ़ में क्या रंग दिखाएगा ये देखने वाली बात होगी।

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